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ॐ पूज्य बापू जी का पावन संदेश


ऋग्वेद का वचन है, उसे पक्का करें- युष्माकम् अन्तरं बभूव। नीहारेण प्रावृता…

‘वह सृष्टिकर्ता आत्मदेव तुम्हारे भीतर ही है और अज्ञानरूपी कोहरे से ढका है।’

हे मनुष्यो ! अपना असली खजाना अपने पास है। जहाँ कोई दुःख नहीं, कोई शोक नहीं, कोई भय नहीं ऐसा खजाना तो अपने आत्मदेव में है। तुम (अज्ञानरूपी कोहरे को हटाकर) अपने चेतनरूप, आनंदरूप परमात्मसद्भाव को जान लो और यह मनुष्य जीवन उसी के लिए मिला है। श्रीकृष्ण ने कहाः अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्.…. किसी से भी अपने मन में द्वेष न रखो। अगर अपना कल्याण चाहते हो, अपना हित चाहते हो, अपनी महानता जगाना चाहते हो, भय को मिटाना चाहते हो तो अद्वेष्टा सर्वभूतानाम्…. किसी से भी द्वेष नहीं करो। तो क्या करें ?

बोले, जो श्रेष्ठजन हैं, महापुरुष हैं, जो सत्यनिष्ठ हैं, ईश्वर की तरफ जा रहे हैं, समाज की भलाई में लगे हैं उनसे मैत्री करो और जो तुम्हारे से छोटे हैं, तुम ऑफिसर हो या सेठ हो या घर के बड़े हो तो छोटों पर करूणा करो। उनकी गलती-वलती होगी लेकिन उनको स्नेह दे के उन्नत करो। मैत्री करो, करूणा तो करो लेकिन ‘यह मेरा बेटा है, यह मेरा फलाना है….’ श्रीकृष्ण बोलते हैं- नहीं, कोहरा हटेगा नहीं। निर्ममो…. ममता न रखो, निरहङ्कारः… अहंकार भी मत करो शरीर में, वस्तुओं में क्योंकि तुम्हारा शरीर पहले था नहीं, बाद में रहेगा नहीं, अभी भी नहीं की तरफ जा रहा है। तो अहंकार करोगे तो कोहरा होगा। निर्ममो निरहंङ्कारः…

श्रीकृष्ण ने बहुत ऊँची बात कह दीः समदुःखसुखः क्षमी। दुःख आ जाय तो उद्विग्न न हो जाओ, सुख आ जाय तो उसमें फँसो मत।

अद्वेष्टा सर्वभूतानाम् मैत्रः करूण एव च। निर्ममो निरहंङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी।। (गीताः 12.13)

यह करेंगे तो आप कोहरे के पार अपने सुखरूप, ज्ञानरूप, चैतन्यरूप आत्मवैभव को पाने में सफल हो जाओगे।

यह बात रामायण ने अपने ढंग से कही। जो सत्संग करता है और ईश्वर की तरफ यात्रा करता है, मेटत कठिन कुअंक भाल के….. उसके भाग्य के कुअंक मिट जाते हैं। ‘प्रारब्ध में ऐसा लिखा है, वैसा लिखा है….’ लेकिन व्यक्ति इस रास्ते चलता है तो प्रारब्ध के दुःखद दिन भी उसको चोट नहीं पहुँचा सकते। व्यवहार काल में भले राम जी राज्य छोड़ के वन गये, ‘हाय सीते !… हाय भैया लक्ष्मण!….’ किया लेकिन अंदर में दुःख नहीं हुआ। गांधी जी कई बार अंग्रेजों के कुचक्र के शिकार हुए लेकिन भीतर दुःखी नहीं हुए। क्यों ? कि ‘मैं जो भी काम कर रहा हूँ, मेरे राम की प्रसन्नता के लिए, ज्ञान के लिए कर रहा हूँ।’ उनका उद्देश्य भारतवासियों में और सबमें बसे हुए रामस्वरूप को पहचानने का था। सुबह-शाम प्रार्थना भई करते और शांत भी होते। तो अपने जीवन में उतार-चढ़ाव आयें तो अशांत नहीं होना और राग-द्वेष में फँसना नहीं है। आत्मवैभव को हम पहचानेंगे। इसका सरल उपाय है कि रात को सोते समय ‘हे परमात्मा ! तुम मेरे अन्तारात्मा हो, मैं तुम्हारा हूँ।’ जैसे पिता को, माता को बोलते हैं न, कि ‘मैं तुम्हारा हूँ’ तो उनका हृदय खिलता है, ऐसे ही आत्मदेव प्रसन्न होंगे। ठीक है ?

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 2 अंक 309

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पूज्य बापूजी के सद्भावना-वचन : जोधपुर से एतिहासिक सत्संग


 

 

पूज्य बापूजी ने हमेशा कानून-व्यवस्था को सहयोग दिया है एवं अपने साधकों को भी धैर्य व शांति बनाये रखने का संदेश समय-समय पर देते रहे हैं । जोधपुर कोर्ट का निर्णय आने के परिप्रेक्ष्य में पुलिस प्रशासन को सहयोग हो इसलिए पूज्य बापूजी ने पहले ही सभी साधकों को संदेश दिया था कि ‘25 अप्रैल को जोधपुर आना पैसे, श्रम, स्वास्थ्य और समय की बरबादी है ।’ विपरीत निर्णय आने के बावजूद सभीने समता, धैर्य एवं शांति का परिचय दिया । इस पर पूज्यश्री ने कहा है कि ‘मैं सभीको हृदयपूर्वक शाबाशी, धन्यवाद देता हूँ कि जोधपुर न आने की बात मान ली । मेरे उन माई के लालों को, उनके माता-पिताओं को धन्यवाद है । ‘चलो, जोधपुर पहुँचो । यह करो, वह करो…’ – सोशल मीडिया पर क्या-क्या डाल देते हैं । लेकिन सबने ऐसी अफवाहों को मटियामेट कर दिया और नहीं आये इससे मुझे बड़ी संतुष्टि है । पुलिस विभाग तथा और भी सब संतुष्ट हैं । जो जोधपुर नहीं आये, आज्ञा मानी उनकी गुरुभक्ति फली । पहले जो आ गये थे उनकी तपस्या फली, मान-अपमान सहा ।’
पूज्यश्री ने आश्रम के नाम पर फैलायी जानेवाली अफवाहों से सावधान किया है कि ‘कोई ऐसे भी लोग पैदा हो गये हैं कि आश्रम के लेटर पैड की नकल करके उसके द्वारा ‘फलानी पार्टी के विरुद्ध हमारे साधक यह करेंगे, वह करेंगे… हम इतने करोड़ साधक हैं… मैं फलाना संचालक हूँ ।’ यह सब नकली धौंस देते हैं पार्टियों को । हस्ताक्षर करके सोशल मीडिया पर डाल देते हैं अथवा और कुछ कर देते हैं । हमारे साधक ऐसी धौंस नहीं देते । यह हमारे शिष्यों की भाषा ही नहीं है । ऐसा कोई व्यक्ति फर्जी संचालक बन जाता है और साधकों को बदनाम करने के लिए प्रशासन या पुलिस से भिड़ाने की कोशिश करता है तो मेरे साधक भिड़ने की बेवकूफी नहीं करेंगे ।
‘बापू का वीर’ कहला के  कुछ-का-कुछ  बोल देते हैं, ऐसे लोगों की बातों में नहीं आओ । सबका भला हो । कोई गड़बड़ संदेश डालें तो उनसे सावधान तो रहना ही पड़ेगा । भ्रामक प्रचार में नहीं पड़ो, मेरे सिद्धांत पर ही चलो ।
उपद्रवियों एवं भड़कानेवालों से बचो । अहिंसा परमो धर्मः । हमारा किसी भी पार्टी, व्यक्ति या पब्लिसिटी चाहनेवालों से विरोध नहीं है ।
अब कोई बोलते हैं, ‘आश्रमवालों पर दबाव बनाओ । लीगलवाले ऐसे हैं – वैसे हैं…’ तो यह भड़काऊ लोगों का काम है । न लीगलवालों का कोई कसूर है न आश्रमवालों का, ये परिस्थितियाँ आती रहती हैं । आश्रमवाले बुरे नहीं हैं, सब हमारे प्यारे हैं, बच्चे हैं । जो अवसरवादी हैं वे आश्रमवालों को बदनाम करके खुद आश्रम के संचालक बनना चाहते हैं लेकिन उनको पता नहीं है कि हमारे भक्त जानते हैं कि आश्रमवाले बापू को चाहते हैं, बच्चे-बच्चियाँ – सभी चाहते हैं ।
जो लोग बाहर से नहीं चाहते हैं वे भी सत्संग सुनते हैं और भीतर से तो ‘वाह ! वाह !’ करते हैं । जेल में 1500 भाई रहते हैं, कोई भी मेरे प्रति नाराज नहीं है । बस, उछालनेवालों ने तो उछाल दिया कि ‘कैदियों ने थालियाँ बजायीं…’ नहीं, उन  बेचारों ने  तो खाना  छोड़ दिया । ‘बापू फफक-फफक के रोये…’ बापू ऐसे नहीं हैं । ‘बापू को यह हो गया – वह हो गया’ – ऐसी बातों में नहीं आना । बापू के बच्चे, नहीं रहेंगे कच्चे !
जो दुःखी हो गये थे, मेरे को प्रसन्न देखकर उनका दुःख भी मिट जाता है । बापू मौज में हैं क्योंकि बापू ने बड़े बापू (साँईं लीलाशाहजी महाराज) की बात मान ली । आप भी मेरी बात मान लो । परिस्थितियाँ व आँधी-तूफान आते हैं परंतु बाद में मौसम बड़ा सुखदायी हो जाता है । बढ़िया, सुखदायी परिस्थितियाँ आयेंगी ।
हमारे साधकों पर राजनीति का कीचड़ मत उछालो । किसी पार्टी को बदनाम करने की कोशिश न करो । भगवान सबका भला करे । हम किसीको क्यों कोसें ?’
बापूजी ने धैर्य एवं उमंग बनाये रखने की हिदायत भी दी है कि ‘बड़े मनवाले बनो । जितनी बड़ी गाज गिरती है उतने बड़े रास्ते भी बन जाते हैं । तो ऐसा नहीं है कि जो हो गया वह सब आखिरी है । ऊपर और भी न्यायालय हैं, कहीं गलती होती है तो दूसरा ऊपर का न्यायालय सुधार लेता है । तो बड़े मनवाले भी बनो और धैर्यवान भी बनो !

महामनाः स्यात्, तद् व्रतम् । 
तपन्तं न निन्देत्, वर्षन्तं न निन्देत्, ऋतून् न निन्देत्, लोकान् न निन्देत्, पशून् न निन्देत्, मज्ज्ञो नाश्नीयात्, तद् व्रतम् ।

बड़े मनवाले बनो, उदार हृदयवाले बनो, यह व्रत है । गर्मी बढ़ गयी, निंदा न करें । बरसते हुए मेघ की भी निंदा न करें । और भी ऋतुएँ आयेंगी, उनकी निंदा न करें । लोगों की निंदा न करें, पशुओं की निंदा न करें । मांस, मछली आदि न खायें । उपद्रव न करें न करवायें । यह व्रत है । – यह उपनिषद् का वचन मैंने आत्मसात् किया है तो मैं तो मौज में ही रहता हूँ । फिर आप क्यों दुःखी होंगे ! यही तो जीवन का फल है ।’
हर परिस्थिति में सम रहने की सीख देते हुए बापूजी ने कहा है कि ‘जरा-सा डंडा देखकर पूँछ दब जाय (डर जायें), जरा-सा ब्रेड (अनुकूलता) देख के पूँछ हिलने लग जाय (खुश हो जायें) तो कुत्ते में और मनुष्य में क्या फर्क है ? जरा-सा दुःख आ जाय और दुःखी हो जायें, जरा-सा सुख आ जाय तो छाती फुला लें… नहीं, श्रीकृष्ण कहते हैं :

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ।।
 (गीता : 6.32)

सुखद परिस्थिति आ जाय चाहे दुःखद आ जाय… आयी है वह जायेगी । तो अभी ऐसी परिस्थिति आयी है वह भी जायेगी, क्या फर्क पड़ता है ! तुम नित्य रहनेवाले हो और शरीर व परिस्थितियाँ अनित्य हैं । अपने-आपको याद करो, ‘मैं अमर हूँ, चैतन्य हूँ… ।’ लीलाशाह भगवान ने मुझे जो सिखाया वही मैं तुम्हें सिखा रहा हूँ । सीख लो, बस ।
न बेवकूफ बनो न बेवकूफ बनाओ । न दुःखी रहो न दुःखी बनाओ । दुःखाकार और सुखाकार वृत्तियाँ आती हैं, चली जाती हैं । तुम दोनों के साक्षी हो । अपने-आपमें रहो । दुःख आया, सुख आया तो उनसे प्रभावित न होओ । सत्संग होता रहे, सत्कर्म होते रहें ।

बहुत गयी थोड़ी रही, व्याकुल मन मत हो ।
धीरज सबका मित्र है, करी कमाई मत खो ।।

सुख के बड़े प्रलोभन आयें या दुःख के बड़े पहाड़ गिरें, बिजलियाँ चमकें तो घबराना नहीं, मजे में रहना ।

रात अँधियारी हो, घिरी घटाएँ काली हों ।
रास्ता सुनसान हो, आँधी और तूफान हों ।
मंजिल तेरी दूर हो, पाँव तेरे मजबूर हों ।
तो क्या करोगे ? डर जाओगे ?   ना…
रुक जाओगे ?   ना…   तो क्या करोगे ?

बं बं ॐ ॐ, हर हर ॐ ॐ, हर हर ॐ ॐ…

हास्य-प्रयोग करके चिंता, भ्रम और मायूसी को भगा दोगे तो मैं समझूँगा कि तुमने मेरी खूब आरतियाँ कर दीं ।
किसी प्रसिद्ध अखबार ने लिखा है कि ‘बापू के भक्त बोलते हैं कि ‘‘हम किसी मीडिया की बातों से या किसीकी मान्यता से बापू के शिष्य नहीं बने हैं ।’’ वे तो अभी भी इतनी श्रद्धा रखते हैं, यह गजब की बात है !’ मैं ऐसे मीडियावालों को भी धन्यवाद देता हूँ जो हमारे साधकों की सज्जनता को भी प्रकाशित करते हैं । और जिन्होंने नहीं किया वे भी करें । इलाहाबाद के प्रसिद्ध अखबारों ने किया है तो और मीडियावाले भी करें । और नहीं भी करें तब भी हम तो उनके लिए धन्यवाद ही देते हैं । जो नकारात्मक भी प्रचार करते हैं, उनको भी भगवान सद्बुद्धि दें ! जो भी, जैसा भी हो, सबका मंगल, सबका भला । 
भगवान आपकी कैसी साधना कराना चाहते हैं और मेरी परिपक्वता साधकों को कैसे दिखाना चाहते हैं, वह भगवान जो जानते हैं, वह तुम नहीं जानते हो । ऐसी परिस्थिति में भी बापू निर्लेप, निर्दुःख ! फिर तुम तो बापू के बच्चे हो, तुम काहे को दुःखी और परेशान होओगे ? सब बीत जायेगा ।
सत्संग करनेवाले सत्संग करते रहें, बाल संस्कार केन्द्र चलानेवाले बाल संस्कार केन्द्र चलाते रहें – जिसकी जो सेवा है, अपनी-अपनी जगह पर करते रहें ।

खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा ।
ये किश्ती तो हिलती जायेगी,
तू हँसता जा या रोता जा ।।

अरे ! ऐसा हो गया – वैसा हो गया… इसमें क्या है, हो-हो के बदल जाता है ।’
पूज्य बापूजी ने यह भी कहा है कि ‘नारायण साँईं, भारती, भारती की माँ – इतना ही मेरा परिवार नहीं है, मेरे सारे साधक मेरा ही परिवार हैं । और जो साधकों के सम्पर्क में हैं या साधकों को भला-बुरा मानते हैं वे भी मेरा ही परिवार हैं । इस बहाने भी तो वे साधकों का चिंतन करते हैं ! देर-सवेर वे भी प्यारे हो जायेंगे ।
कोई कहते हों, ‘तुम्हारे बापू ऐसे हैं – वैसे हैं…’ तो मैं पूछता हूँ कि हैदराबाद से ‘बायो मेडिकल इंजीनियरिंग’ और अमेरिका से एम.एस. की डिग्री प्राप्त किया हुआ शरद और साइकोलॉजी में एम.ए. की हुई शिल्पी – ये सज्जन माता-पिता के सज्जन बच्चे किसी बीमार लड़की को मेरे पास भेजें और बापू उससे छेड़छाड़ करें – ऐसा ये कर सकते हैं क्या ? और हम ऐसा कर सकते हैं क्या ? जो समय बताते हैं, उस समय में तो हम 9 से 11.15 बजे तक सत्संग व मँगनी के कार्यक्रम में थे । (उसके बाद वहाँ आये हुए भक्तों से बापूजी की कुछ समय तक बातचीत भी चली ।) तो यह सच्ची बात लोग देखते नहीं । जो कुछ आ गया, बोलते रहते हैं । हमको तो भरोसा है कि

साँच को आँच नहीं, झूठ को पैर नहीं ।

बाकी झूठा कितना भी प्रचार-प्रसार हो, कितने भी आरोप लग जायें तो क्या होगा ? मुझे तो गुरुओं के वचन याद हैं : बद होना बुरा, बदकर्म बुरा है लेकिन बदनाम होना बहुत बढ़िया है ।
मेरे बच्चे-बच्चियाँ भी बदनाम हो रहे हैं और मैं भी बदनाम हो रहा हूँ, ये तो बड़ी तपस्या के दिन आ गये ! वाह भाई वाह ! वाह, वाह !!’
पूज्यश्री ने कहा है कि ‘अलग-अलग गौशालाओं में जो 8500 गायें हैं, उनकी भी सेवा होती रहे । जो वृद्ध अथवा गरीब हैं, उनके लिए जो ‘भजन करो, भोजन करो, पैसा पाओ’ योजना चलती है, वह भी चलती रहे । गायों और गरीबों की सेवा चलती रहे सभी जगहों पर ।’

आगरा में सम्पन्न हुई गुरुकुलों की राष्ट्रस्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला


‘गुरुकुल केन्द्रीय प्रबंधन समिति’ द्वारा 5 से 7 मई 2017 तक ‘संत श्री आशाराम जी पब्लिक स्कूल, आगरा’ में ‘गुरुकुल अभ्यास वर्ग एवं प्रशिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया गया। कार्यशाला में भाग लेने पहुँचे देशभर के संत श्री आशाराम जी गुरुकुलों के प्रधानाचार्यों, शिक्षक-शिक्षिकाओं एवं गृहपतियों (छात्रावास) अध्यक्षों) ने विद्यार्थियों की उन्नति से जुड़े कई पहलुओं पर विचार-विमर्श किया। शिक्षा-क्षश्रेत्र में कार्यरत व सेवानिवृत्तत कई वरिष्ठ अनुभवी विद्वानों ने भी कार्यशाला में सम्मिलित होकर गुरुकुलों में दी जा रही शिक्षा की सराहना की व अपने विचार व्यक्त किये। कार्यशाला की पूर्णाहूति के दिन पूज्य श्री का संदेश आया, जिसे पाकर सबका हृदय आनंदित हो उठा और प्यारे गुरुवर की याद में नेत्र छलक पड़े।

पूज्य बापू जी का पावन संदेश

विद्यार्थियों व समाज में यह प्रसाद वितरित हो !

आगरा में ऊँचे उद्देश्य के लिए एकत्र हुए सभी भाई बहनों !

मनुष्य जीवन दुर्लभ है एवं क्षणभंगुर है। उसमें भी महापुरुषों का सम्पर्क और जीवन का उद्देश्य जानना और पाना परम-परम सौभाग्य है। डॉक्टर बनूँ, सेठ बनूँ, आचार्य बनूँ…. – ये बनाये हुए उद्देश्य पूरे होने के बाद भी मनुष्य ऊँची-नीची योनियों में भटकता फिरता रहता है। प्राणीमात्र का असली उद्देश्य अपने ‘सत्’ स्वभाव, चेतनस्वभाव, आनंदस्वभाव को आत्मज्ञान से पाना है।

न हि ज्ञाने सदृशं पवित्रमिह विद्यते। (गीताः 4.38)

अपना गुरुकुल चलाने का उद्देश्य है कि शिक्षक-शिक्षिकाएँ, आचार्य, गृहपति अपने कर्म को कर्मयोग, ज्ञानयोग बना दें। उनके ऊँचे उद्देश्य का फायदा विद्यार्थियों को मिले। उनका कुल खानदान धन्य हो जाय। भगवान शिव माता पार्वती को कहते हैं-

धन्या माता पिता धन्यो गोत्रं धन्यं कुलोद्भवः।

धन्या च वसुधा देवि यत्र स्याद् गुरुभक्तता।।

आप सभी को शाबाश है ! ऊँचे उद्देश्य को बनाना नहीं है, जानना है। छोटे आकर्षणों से बचकर शाश्वत आत्मा-परमात्मा का लाभ पाना है।

आत्मलाभात् परं लाभं न विद्यते।

आत्मज्ञानात् परं ज्ञानं न विद्यते।

आत्मसुखात् परं सुखं न विद्यते।

हम चाहते हैं कि आपको वह खजाना मिले व आपके द्वारा विद्यार्थियों व समाज में उसका प्रसादरूप में वितरण हो। प्रसादे सर्वदुःखानाम्….. उस प्रसाद से सारे दुःख सदा के लिए मिट जाते हैं। शरीर चाहे महल में रहें, चाहे जेल में रहें, आप सच्चिदानंद में रहना जान लो। यही शुभकामना…. इससे बड़ी शुभकामना त्रिलोकी में नहीं है।

शाबाश वीर ! धन्या माता पिता धन्यो… शिवजी का यह वचन तुम्हारे जीवन में सार्थक हो जायेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2017, पृष्ठ संख्या 31, अंक 294

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