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शुभ भाव व पवित्रता देने वाला पर्व


(रक्षाबन्धनः 29 अगस्त 2015)
राखी पूनम उच्च उद्देश्य से मन को बाँधने की प्रेरणा देने वाली पूनम है। बहन भाई के हाथ पर राखी बाँधती है। राखी महँगी है या सस्ती इसका महत्त्व नहीं है, सादी-सूदी राखी हो, सादा रंगीन धागा हो, चल जाता है। शुभ भाव को दिखावे में नहीं बदलना चाहिए बल्कि सात्त्विकता व पवित्रता का सम्पुट देना चाहिए।
बहन भावना करती है कि ‘मेरा भैया विमल विवेकवान हो।’ रक्षाबंधन महोत्सव फिसलते हुए आस-पड़ोस के युवक-युवतियों के लिए सुरक्षा की सुंदर खबर लाने वाला महोत्सव है। वयस्क बहन-भाई पड़ोस में रहें, हो सकता है कि ऊर्जा का स्रोत यौवन में विकारों की तरफ जोर मारता हो तो कहीं वे फिसल न जायें इसलिए पड़ोस की बहन पड़ोस के भाई को राखी बाँधकर अपनी तो सुरक्षा कर लेती है, साथ ही भाई के विचारों की भी सुरक्षा कर लेती है कि पड़ोस का भाई भी संयमी बने, सदाचारी बने, तेजस्वी बने, दिव्यता की तरफ चले।
राखी दिखता तो धागा है लेकिन उस धागे में संकल्पशक्ति होती है, शुभ भावना होती है। शची (इन्द्र की पत्नी) ने देखा कि इन्द्र दैत्यों के साथ जूझ रहे हैं, कहीं पराजय की खाई में न गिर जायें इसलिए शची ने इन्द्र को राखी बाँधी। अपना शुभ संकल्प किया कि ‘मेरे पतिदेव विजेता बनें।’
मेरे गुरुदेव (साँईं श्री लीलाशाह जी महाराज) अहमदाबाद पधारे थे, तब उनके चरणों में जूनागढ़ का एक प्राध्यापक और प्राचार्य आये। बोलेः “साँईं ! भाई तो बहन की रक्षा करे लेकिन हम भी तो रक्षा चाहते हैं। इन्द्र को युद्ध में विजय चाहिए लेकिन हमें तो विकारों पर विजय चाहिए। सद्गुरुदेव ! आप हमारी विषय-विकारों से रक्षा करते रहें। जब तक हम ईश्वर तक न पहुँचे, तब तक गुरुवर ! आप हमें सँभालना।
गुरु जी अमीरी संभाळ ले जो रे।
दिलड़ां मां रहीने दोरवणी देजो रे।।”
‘गुरु के दिव्य ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो, लाखों लोग गुरुदेव के दैवी कार्य से लाभान्वित हों’ ऐसा शुभ भाव मन ही मन करके साधक गुरु को राखी बाँध सकता है और गुरु भी शुभ संकल्प करें कि ‘इनकी विषय विकारों से, अविवेक व अशांति से सुरक्षा हो और विमल विवेक जागे।’
इस पूनम को ‘नारियली पूनम’ भी कहते हैं। सामुद्रिक धंधा करने वाले लोग जलानां सागरो राजा…. सारे जलाशयों में सागर राजा है…. इस भाव से नारियल अर्पण करते हैं कि ‘अगर आँधी-तूफान आये तो हमारी देह की बलि न चढ़े इसलिए हम आपको यह बलि अर्पण कर देते हैं।’ यह कृतज्ञता व्यक्त करने का भी उत्सव है।
ब्राह्मण ‘श्रावणी पर्व’ मनाते हैं और जनेऊ बदलते हैं। जनेऊ में तीन धागे होते हैं। 1-1 में 9-9 गुण… 9×3=27. प्रकृति के इन गुणों से और बंधनों से पार होने के लिए जनेऊ धारण किया जाता है। ‘जनेऊ का धागा तो भले पुराना हो गया इसलिए बदल देते हैं लेकिन हमारा उत्साह तो जैसे पूनम का चाँद पूर्ण विकसित है, ऐसे ही धर्म और कर्म में हमारा उत्साह बना रहे, साहस और प्रेम बना रहे’ – यह भावना करते हैं।
भद्राकाल के बाद ही राखी बँधवायें
जैसे शनि की क्रूर दृष्टि हानि करती है, ऐसे ही शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी नुकसान करता है। रावण ने भद्राकाल में सूर्पणखा से रक्षासूत्र बँधवा लिया, परिणाम यह हुआ कि उसी वर्ष में उसका कुल सहित नाश हुआ। भद्रा की कुदृष्टि से कुल में हानि होने की संभावना बढ़ती है। अतः भद्राकाल में रक्षासूत्र (राखी) नहीं बाँधना चाहिए।
(29 अगस्त 2015 को दोपहर 1-53 तक भद्राकाल है, इसके बाद ही राखी बाँधें।)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2015, पृष्ठ संख्या 11, अंक 272
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यह केस तो तुरन्त रद्द होना चाहिए


सुप्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी
सुप्रसिद्ध न्यायविद् डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने पूज्य बापू जी के खिलाफ हुई अंतर्राष्ट्रीय साजिश का खुलासा करते हुए कहा कि “विदेश से आये हुए धर्म परिवर्तन करने वाले लोगों का आशाराम जी बापू ने डटकर मुकाबला किया। गुजरात और अन्य क्षेत्रों में लालच देकर धर्म-परिवर्तन करने के प्रयास को विफल किया। इससे वेटिकन में नाराजगी आयी। उसके बाद किसी तरीके से बापू जी को बदनाम करने के लिए प्रयास चला।” सुब्रह्मण्यम स्वामी ने यह बात औरंगाबाद में हुए एक सम्मेलन के दौरान कही।
पूज्य बापू जी को ऐसे षड्यंत्र में फँसाने के लिए बहुत पहले से और बड़े स्तर पर कोशिशें की जा रही थीं। इस संदर्भ में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहाः “मैंने बापू जी को एक बार जब हवाई जहाज में साथ आ रहे थे तब बताया कि सत्ता (तत्कालीन सत्ताधारी सरकार) में जो लोग हैं, वे उनसे चिढ़े हुए हैं और कुछ भी कर सकते हैं। आखिर में वही हुआ जिसका मैं संदेह कर रहा था।”
सुब्रह्मण्यम स्वामी इस बोगस केस की एक-एक पर्त खोलते हुए बोलेः “मैंने केस को पढ़ा। देखा कि लड़की ने जोधपुर के पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज नहीं की, वह दिल्ली में दर्ज की। मेडिकल जाँच रिपोर्ट में साफ लिखा हुआ है कि कोई दुष्कर्म नहीं हुआ है। फिर जोधपुर पुलिस ने अलग से एक धारा जोड़ी कि लड़की 18 साल से कम उम्र की है। बलात्कार तो नहीं हुआ लेकिन उन्होंने हाथ लगाया और किसी ने देखा नहीं। माँ दरवाजे के बाहर बैठी है।’ लड़की चिल्लाती तो निश्चित तौर पर वह (माँ) अंदर आती।
देशहित एवं सत्य के पक्ष में मुकद्दमे लड़ने वाले सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस मुकद्दमे के पुलिस द्वारा नजरअंदाज किये गये पहलुओं को उजागर करते हुए कहाः “लड़की के टेलिफोन रिकॉर्ड्स से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं ! उसी समय बापू जी सत्संग में थे और आखिर में मँगनी के कार्यक्रम में व्यस्त थे। वे भी वहाँ कुटिया में नहीं थे। यह केस तो तुरंत रद्द होना चाहिए।”
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सरकार से माँग करते हुए कहाः “मैंने गृहमंत्री राजनाथ जी से कहा कि आशाराम जी बापू के खिलाफ किया गया केस फर्जी है। उनके खिलाफ मुकद्दमा चलाने में जनता के पैसों का दुरुपयोग होता है। यह बिगाड़ नहीं किया जाना चाहिए।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2015, पृष्ठ संख्या 6, अंक 272
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बोगस केस का बड़ा खुलासा


पूज्य बापू जी के विरूद्ध किस प्रकार और कितना व्यापक षड्यंत्र रचा गया है, इसकी पोल अब खुलती जा रही है। किस तरह एक सुनियोजित तरीके से बापू जी के खिलाफ झूठे सबूत वह गवाह खड़े किये गये, इसकी हकीकत 8 जुलाई 2015 को जोधपुर सत्र न्यायालय में दिये गये सुधा पटेल के बयान से सामने आयी है।
पुलिस द्वारा दर्ज आरोप-पत्र में सुधा पटेल के नाम पर लिखे गये बयान में जिन अनर्गल, बेबुनियाद बातों का जिक्र किया गया था, सुधा ने उन बातों को झूठी एवं मनगढ़ंत बताया। सुधा ने पुलिस के सबसे झूठ का खुलासा करते हुए कहा कि पुलिस वालों ने दिनांक 16 सितम्बर 2013 को मेरे बयान लिये थे, यह गलत (झूठी) बात है। आज से पहले मैं न कभी जोधपुर आयी और न ही कभी कहीं बयान दिये थे। जोधपुर पुलिस अहमदाबाद आयी थी। मुझसे जोधपुर पुलिस ने कोई पूछताछ नहीं की थी। पुलिस ने मुझसे हस्ताक्षर करवाये थे लेकिन मुझे पता नहीं है कि पुलिस वालों ने मेरे हस्ताक्षर किस बात के करवाये थे।
पुलिस किस प्रकार व्यक्ति से पूछताछ किये बगैर तथा बयान लिये बगैर बनावटी, बोगस बयान तैयार करके अपना दबाव बनाकर उन पर हस्ताक्षर ले के झूठे बयानों का पुलिंदा खड़ा करती है, यह सुधा के बयान से अब सबके सामने आ गया है। साजिशकर्ता पुलिस अधिकारियों से कैसे-कैसे साजिश करवा लेते हैं !
पुलिस द्वारा आरोप-पत्र में वर्णित मनगढ़ंत कहानी की पोल खोलते हुए सुधा पटेल ने न्यायालय को बताया कि मैं मेरी मर्जी से महिला आश्रम, मोटेरा (अहमदाबाद) में दस साल तक रही। मेरे साथ वहाँ कुछ गलत नहीं हुआ था। मैंने पूज्य बापू जी के द्वारा किसी भी अन्य अनुयायी या महिला के साथ कोई गलत व्यवहार नहीं देखा था। यह कहना गलत है कि मैंने आश्रम में कई घटनाएँ, जो आपत्तिजनक हुई हों, उनको पुलिसवालों को बयान देते वक्त बताया हो। आश्रम में कोई भी आपत्तिजनक घटनाएँ नहीं हुई थीं, न ही मैंने पुलिस वालों को ऐसी कोई घटना बतायी है।
सुधा ने न्यायालय में दिये अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि यह कहना गलत है कि मुझे और मेरे भाई को आश्रम से कोई धमकियाँ मिली हों। मुझे आश्रम द्वारा कोई लालच भी नहीं दिया गया। मैं बिना किसी भय या डर के आज यहाँ न्यायालय में बयान दे रही हूँ।
सुधा के बयान से बोगस केस का एक बड़ा खुलासा हुआ है। यह समझने की बात है कि महिला आश्रम, अहमदाबाद व छिंदवाड़ा की बेटियों को गहने व अन्य प्रलोभन देकर ‘हमारे साथ भी ऐसा हुआ था’ – ऐसे झूठे आरोप लगाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया गया पर बापू जी की एक भी खानदानी बेटी धन और गहनों के प्रलोभन में नहीं आयी। सुधा ने तो इनकी पोल की खोलकर रख दी।
संकलकः श्री रवीश राय
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2015, पृष्ठ संख्या 9, अंक 272
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