पूज्य बापूजी के सद्भावना-वचन : जोधपुर से एतिहासिक सत्संग

पूज्य बापूजी के सद्भावना-वचन : जोधपुर से एतिहासिक सत्संग


 

 

पूज्य बापूजी ने हमेशा कानून-व्यवस्था को सहयोग दिया है एवं अपने साधकों को भी धैर्य व शांति बनाये रखने का संदेश समय-समय पर देते रहे हैं । जोधपुर कोर्ट का निर्णय आने के परिप्रेक्ष्य में पुलिस प्रशासन को सहयोग हो इसलिए पूज्य बापूजी ने पहले ही सभी साधकों को संदेश दिया था कि ‘25 अप्रैल को जोधपुर आना पैसे, श्रम, स्वास्थ्य और समय की बरबादी है ।’ विपरीत निर्णय आने के बावजूद सभीने समता, धैर्य एवं शांति का परिचय दिया । इस पर पूज्यश्री ने कहा है कि ‘मैं सभीको हृदयपूर्वक शाबाशी, धन्यवाद देता हूँ कि जोधपुर न आने की बात मान ली । मेरे उन माई के लालों को, उनके माता-पिताओं को धन्यवाद है । ‘चलो, जोधपुर पहुँचो । यह करो, वह करो…’ – सोशल मीडिया पर क्या-क्या डाल देते हैं । लेकिन सबने ऐसी अफवाहों को मटियामेट कर दिया और नहीं आये इससे मुझे बड़ी संतुष्टि है । पुलिस विभाग तथा और भी सब संतुष्ट हैं । जो जोधपुर नहीं आये, आज्ञा मानी उनकी गुरुभक्ति फली । पहले जो आ गये थे उनकी तपस्या फली, मान-अपमान सहा ।’
पूज्यश्री ने आश्रम के नाम पर फैलायी जानेवाली अफवाहों से सावधान किया है कि ‘कोई ऐसे भी लोग पैदा हो गये हैं कि आश्रम के लेटर पैड की नकल करके उसके द्वारा ‘फलानी पार्टी के विरुद्ध हमारे साधक यह करेंगे, वह करेंगे… हम इतने करोड़ साधक हैं… मैं फलाना संचालक हूँ ।’ यह सब नकली धौंस देते हैं पार्टियों को । हस्ताक्षर करके सोशल मीडिया पर डाल देते हैं अथवा और कुछ कर देते हैं । हमारे साधक ऐसी धौंस नहीं देते । यह हमारे शिष्यों की भाषा ही नहीं है । ऐसा कोई व्यक्ति फर्जी संचालक बन जाता है और साधकों को बदनाम करने के लिए प्रशासन या पुलिस से भिड़ाने की कोशिश करता है तो मेरे साधक भिड़ने की बेवकूफी नहीं करेंगे ।
‘बापू का वीर’ कहला के  कुछ-का-कुछ  बोल देते हैं, ऐसे लोगों की बातों में नहीं आओ । सबका भला हो । कोई गड़बड़ संदेश डालें तो उनसे सावधान तो रहना ही पड़ेगा । भ्रामक प्रचार में नहीं पड़ो, मेरे सिद्धांत पर ही चलो ।
उपद्रवियों एवं भड़कानेवालों से बचो । अहिंसा परमो धर्मः । हमारा किसी भी पार्टी, व्यक्ति या पब्लिसिटी चाहनेवालों से विरोध नहीं है ।
अब कोई बोलते हैं, ‘आश्रमवालों पर दबाव बनाओ । लीगलवाले ऐसे हैं – वैसे हैं…’ तो यह भड़काऊ लोगों का काम है । न लीगलवालों का कोई कसूर है न आश्रमवालों का, ये परिस्थितियाँ आती रहती हैं । आश्रमवाले बुरे नहीं हैं, सब हमारे प्यारे हैं, बच्चे हैं । जो अवसरवादी हैं वे आश्रमवालों को बदनाम करके खुद आश्रम के संचालक बनना चाहते हैं लेकिन उनको पता नहीं है कि हमारे भक्त जानते हैं कि आश्रमवाले बापू को चाहते हैं, बच्चे-बच्चियाँ – सभी चाहते हैं ।
जो लोग बाहर से नहीं चाहते हैं वे भी सत्संग सुनते हैं और भीतर से तो ‘वाह ! वाह !’ करते हैं । जेल में 1500 भाई रहते हैं, कोई भी मेरे प्रति नाराज नहीं है । बस, उछालनेवालों ने तो उछाल दिया कि ‘कैदियों ने थालियाँ बजायीं…’ नहीं, उन  बेचारों ने  तो खाना  छोड़ दिया । ‘बापू फफक-फफक के रोये…’ बापू ऐसे नहीं हैं । ‘बापू को यह हो गया – वह हो गया’ – ऐसी बातों में नहीं आना । बापू के बच्चे, नहीं रहेंगे कच्चे !
जो दुःखी हो गये थे, मेरे को प्रसन्न देखकर उनका दुःख भी मिट जाता है । बापू मौज में हैं क्योंकि बापू ने बड़े बापू (साँईं लीलाशाहजी महाराज) की बात मान ली । आप भी मेरी बात मान लो । परिस्थितियाँ व आँधी-तूफान आते हैं परंतु बाद में मौसम बड़ा सुखदायी हो जाता है । बढ़िया, सुखदायी परिस्थितियाँ आयेंगी ।
हमारे साधकों पर राजनीति का कीचड़ मत उछालो । किसी पार्टी को बदनाम करने की कोशिश न करो । भगवान सबका भला करे । हम किसीको क्यों कोसें ?’
बापूजी ने धैर्य एवं उमंग बनाये रखने की हिदायत भी दी है कि ‘बड़े मनवाले बनो । जितनी बड़ी गाज गिरती है उतने बड़े रास्ते भी बन जाते हैं । तो ऐसा नहीं है कि जो हो गया वह सब आखिरी है । ऊपर और भी न्यायालय हैं, कहीं गलती होती है तो दूसरा ऊपर का न्यायालय सुधार लेता है । तो बड़े मनवाले भी बनो और धैर्यवान भी बनो !

महामनाः स्यात्, तद् व्रतम् । 
तपन्तं न निन्देत्, वर्षन्तं न निन्देत्, ऋतून् न निन्देत्, लोकान् न निन्देत्, पशून् न निन्देत्, मज्ज्ञो नाश्नीयात्, तद् व्रतम् ।

बड़े मनवाले बनो, उदार हृदयवाले बनो, यह व्रत है । गर्मी बढ़ गयी, निंदा न करें । बरसते हुए मेघ की भी निंदा न करें । और भी ऋतुएँ आयेंगी, उनकी निंदा न करें । लोगों की निंदा न करें, पशुओं की निंदा न करें । मांस, मछली आदि न खायें । उपद्रव न करें न करवायें । यह व्रत है । – यह उपनिषद् का वचन मैंने आत्मसात् किया है तो मैं तो मौज में ही रहता हूँ । फिर आप क्यों दुःखी होंगे ! यही तो जीवन का फल है ।’
हर परिस्थिति में सम रहने की सीख देते हुए बापूजी ने कहा है कि ‘जरा-सा डंडा देखकर पूँछ दब जाय (डर जायें), जरा-सा ब्रेड (अनुकूलता) देख के पूँछ हिलने लग जाय (खुश हो जायें) तो कुत्ते में और मनुष्य में क्या फर्क है ? जरा-सा दुःख आ जाय और दुःखी हो जायें, जरा-सा सुख आ जाय तो छाती फुला लें… नहीं, श्रीकृष्ण कहते हैं :

आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ।।
 (गीता : 6.32)

सुखद परिस्थिति आ जाय चाहे दुःखद आ जाय… आयी है वह जायेगी । तो अभी ऐसी परिस्थिति आयी है वह भी जायेगी, क्या फर्क पड़ता है ! तुम नित्य रहनेवाले हो और शरीर व परिस्थितियाँ अनित्य हैं । अपने-आपको याद करो, ‘मैं अमर हूँ, चैतन्य हूँ… ।’ लीलाशाह भगवान ने मुझे जो सिखाया वही मैं तुम्हें सिखा रहा हूँ । सीख लो, बस ।
न बेवकूफ बनो न बेवकूफ बनाओ । न दुःखी रहो न दुःखी बनाओ । दुःखाकार और सुखाकार वृत्तियाँ आती हैं, चली जाती हैं । तुम दोनों के साक्षी हो । अपने-आपमें रहो । दुःख आया, सुख आया तो उनसे प्रभावित न होओ । सत्संग होता रहे, सत्कर्म होते रहें ।

बहुत गयी थोड़ी रही, व्याकुल मन मत हो ।
धीरज सबका मित्र है, करी कमाई मत खो ।।

सुख के बड़े प्रलोभन आयें या दुःख के बड़े पहाड़ गिरें, बिजलियाँ चमकें तो घबराना नहीं, मजे में रहना ।

रात अँधियारी हो, घिरी घटाएँ काली हों ।
रास्ता सुनसान हो, आँधी और तूफान हों ।
मंजिल तेरी दूर हो, पाँव तेरे मजबूर हों ।
तो क्या करोगे ? डर जाओगे ?   ना…
रुक जाओगे ?   ना…   तो क्या करोगे ?

बं बं ॐ ॐ, हर हर ॐ ॐ, हर हर ॐ ॐ…

हास्य-प्रयोग करके चिंता, भ्रम और मायूसी को भगा दोगे तो मैं समझूँगा कि तुमने मेरी खूब आरतियाँ कर दीं ।
किसी प्रसिद्ध अखबार ने लिखा है कि ‘बापू के भक्त बोलते हैं कि ‘‘हम किसी मीडिया की बातों से या किसीकी मान्यता से बापू के शिष्य नहीं बने हैं ।’’ वे तो अभी भी इतनी श्रद्धा रखते हैं, यह गजब की बात है !’ मैं ऐसे मीडियावालों को भी धन्यवाद देता हूँ जो हमारे साधकों की सज्जनता को भी प्रकाशित करते हैं । और जिन्होंने नहीं किया वे भी करें । इलाहाबाद के प्रसिद्ध अखबारों ने किया है तो और मीडियावाले भी करें । और नहीं भी करें तब भी हम तो उनके लिए धन्यवाद ही देते हैं । जो नकारात्मक भी प्रचार करते हैं, उनको भी भगवान सद्बुद्धि दें ! जो भी, जैसा भी हो, सबका मंगल, सबका भला । 
भगवान आपकी कैसी साधना कराना चाहते हैं और मेरी परिपक्वता साधकों को कैसे दिखाना चाहते हैं, वह भगवान जो जानते हैं, वह तुम नहीं जानते हो । ऐसी परिस्थिति में भी बापू निर्लेप, निर्दुःख ! फिर तुम तो बापू के बच्चे हो, तुम काहे को दुःखी और परेशान होओगे ? सब बीत जायेगा ।
सत्संग करनेवाले सत्संग करते रहें, बाल संस्कार केन्द्र चलानेवाले बाल संस्कार केन्द्र चलाते रहें – जिसकी जो सेवा है, अपनी-अपनी जगह पर करते रहें ।

खून पसीना बहाता जा, तान के चादर सोता जा ।
ये किश्ती तो हिलती जायेगी,
तू हँसता जा या रोता जा ।।

अरे ! ऐसा हो गया – वैसा हो गया… इसमें क्या है, हो-हो के बदल जाता है ।’
पूज्य बापूजी ने यह भी कहा है कि ‘नारायण साँईं, भारती, भारती की माँ – इतना ही मेरा परिवार नहीं है, मेरे सारे साधक मेरा ही परिवार हैं । और जो साधकों के सम्पर्क में हैं या साधकों को भला-बुरा मानते हैं वे भी मेरा ही परिवार हैं । इस बहाने भी तो वे साधकों का चिंतन करते हैं ! देर-सवेर वे भी प्यारे हो जायेंगे ।
कोई कहते हों, ‘तुम्हारे बापू ऐसे हैं – वैसे हैं…’ तो मैं पूछता हूँ कि हैदराबाद से ‘बायो मेडिकल इंजीनियरिंग’ और अमेरिका से एम.एस. की डिग्री प्राप्त किया हुआ शरद और साइकोलॉजी में एम.ए. की हुई शिल्पी – ये सज्जन माता-पिता के सज्जन बच्चे किसी बीमार लड़की को मेरे पास भेजें और बापू उससे छेड़छाड़ करें – ऐसा ये कर सकते हैं क्या ? और हम ऐसा कर सकते हैं क्या ? जो समय बताते हैं, उस समय में तो हम 9 से 11.15 बजे तक सत्संग व मँगनी के कार्यक्रम में थे । (उसके बाद वहाँ आये हुए भक्तों से बापूजी की कुछ समय तक बातचीत भी चली ।) तो यह सच्ची बात लोग देखते नहीं । जो कुछ आ गया, बोलते रहते हैं । हमको तो भरोसा है कि

साँच को आँच नहीं, झूठ को पैर नहीं ।

बाकी झूठा कितना भी प्रचार-प्रसार हो, कितने भी आरोप लग जायें तो क्या होगा ? मुझे तो गुरुओं के वचन याद हैं : बद होना बुरा, बदकर्म बुरा है लेकिन बदनाम होना बहुत बढ़िया है ।
मेरे बच्चे-बच्चियाँ भी बदनाम हो रहे हैं और मैं भी बदनाम हो रहा हूँ, ये तो बड़ी तपस्या के दिन आ गये ! वाह भाई वाह ! वाह, वाह !!’
पूज्यश्री ने कहा है कि ‘अलग-अलग गौशालाओं में जो 8500 गायें हैं, उनकी भी सेवा होती रहे । जो वृद्ध अथवा गरीब हैं, उनके लिए जो ‘भजन करो, भोजन करो, पैसा पाओ’ योजना चलती है, वह भी चलती रहे । गायों और गरीबों की सेवा चलती रहे सभी जगहों पर ।’

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