देशवासियों व सरकार के नाम पूज्य बापू जी का राष्ट्र-हितकारी संदेश
गोझरण अर्क बनाने वाली संस्थाएँ एवं जो लोग गोमूत्र से फिनायल व खेतों के लिए जंतुनाशक दवाइयाँ बनाते हैं, वे 8 रूपये प्रति लिटर के मूल्य से गोमूत्र ले जाते हैं। गाय 24 घंटे में 7 लीटर मूत्र देती है तो 56 रूपये होते हैं। उसके मूत्र से ही उसका खर्चा आराम से चल सकता है। गाय के गोबर, दूध और उसकी उपस्थिति का फायदा देशवासियों को मिलेगा ही।
ऋषिकेश और देहरादून के बीच आम व लीची का बग़ीचा है। पहले वह 1 लाख 30 हजार रूपये में जाता था, बिल्कुल पक्की व सच्ची बात है। उनको गायें रखने की सलाह दी गयी तो वे 15 गायें जो दूध न देती थीं, लगभग निःशुल्क ले आये। उस बगीचे का ठेका दूसरे साल 2 लाख 40 हजार रुपये में गया। उनके अनुसार गायें उस धरती पर घूमने से, गोमूत्र व गोबर के प्रभाव से अब वह बग़ीचा 10 लाख रूपये में जाता है। अपने खेतों में गायों का होना पुण्यदायी, परलोक सुधारने वाला और यहाँ सुख-समृद्धि देने वाला साबित होगा।
अगर गोमूत्र, गौ-गोबर का खेत खलिहान में उपयोग हो जाये तो उनसे उत्पन्न अन्न, फल, सब्जियाँ प्रजा का कितना हित करेंगी, कल्पना नहीं कर सकते ! देशी गाय के दूध, छाछ, झरण, गोबर आदि से अनेक बीमारियों से रक्षा होती है और गौ-चिकित्सा के अंतर्गत इनके प्रयोग से विभिन्न बीमारियाँ मिटायी भी जाती हैं। पंचगव्य से तो कई असाध्य रोग भी मिटाये जाते हैं। गौ-चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक, प्राकृतिक आदि चिकित्सा-पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाय ताकि विदेशी दवाओं के लिए होने वाले हजारों करोड़ रूपयों के खर्च और उनके दुष्प्रभावों (साइड इफेक्टस) से बचा जा सके।
ऐसे मीडिया की 7-7 पीढ़ियाँ सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी
प्रजा हितैषी जो सरकारें हैं, उन मेरी प्यारी सरकारों को प्यार भरा प्रस्ताव पहुँचाओगे तो मुझे खुशी होगी। मानव व देश का भला चाहने वाले प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया इस बात के प्रचार का पुनीत कार्य करेंगे तो मानव के स्वास्थ्य व समृद्धि की रक्षा करने का पुण्य भी मिलेगा, प्रसन्नता भी मिलेगी व भारत देश की सुहानी सेवा करने वाले मीडिया को देशवासी कितनी ऊँची नज़र से देखेंगे और दुआएँ देंगे ! उनकी 7-7 पीढ़ियाँ इस सेवाकार्य से सुखी, समृद्ध व सद्गति को प्राप्त होंगी
केमिकल की फिनायल व उसकी दुर्गंध से हवामान दूषित होता है। गौ-फिनायल से आपकी सात्त्विकता, सुवासितता बढ़ेगी ही।
सज्जन सरकारें, प्रजा का हित चाहने वाली सरकारें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं। गौ-गोबर के कंडे से जो धुआँ निकलता है, उससे हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं। शव के साथ श्मशान तक की यात्रा में मटके में गौ-गोबर के कंडे जलाकर ले जाने की प्रथा के पीछे हमारे दूरद्रष्टा ऋषियों की शव के हानिकारक कीटाणुओं से समाज की सुरक्षा लक्षित है।
अगर गौ-गोबर का 10 ग्राम ताजा रस प्रसूति वाली महिला को देते हैं तो बिना ऑपरेशन के सुखदायी प्रसूति होती है।
गोधरा (गुजरात) के प्रसिद्ध तेल-व्यापारी रेवाचंद मगनानी की बहू के लिए गोधरा व बड़ौदा के डॉक्टरों ने कहा थाः “इनका गर्भ टेढ़ा हो गया है। उसी के कारण शरीर ऐसा हो गया है, वैसा हो गया है…. सिजेरियन (ऑपरेशन) ही कराना पड़ेगा।” आखिर अहमदाबाद गये। वहाँ 5 डॉक्टरों ने मिलकर जाँच की और आग्रह किया कि “जल्दी सिजेरियन के लिए हस्ताक्षर करो, या तो संतान बचेगी या तो माँ, और यदि संतान बचेगी तो वह अर्धविक्षिप्त होगी। अतः सिजेरियन से एक की जान बचा लो।”
परिवार ने मेरे से सिजेरियन की आज्ञा माँगी। मैंने मना करते हुए गौ-गोबर के रस का प्रयोग बताया। न माँ मरी न संतान मरी और न कोई अर्धविक्षिप्त रहा। प्रत्यक्ष प्रमाण देखना चाहें तो देख सकते हैं। अभी वह लड़की महाविद्यालय में पढ़ती होगी। अच्छे अंक लाती है। माँ भी स्वस्थ है। कई लोग देख के भी आये। कइयों ने उनके अनुभव की विडियो क्लिप भी देखी होगी। गौ-गोबर के रस द्वारा सिजेरियन से बचे हुए कई लोग हैं।
विदेशी जर्सी तथाकथित गायों के दूध आदि से मधुमेह, धमनियों में खून जमना, दिल का दौरा, ऑटिज्म, स्किजोफ्रेनिया (एक प्रकार का मानसिक रोग), मैड काऊ, ब्रुसेलोसिस, मस्तिष्क ज्वर आदि भयंकर बीमारियाँ होने का वैज्ञानिकों द्वारा पर्दाफाश किया गया है। परंतु भारत की देशी गाय के दूध में ऐसे तत्त्व हैं जिनसे एच.आई.वी. संक्रमण, पेप्टिक अल्सर, मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, स्तन व त्वचा का कैंसर आदि अनेक रोगों से रक्षा होती है। उसमें स्वर्ण-क्षार भी पाये गये हैं। गाय के दूध-घी का पीलापन स्वर्ण-क्षार की पहचान है। लाइलाज व्यक्ति को भी गौ-सान्निध्य व गौसेवा से 6 से 12 महीने में स्वस्थ किया जा सकता है।
पुनः, गोमूत्र, गोबर से निर्मित खाद एवं गौ-उपस्थिति का खेतों में सदुपयोग ! भारत को भूकम्प की आपदायों से बचाने के लिए मददगार है गौसेवा !
लोग कहते हैं कि ‘आप 8000 गायों का पालन पोषण करते हैं !’ तो मैं तुरंत कहता हूँ कि ‘वे हमारा पालन-पोषण करती हैं। उन्होंने हमसे नहीं कहा कि हमारा पालन-पोषण करो, हमें सँभालो। हमारी गरज से हम उनकी सेवा करते हैं, सान्निध्य लेते हैं।’
महाभारत (अनुशासन पर्वः 80.3) में महर्षि वसिष्ठ जी कहते हैं- “गौएँ मेरे आगे रहें। गौएँ मेरे पीछे भी रहें। गौएँ मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूँ।”
हे साधको ! देशवासियो ! सुज्ञ सरकारो ! इस बात पर आप सकारात्मक ढंग से सोचने की कृपा करें।
आप सभी का स्नेही
आशाराम बापू, जोधपुर।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2016, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 284
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