यूरी एक्जेन्ड्रोविच बेज्मेनोव, रूस, केजीबी के पूर्व प्रचार एजेंट व विशेषज्ञ
किसी देश की सैद्धान्तिक विचारधारा का नष्टीकरण यह एक खुल्लम-खुल्ला तरीका है जिसके जरिये किसी भी देश, जाति, धर्म के सिद्धान्त, विचारधारा और व्यवस्था का नाश करके दुसरे देश की विचारधारा और व्यवस्था स्थापित की जाती है। सोवियत रूस की जासूस एजेंसी केजीबी का ज्यादातर काम जासूसी का नहीं है बल्कि दूसरे देशों की सत्ता, व्यवस्था को नष्ट या परिवर्तित करने का है। केवल 15 प्रतिशत समय और पैसा जासूसी में लगता है, बाकी 85 प्रतिशत एक कूटनीतिक चाल से धीरे व चुपके से, सालों-साल की मेहनत द्वारा उठा-पटक करके लोगों का ब्रेनवॉश कर उनका मन और विचारधारा बदल के देश की व्यवस्था को नष्ट या मूलभूत रूप से परिवर्तित करने के लिए लगाया जाता है। जैसे हम हर अमेरिकन का दिमाग बदलकर ऐसा कर देते हैं कि वे सच्चाई को समझ-बूझ ही न पायें। चाहे आप उसके सामने सारी सच्चाई खोलकर रख दें फिर भी वे अपनी, अपने परिवार, जाति, धर्म तथा अपने देश की रक्षा न कर पायें। यह एक बहुत बड़ा ब्रेनवॉश या पागल या स्थायी मूर्ख बनाने का सीधा तरीका है, जिससे किसी देश की पूरी जनसंख्या की विचारधारा और व्यवहार को बदला जाता है। यह बहुत चतुराई से धीरे-धीरे करना होता है ताकि देश की जनता को इसका बिल्कुल भी आभास न हो। इस तरीके के चार चरण हैं-
Demoralisation or corrupting morals. (भ्रष्टीकरण या नैतिक पतन)
Destablisation. (अस्थिरीकरण यानी देश की संस्कृति को पलटना या गिराना)
Crisis. (धर्म व संस्कृति को नष्ट करना)
Normalisation. (शिक्षा और सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करना)
जैसे मोहनजोदड़ो, बेबीलोन, मिश्र आदि की प्राचीन सभ्यताएँ केवल इसीलिए ही तहस-नहस हो गयीं क्योंकि उनकी शिक्षा, धर्म, संस्कृति और उनका सामाजिक ढाँचा गिरा दिया गया था। कुछ वर्ष पहले जापानी लोग अपनी संस्कृति, विचारधारा, सभ्यता, परम्परा व मूल्यों आदि को सही सलामत व अखंड रखने के लिए बाहरी किसी भी देश की कोई भी चीज स्वीकार नहीं करते थे।
पहला चरण Demoralisation या स्वाभिमान और मनोबल नष्ट करने का होता है। इसमें जनता को निरुत्साहित किया जाता है। यह बुद्धि भ्रष्ट करने की बहुत ही धीमी प्रक्रिया है। इसमें 15 से 20 साल लगते हैं क्योंकि एक पूरी पीढ़ी का मनोबल और स्वाभिमान नष्ट करना पड़ता है। युवा पीढ़ी का 15-20 वर्ष की अवधि में भ्रष्टीकरण या नैतिक पतन करके देश की व्यवस्था को तहस-नहस किया जाता है। पूरी एक पीढ़ी के विद्यार्थियों को यह सिखाना पड़ता है कि तुम्हारे देश की व्यवस्था सड़ी गली है और विदेशियों की बहुत अच्छी है। इससे आप अपने दुश्मन के नवयुवकों की विचारधारा पर कब्जा कर लेते हैं। इसके लिए प्रोफेसर आदि बुद्धिजीवी लोग उस युवा पीढ़ी का अस्थिरीकरण करने और उनके दिमागों को पलटने के लिए विदेशी षड्यंत्रकारियों के हथियार व मोहरा बनते हैं।
जैसे कि मार्क्सिस्ट, लेनिनिस्ट या कम्युनिस्ट विचारधारा को तीन पीढ़ियों के दिमाग में हम भर रहे हैं, जिससे वे हमारे अनुसार ही सोचने लगें। इसको वे समय नहीं पाते और अपने देश की मूलभूत विचारधारा और देशभक्ति को छोड़कर हमारे चंगुल में आ के फँस जाते हैं। हमारा बहुत-सा जासूसी का काम पहले उन लोगों की जानकारी इकट्ठा करने में लगता है, जिनका इस्तेमाल हम उस देश के बच्चों की विचारधारा नष्ट कर हमारी विचारधारा थोपने के लिए कर सकते हैं। इसमें प्रकाशक, सम्पादक, पत्रकार, एक्टर, अध्यापक, राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर, संसद सदस्य, व्यापारिक संगठनों के प्रवक्ता इत्यादि लोगों का हम इस्तेमाल करते हैं। इनको हम दो भागों में बाँटते हैं, एक तो वे जो सोवियत विचारधारा या कम्युनिस्ट विचारधारा को बढ़ावा देंगे, उन्हें हम महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठाते हैं ताकि वे मीडिया और लोकसंचार के जरिये लोगों को हमारी विचारधारा में बहकायें। और दूसरे वे जो हमारे खिलाफ हैं उन्हें हम नष्ट करते हैं, उनके चरित्र पर लांछन लगाकर, अफवाहें फैला के अथवा उनकी हत्या करवाकर या दुर्घटना में उनकी मौत दिखाते हैं।
इस कूटनीति के अंतर्गत युवाओं का नैतिक पतन करते हैं, जिसमें विद्यार्थियों को गलत तथ्य और जानकारी सिखाकर गुमराह किया जाता है। ऐसे में बुद्धिजीवी तबका जैसे प्रोफेसर इत्यादि देश की संस्कृति को नष्ट करने में कठपुतली बन जाते हैं। इनकी गतिविधियाँ धर्म, देश की सरकारी व आर्थिक पद्धति का विनाश करने का हिस्सा हैं और उनकी विनाशकारी गतिविधियाँ विषैली मीठी गोलियों की भाँति होती हैं। उनके गहरे षड्यंत्रों का देश के लोगों को एहसास भी नहीं हो पाता। ऐसे में देश के छुपे हुए शत्रु होते हैं परंतु शत्रु जैसे नजर ही नहीं आते इसलिए वे धीरे-धीरे देश को अंदर से खोखला कर देते हैं। ऐसा देश फिर रेत पर बने महल की तरह किसी भी समय गिरकर उसकी छत के नीचे सोनेवालों की कब्र बन जाता है।
इसके लिए बेशुमार व अनर्गल विदेशी कचरा-साहित्य का आयात किया जाता है और युवा पीढ़ी को इसका निशाना बनाया जाता है क्योंकि वर्षों से कुपोषित व घटिया भोजन (फास्टफूड आदि) को खा-खा कर वे उनका विरोध करने की मानसिक व शारीरिक शक्ति खो चुके होते हैं। विदेशी कम्पनियाँ केवल उन्हीं टीवी चैनलों को अपने विज्ञापन देती हैं, जो उनकी रद्दी व बेकार वस्तुओं का प्रचार-प्रसार करते हैं।
अभी भारत देश में स्वाभिमान और मनोबल को नष्ट करने का काम पूरा हो चुका है। यदि आप अभी भी इसका इलाज करना चाहते हैं तो आपको एक नयी पीढ़ी को स्वाभिमानी, देशप्रेमी और उत्साही बनाने में 15-20 साल लग जायेंगे। तभी नयी पीढ़ी इस सच्चाई को ठीक से समझ पायेगी और इस नैतिक और मानसिक आक्रमण से अपनी, अपने परिवार, जाति व देश की रक्षा कर पायेगी।
(रूस के बहुत से बुद्धिजीवी लोग कम्युनिस्ट नीति से तंग आ के जान का जोखिम उठाकर विदेश चले गये। उनमें से एक हैं यूरी एक्जेन्ड्रोविच बेज्मेनोव। वे अभी अमेरिका में रहते हैं।
आज भारत के हितचिंतकों व देशप्रेमी जनता को को जागने तथा सावधान होने की जरूरत है। यह षड्यंत्र हमारे देश में बहुत तेजी से चल रहा है। भारत के युवाओं की विचारधारा को दैवी, सबल व भारतीय संस्कारों से ओत-प्रोत बनाने का काम जो संत कर रहे हैं, आज उन्हीं के चरित्र पर लांछन लगाकर विदेशी कूटनीतिक षड्यंत्र द्वारा भारत की युवा पीढ़ी को खोखला व गुलाम बनाया जा रहा है। अतः हम सभी को सजग व एकजुट हो के इस षड्यंत्र को विफल करना चाहिए। यह हर एक भारतीय का कर्तव्य है। इन विदेशी ताकतों को अपने देश से तुरन्त ही उखाड़ के फेंक देना चाहिए।
आज भारत में संस्कृति के आधारस्तम्भ निर्दोष संतों पर अत्याचार किये जा रहे हैं, फिर भी हम सब जाग नहीं रहे हैं। गुमराह करने वाले झूठी खबरें दिखाये जा रहे हैं, छापे जा रहे हैं। उपरोक्त व्यापक योजना के तहत जिन हिन्दुओं का ब्रेनवॉश हो चुका है, जिनका डिमोरलाइजेशन हो चुका है उन्हीं को अधिकांश मीडियावालों द्वारा समाज के सामने ला-लाकर पेश किया जा रहा है और दूसरे लोगों को भी निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है।
इसलिए अनेक ‘बाल संस्कार केन्द्रों’ आदि के माध्यम से हमें नयी पीढ़ी को अपनी संस्कृति के मूल्यों से अवगत कराना पड़ेगा। अन्यथा षड्यंत्र का दूसरा चरण Destablisation भी शुरु हो जायेगा और कालांतर में यह संस्कृति के अत्यधिक घातक सिद्ध होगा।
यूरी एक्जेन्ड्रोविच बेज्मेनोव के वक्तव्य के के विडियो को आप इस लिंक पर देख सकते हैं- https://www.youtube.com/watch?v=HpwPqK6RUGE
इसका प्रचार प्रसार करके देशवासियों को इस देश को विखंडित करने वाली विदेशी ताकतों की कूटनीति से अवगत कराना भी राष्ट्रसेवा का उत्तम कार्य है।
वरिष्ठ पत्रकार श्री अरुण रामतीर्थंकर
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 23-25, अंक 252
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