Monthly Archives: November 2022

दरिद्रता दूर, रोजी-रोटी में बरकत भरपूर – पूज्य बापू जी


दरिद्रता भगानी हो तो व्यर्थ खर्च न करो । ब्याज पर कर्ज ले के गाड़ियाँ न खरीदो एवं मकान न बनाओ । आवक बढ़ानी हो अथवा बरकत लानी हो तो मंत्र हैः ‘ॐ अच्युताय नमः’ जिसका पद कभी च्युत नहीं होता… इन्द्रपद भी च्युत हो जाता है, ब्रह्मा जी का पद भी च्युत हो जाता है फिर भी जो च्युत नहीं होते अपने स्वभाव से, अपने आपसे, उन परमेश्वर ‘अच्युत’ को हम नमस्कार करते हैं । अच्युतं केशवं रामनारायणं… ‘ॐ अच्युताय नमः’ मंत्र की गुरुवार से गुरुवार 2 सप्ताह या 4 सप्ताह तक 11 मालाएँ रोज जप करे । कुछ ही दिनों में यह मंत्र सिद्ध हो जायेगा । फिर जो काम-धंधा या नौकरी करता है वह जल में देखते हुए 21 बार जप करे और दायाँ नथुना बंद करके बायाँ स्वर चलाकर वह जल पिये । इससे रोजी-रोटी में बरकत होती है और दरिद्रता मिटती है । बोलेः ‘अच्युताय नमः… करने से क्या होता है ?’ श्रद्धा से करके देख ले । आजमायेगा तो श्रद्धा नहीं रहेगी । श्रद्धा से करेगा तो दरिद्रता नहीं रहेगी । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 10 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बीरबल की बुद्धिमत्ता का कमाल – पूज्य बापू जी


‘सभा में कितने बहरे हैं ?’

अकबर ने बीरबल से पूछाः “राजदरबार में बहरे आदमी कितने हैं ?” बीरबल ने कहाः “अभी बताऊँ कि बाद में बताऊँ ?” “कैसे बताओगे ?” “मेरे पास एक युक्ति है ।” बीरबल ने बात-बात में एक मजाक किया और थोड़ी देर के बाद दूसरा किया । अकबर को कहाः “राजा साहब ! इस पूरी सभा में चार व्यक्ति बहरे हैं ।” अकबर बोलाः “कैसे जान लिया ?” “बहरा व्यक्ति दो बार हँसता है, एक तो सबके हँसने के साथ वह हँसेगा फिर दूसरे से पूछेगा कि ‘क्या बात बोली ?’ और पूछ के दोबारा हँसेगा ।”

‘राम जी की जगह मेरा नाम लिखो’

अकबर ने सभा बुलायी । सभा में अच्छे-अच्छ लोग आये थे – हिन्दू भी थे, मुसलमान भी थे । अकबर ने कहाः “मेरे राज्य में कोई कमी तो नहीं है ?” अब कौन बोले कि कही है ! मतदान का तो जमाना नहीं था कि लोग बोल दें- ‘भाई ! यह कमी है, वह कमी है… इनको दूर करो, नहीं तो हम तुम्हें अपना मत (वोट) नहीं देंगे ।’ बोलेः “जहाँपनाह ! आपके राज्य में क्या कमी हो सकती है !” “मेरे राज्य में सुख-सम्पदा है, आनंद है ?” “है ।” “मेरे राज्य में आप लोग दुःखी तो नहीं हैं ?” बोलेः “नहीं जहाँपनाह !” “तो मेरा राज्य रामराज्य जैसा है कि नहीं ?” चाटुकार लोग और क्या करते, बोलेः “हाँ हुजूर ! आपका राज्य रामराज्य जैसा है ।” अकबरः “रामराज्य जैसी ही सुख-सुविधा और मौज है न ?” बोलेः “है ।” “तो फिर हिन्दू लोग सुन लो, सारे हिन्दू जो भी मेरे राज्य में रहते हैं वे चिट्ठी लिखने के पहले, बहीखाता लिखने के पहले लिखते हैं ‘श्रीराम’ तो अब श्रीराम की जगह पर ‘श्रीअकबर’ लिखा करो !” हिन्दुओं ने देखा कि ‘यह तो इसने मुसीबत कर दी ! अब क्या बोलें ! नहीं लिखेंगे तो तंग करेगा और लिखें तो राम जी की बराबरी यह भोंदू कैसे करेगा ?’ चाटुकारी करते-करते जो अगुआ थे वे तो बुरी तरह फँस गये । जा के बीरबल के सामने हाथाजोड़ी की कि “बीरबल ! तुम्हीं बचाओ ।” बीरबल ने कहाः “कोई बात नहीं, तुम लोग घबराओ नहीं ।” बीरबल रोज ध्यान करते थे, सारस्वत्य मंत्र जपते थे, उनकी बुद्धिशक्ति खुली थी । बीरबल ने कहाः “जहाँपनाह ! श्रीराम की जगह पर आपका नाम लिखने को ये लोग तैयार हैं परंतु एक खटक है । आप इनकी वह खटक दूर कर दो तो पूरा समाज इनकी बात मानेगा, नहीं तो समाज के लोग अड़ गये हैं…. ।” अकबर बोलाः “किस बात पर अड़े हैं ?” “राम जी का नाम लिखकर समुद्र में पत्थर फेंकते थे तो वे तैरते थे । ‘श्रीराम’ लिख के पत्थर समुद्र में तारे गये, अब ‘श्रीअकबर’ लिख के 2-4 पत्थर अगर तैर जायेंगे तो फिर आपका नाम निखना चालू कर देंगे । आप चलिये और आपका कोई हनुमान लाइये जो ‘श्रीअकबर’ लिख दे और पत्थर तैरने लग जायें । पूरी पुलिया मत बनाइये, चार पत्थर भी तैरा के दिखा दोगे तो सारे-के-सारे हिन्दू आपकी बात मान लेंगे ।” अकबर बोलता हैः “चुप करो, इस बात को भूल जाओ, मेरी इज्जत खराब होगी । भले हिन्दू श्रीराम लिखें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 18, 26 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बंधन केवल मान्यता है


जीव बंधन से जकड़ा हुआ है । कर्म में बंधन है पाप-पुण्य का । भोग में बंधन है सुख-दुःख का । प्रेम में बंधन है संयोग-वियोग का । सृष्टि में चारों ओर भय, बंधन और परतंत्रता ही नज़र आते हैं । ऐसे में भय से, बंधन से, पराधीनता से मुक्ति कैसे हो, यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है । श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई । ‘वेदों और पुराणों में बहुत से उपाय बतलाये हैं’ (श्रीरामचरित. उ.कां. 116.3) परंतु कोई काम नहीं बन पाता । यदि कदाचित अपना आपा ही ब्रह्म निकल आवे तो सब समस्याएँ हल हो सकती है । ब्रह्मज्ञान का यही प्रयोजन है । अपने को ब्रह्म समझना बहुत आवश्यक है । जब तक आप अपने को शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि या अहंकार समझते रहोगे अर्थात् अपने को परिच्छिन्न (सीमित) समझते रहोगे तब तक इनके बंधनों से मुक्ति नहीं मिल सकती । आपकी समूची पराधीनता मिटाने के लिए ब्रह्मज्ञान है । जन्म-मरण अपने सत्स्वरूप के विपरीत है, अज्ञान अपने ज्ञानस्वरूप के विपरीत है और दुःखी होना अपनी आनंदस्वरूपता के विपरीत है । हम जो हैं (सच्चिदानंद अद्वय (एकमात्र)), अपने विपरीत जीवन व्यतीत कर रहे हैं । जैसे डाकू लोग करोड़पति सेठ को पकड़ के जंगल में किसी अँधेरी कोठरी में बंद कर दें, वैसी ही स्थिति मनुष्य की है । अतः आओ, अपने ब्रह्मस्वरूप को जानें और सम्पूर्ण बंधनों से, जन्म-मरण से, अज्ञान से, दुःख से, आवागमन से और परिच्छिन्नत्व से मुक्त हो जायें । यह जीवन का परम पुरुषार्थ है । सचमुच विचार करक देखें तो हमारे में कहीं बंधन की सिद्धि नहीं होती । इसलिए बंधन केवल मान्यता है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 15 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ