Monthly Archives: May 2016

Rishi Prasad 269 May 2015

यह केस भी उसी षड्यंत्र की कड़ी है – श्री उदय संगाणी


जोधपुर सत्र न्यायालय में 13, 15, 16 व 17 अप्रैल 2015 को श्री उदय संगाणी के बयान हुए। इन्होंने पूज्य बापू जी के ऊपर हो रहे षड्यंत्र की सच्चाई न्यायालय के सामने रखी और समाज व देश के कल्याण के लिए बापू जी द्वारा दिये गये योगदान के बारे में बताया। बयान के मुख्य अंशः

पिछले 50 वर्षों से पूज्य बापू जी के द्वारा समाजोत्थान हेतु अनेकानेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। जगह-जगह पर सत्संग होते हैं और उनमें बापू जी लोगों से नशा छुड़वाते हैं। पूज्य बापू जी से प्रेरित होकर लाखों लोगों ने बीड़ी, तम्बाकू, सिगरेट, शराब आदि छोड़ दिये। यहाँ तक कि बापू जी सत्संग में चाय एवं कोल्ड ड्रिंक्स से होने वाले नुक्सान भी बताते हैं, जिससे लोगों ने चाय व कोल्ड ड्रिंक्स भी पीना छोड़ दिया है।
आदिवासी क्षेत्रों में समय-समय पर भंडारे होते हैं। उनको अन्न, वस्त्र तथा अन्य जीवनोपयोगी चीजें दी जाती हैं। कइयों को मकान भी बनवा के दिये गये हैं।
पिछड़े क्षेत्रों में जहाँ धर्मांतरण होता था, वहाँ जाकर बापू जी ने लोगों को जागृत किया और बापू जी की प्रेरणा से हजारों लोगों ने फिर से हिन्दू धर्म अपनाया है, इसीलिए धर्मांतरण वाले लोग बापू जी से ईर्ष्या करते हैं।

आश्रम द्वारा देशभर में अनेक गौशालाएँ चलायी जा रही हैं। इनमें कत्लखाने ले जाने से बचायी गयी हजारों गायों का भी पालन-पोषण व रक्षण किया जा रहा है। यहाँ हजारों दूध न देने वाली और बीमार गायें भी पोषित होती हैं।

पूज्य बापू जी हमेशा से अपने सत्संगों में कन्या भ्रूणहत्या एवं समस्त भ्रूणहत्या को रोकने के बारे में जोर देते रहे हैं। बापू जी द्वारा नारी सशक्तिकरण के लिए ‘महिला उत्थान मंडलों’ की स्थापना की गयी है, जिनके माध्यम से महिलाओं की जागृति व उत्थान के विभिन्न प्रकल्प सतत चलाये जाते हैं।

14 फरवरी को वेलेंटाईन डे की जगह ‘मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाने की प्रेरणा बापू जी ने दी, जिसे हर जगह पर मनाया जा रहा है और राष्ट्रपति, केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, राज्यपालों इत्यादि ने इसी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री श्री रमन सिंह जी ने अपने राज्य के हर शासकीय विद्यालय में इसे अनिवार्य घोषित कर दिया है।

अनेक प्रधानमंत्री (पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री गुलजारी लाल नंदा, श्री चंद्रशेखर, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री एच.डी.देवगौड़ा तथा वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी) पूज्य बापू जी के सत्संग से लाभान्वित हुए हैं। पूर्व राष्ट्रपति श्रीमति प्रतिभा पाटील एवं डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने आश्रम के सेवाकार्यों की प्रशंसा की है।

वर्ष 2008 में अहमदाबाद गुरुकुल के दो बच्चों के पानी में डूबने से आकस्मिक मृत्यु हुई थी। उस समय ऐसी अफवाह फैलायी गयी थी कि उन बच्चों की तांत्रिक विधि से हत्या की गयी है। मीडिया में भी इस केस को बहुत उछाला गया था। उस समय से ही आश्रम एवं बापू जी के विरूद्ध षड्यंत्र किये जा रहे हैं। अमृत प्रजापति, महेन्द्र चावला, राजू चांडक आदि ने मीडिया में ऐसे झूठे बयान दिये कि ‘आश्रम में तांत्रिक विधि होती है।’

उस समय सी.आई.डी. क्राइम के डिटेक्टिव पुलिस इन्स्पैक्टर ने अखबारों में यह सूचना छपवायी थी कि ‘जिस-किसी को आश्रम की कोई भी अनैतिक गतिविधियों के बारे में कुछ भी पता हो तो वे आकर हमें बतायें। उनके नाम गुप्त रखे जायेंगे और उन्हें इनाम भी दिया जायेगा।’ पर कोई भी बयान देने नहीं आया। यह बात जाँच अधिकारी ने गुजरात उच्च न्यायालय के समक्ष दिये शपथपत्र में कही है। साथ में यह भी कहा है कि वे और उनके उच्च अधिकारी श्री जी.एस. मलिक (डी.आई.जी. क्राइम) एफ.एस.एल. के अधिकारी, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर ने जाकर पूरे आश्रम के एक-एक कमरे एवं चप्पे की जाँच की पर तांत्रिक विधि के संदर्भ में कोई भी सबूत प्राप्त नहीं हुए। सर्वोच्च न्यायालय में इस मुद्दे पर कहा गया था कि ‘आश्रम में किसी प्रकार के कोई भी तांत्रिक विधि के सबूत प्राप्त नहीं हुए।’ इन्हीं षड्यंत्रकारियों ने उस समय इस मुद्दे को जोर-शोर से उछाला था, जो अंततः झूठा साबित हुआ।

8 अगस्त 2008 को अमृत प्रजापति, महेन्द्र चावला, राजू चांडक आदि ने मिल के आश्रम में बापू जी के नाम से फैक्स किया कि ‘एक सप्ताह के अंदर हमें 50 करोड़ रूपये दे दो अन्यथा तुम और तुम्हारा परिवार जेल की हवा खाने को तैयार हो जाओ। बनावटी मुद्दे तैयार हैं, तुम्हें पैसों की हेराफेरी में, जमीनी एवं लड़कियों के झूठे केसों में फँसायेंगे।’

उसके बाद अब तक कई बार ऐसे प्रयास किये गये, कई लड़कियों को भी भेजा गया पर उनके प्रयास असफल रहे। यह केस भी उसी षड्यंत्र की एक कड़ी है। यह उनकी कार्यप्रणाली है। दिल्ली का एक व्यक्ति इन षड्यंत्रकारियों के बीच घुस गया था एवं उनके द्वारा किस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया जाता है और क्या-क्या षड्यंत्र चल रहे हैं, उनका स्टिंग ऑपरेशन किया था। उसके बाद इनके षड्यंत्र की पोल खुल गयी थी।

इन सभी षड्यंत्रकारियों के लिए बापू जी ने कई बार जाहिर सत्संग में कहा है और लोगों को सावधान किया है। न्यायालय में वर्ष 2010 में हुए बापू जी के सत्संग की सी.डी. भी चलायी गयी थी, जिसमें बापू जी ने जाहिर में यह बात कही है कि किस तरह से उन्हें फँसाने के लिए लड़कियों को उनके पास भेजा जाता था एवं पैसों के बारे में भी फँसाने का प्रयास किया गया था।

महेन्द्र चावला को वीणा चौहान नामक महिला ने आश्रम में रेकी (मुआयना) करने एवं आश्रम के बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु भेजा था और इसी साजिश के तहत उसने झूठे बयान दिये हैं।

राजू चांडक को गौशाला के पैसों में गबन करने के कारण आश्रम से निकाला गया था।
इसलिए इन लोगों तथा धर्मांतरण वालों ने एकजुट होकर आश्रम के विरुद्ध षड्यंत्र किया।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 7,8 अंक 269
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Rishi Prasad 269 May 2015

भक्तों की अटूट श्रद्धा के पीछे क्या है राज ?


पूज्य बापू जी के निर्दोष होने के बावजूद पिछले 20 महीनों से जोधपुर कारागृह में है। ऐसे में आँखों में गुरुदेव की एक झलक पाने की आस और हृदय में गुरुप्रेम का सागर लिये, अनेक प्रतिकूलताएँ सहते हुए भी घंटों इंतजार करते साधकों की दृढ़ श्रद्धा और अटूट निष्ठा को देखकर नास्तिक व्यक्ति भी सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि ‘आखिर इन भक्तों की श्रद्धा के पीछे क्या राज है ?’ गुरुदेव के सत्संग-सान्निध्य से भक्तों के जीवन में आये सकारात्मक परिवर्तनों को तो तटस्थ होकर कोई व्यक्ति थोड़ा समझ भी सकता है लेकिन भक्ति, ज्ञान और आनंद का जो खजाना भक्तों को मिला है, वह तो लाबयान है।

भक्तों को देखकर पूज्य श्री का भक्तवत्सल हृदय उमड़ रहता है, पूज्य श्री हाथ उठाकर भक्तों का प्रणाम स्वीकार करते हैं, आशीर्वाद देते हैं और उनके लिए संदेश भी देते हैं।

पूज्य बापू जी की मीडिया से हुई बातचीत के कुछ अंश
पत्रकार, “आपके अच्छे दिन कब तक आयेंगे ?”
पूज्यश्रीः “अच्छे दिन तो हमारे रोज ही हैं, सदा है। मेरा बुरा दिन कभी हुआ ही नहीं। समझ गये ?
पूरे हैं वे मर्द जो हर हाल में खुश हैं।
शरीर के गरम-नरम दिन आते रहते हैं। मेरे दिन कभी बुरे होते ही नहीं, जब से गुरुदीक्षा ली है।”
अवतरण दिवस के निमित्त संदेश
(6,7 व 8 अप्रैल 2015)

पत्रकारः “इस बार जन्मदिन पर किस तरह का कार्यक्रम करने की इच्छा है ?”
पूज्य श्रीः “अभी तो देशभर में नहीं, विश्वभर में गरीबों की सेवा कार्यक्रम जन्मदिवस के निमित्त चलता है, चलाते रहना। देर-सवेर मुलाकात हो जायेगी। 167 देशों में गरीबों की सेवा करना, हमारी चिंता नहीं करना। आप लोग भी खुश रहो, मीडिया वाले भी खुश रहें।”
पत्रकारः “बापू ! सफाई अभियान को ले के क्या कहना है ?”
पूज्य श्रीः “सफाई अभियान बहुत सुन्दर है। मैंने भक्तों को बोला है, सब जगह करेंगे। बाहर की भी सफाई हो, विचारों की भी सफाई हो। सहानुभूति, सज्जनता, सद्भाव का माहौल हो। 167 देशों में जन्मदिवस मनाने के निमित्त लोग सदाचार और भाईचारे का संदेश देते हैं। मैं शरीर का जन्मदिवस मनाना नहीं चाहता था लेकिन लोगों ने सेवाकार्य किया तो मैं सहमत हो गया।”
पत्रकारः “आप भी जेल में सफाई करेंगे क्या बापू ?”
पूज्य श्रीः “अरे, हम तो रोज सफाई करते हैं। जेल में ऐसे पेड़-पौधे लगाये हैं कि आने वाले, देखने वाले दंग रह जाते हैं। जेल में लगाये हैं, हॉस्पिटल की तरफ लगाये हैं। मैं सेवा के बिना रह नहीं सकता हूँ।”
पत्रकारः “बापू ! भक्तों को कोई संदेश जन्म दिन पर ?”
पूज्यश्रीः “हाँ, भक्तों को संदेश है, धीरज सबका मित्र है। जितना जुल्म सह गये महापुरुष उतना ही समाज ने उनको पहचाना। आद्य शंकराचार्य जी ने सहा, कबीर जी ने, महात्मा बुद्ध ने, विवेकानंद जी ने सहा… हमारे साथ भी हो रहा है। धीरज रखना। सबका भला हो।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2015, पृष्ठ संख्या 11, अंक 269
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सत्शिष्य फैलाते सद्गुरु का ज्ञानप्रकाश


 

(संत कबीर जयंतीः 20 जून 2016)

हृदय की बात जानने वाला सत्शिष्य

पंचगंगा घाट पर सभी संत आध्यात्मिक चर्चा कर रहे थे। अंदर गुफा में बैठ के स्वामी रामानंद जी मानसिक पूजा कर रहे थे। वे पूजा की सभी सामग्री एकत्र कर नैवेद्य आदि सब चढ़ा चुके थे। चंदन मस्तक पर लगाकर मुकुट भी पहना चुके थे परंतु माला पहनाना रह गया था। मुकुट के कारण माला गले में जा नहीं रही थी। स्वामी जी कुछ सोच रहे थे।

इतने में रामानंद जी के शिष्य कबीर जी को गुरुदेव के हृदय की बात मालूम पड़ गयी और वे बोल उठेः “गुरुदेव ! माला की गाँठ को खोल कर फिर उसे गले में बाँध दिया जाय।”

कबीर जी की युक्तिभरी बात सुनकर रामानंद जी चौंके कि ‘अरे, मेरे हृदय की बात कौन जान गया ?’ स्वामी जी ने वैसा ही किया। परंतु जो संत बाहर कबीर जी के पास बैठे हुए थे, उन्होंने कहा कि “कबीर जी ! बिना प्रसंग के आप क्या बोल रहे हैं ?”

कबीर जी ने कहाः “ऐसे ही एक प्रसंग आ गया था, बाद में आप लोगों को ज्ञात हो जायेगा।”

पूजा पूरी करने के बाद रामानंद जी गुफा से बाहर आये, बोलेः “किसने माला की गाँठ खोलकर पहनाने के लिए कहा था ?”

सभी संतों ने कहाः “कबीर जी ने अकस्मात् हम लोगों के सामने उक्त बातें कही थीं।”

रामानंद जी का हृदय पुलकित हो गया और अपने प्यारे शिष्य कबीर जी को छाती से लगाते हुए बोलेः “वत्स ! तुमने मेरे हृदय की बात जान ली। मैं तुम्हारी गुरुभक्ति से संतुष्ट हूँ। तुम मेरे सत्शिष्य हो।”

गुरुदेव का आशीर्वाद व आलिंगन पाकर कबीर जी भावविभोर हो गये और गुरुदेव के श्रीचरणों में साष्टांग प्रणाम करके बोलेः “प्रभो ! यह सब आपकी महती अनुकम्पा का फल है। मैं तो आपका सेवक मात्र हूँ।”

इस प्रकार कबीर जी पर गुरु रामानंद जी की कृपा बरसी और वे ब्रह्मज्ञानी महापुरुष हो गये।

अग्राह्य को भीतर से बाहर निकालो !

कबीर जी ब्रह्मज्ञान का अमृत लुटाने हेतु देशाटन करते थे। एक बात कबीर जी अरब देश पहुँचे। वहाँ इस्लाम धर्म के एक प्रसिद्ध सूफी संत जहाँनीगस्त रहते थे। कबीर जी ने उनका बड़ा नाम सुना तो उनसे मिलने पहुँचे परंतु फकीर ने अपनी महानता के अहंकार के वशीभूत होकर कबीर जी से मुलाकात नहीं की।

उन फकीर ने सिद्धियाँ तो प्राप्त कर ली थीं परंतु आत्मज्ञान न होने से अहंकार दूर नहीं हुआ था। एक दिन फकीर को रात्रि में स्वप्न आया कि ‘किन्हीं हयात महापुरुष के दर्शन सत्संग के बिना तुम्हारा अज्ञान दूर नहीं होगा। अतः भारत में जाओ और संत कबीर जी के दर्शन करो।’

जहाँनीगस्त फकीर ने पूछाः “कौन कबीर ?”

‘भारत के कबीर, जिन्होंने सिकंदर लोदी को पराजित किया है और जो तुमसे मिलने आये थे परंतु तुमने अहंकारवश उनसे मुलाकात नहीं की।’

सुबह उठते ही फकीर स्वप्न की बात पर चिंतन करने लगे कि ‘मैं कबीर जी को पहचान न सका। ऐसे महापुरुष मेरे द्वार पर आये और मैंने उनका अपमान कर दिया। इसलिए अल्लाह की ओर मुझे आज यह आदेश हुआ है। अब मैं कबीर जी का दर्शन अवश्य करूँगा।’ ऐसा निश्चय करके जहाँनीगस्त अरब से चल पड़े। इधर कबीर जी पहले ही जान गये कि जहाँनीगस्त आ रहे हैं तो उनके बैठने के लिए आसन की व्यवस्था करा दी। साथ ही उन्होंने आश्रम के सामने एक सूअर बँधवा दिया।

फकीर कबीर जी के आश्रम के निकट पहुँचे। दूर से ही सूअर देखकर उनके मन में घृणा हुई कि ‘कबीर जी सूअर को क्यों बाँधे हुए हैं ? वे तो संत हैं, उनको इससे दूर रहना चाहिए।’ इस  प्रकार तर्क वितर्क कर लौटने का विचार करने लगे। संत कबीर जी उनको मनोभाव को जान गये, बोलेः “संत जी ! आइये, क्यों इतनी दूर से आकर वहाँ रुक गये हो ?”

वे कबीर जी के पास आये। थोड़ा विश्राम व भोजन के बाद कबीर जी के साथ सत्संग की चर्चा होने लगी। जहाँनीगस्त ने कबीर जी से पूछाः “आप बहुत बड़े संत-महापुरुष हैं  परंतु आपने इस अग्राह्य को क्यों ग्रहण किया है ?”

कबीर जी बोलेः “जहाँनीगस्त जी ! मैंने अपने अग्राह्य को भीतर से बाहर कर दिया है परंतु आप अभी उसको भीतर ही रखे हुए हैं।”

“मैं कुछ समझा नहीं !”

“मैंने  भेदबुद्धिरूपी सूअर को भीतर से निकाल कर बाहर बाँध दिया है परंतु आप उसे अपने अंदर रखे हुए हैं और इस पर भी आप पवित्र बनते हैं। इस सूअर को आप अपने अंदर छिपाकर रखे हुए हैं।”

यह सुनते ही फकीर का सारा भ्रम दूर हो गया। कबीर जी के सत्संग से उनकी अविद्या (जगत को सत्य मानना व अद्वैत परमात्मा को न जानना), अस्मिता (देह को मैं मानना), राग, द्वेष और अभिनिवेश (मृत्यु का भय) अलविदा हो गये।

जिधर देखता हूँ खुदा ही खुदा है।

खुदा से नहीं चीज कोई जुदा है।।

जब अव्वल व आखिर खुदा ही खुदा है।।

तो अब भी वही, कौन इसके सिवा है।।

जिसे तुम समझते हो दुनिया ऐ गाफिल1।।

यह कुल हक2 ही हक, नै जुदा नै मिला है।।

1 अज्ञानी 2 सत्यस्वरूप परमात्मा

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2016, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 281

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