बालक श्रीनिवास से बने संत जगन्नाथदास

बालक श्रीनिवास से बने संत जगन्नाथदास


1649 ईस्वी में उत्तरी कर्नाटक के एक गाँव में एक बालक का जन्म हुआ, नाम रखा गया श्रीनिवास। बड़े होकर इन्होंने संस्कृत भाषा व शास्त्रों में विद्वता प्राप्त की परंतु विद्वता की प्रसिद्धि ने इन्हें अहंकारी बना दिया था। ये उच्च कोटि के संत विजयदास जी की निंदा और उपहास करने लगे।

सुखमनि साहिब में आया है

संत का निंदकु महा अतताई।

संत का निंदकु खिनु टिकनु न पाई।

संत का निंदकु महा हतिआरा।

संत का निंदकु परमेसुरि मारा।

‘संत का निंदक बड़ा अत्याचारी होता है। संत का निंदक एक क्षण भी आत्मविश्रांति नहीं पाता। संत का निंदक महा-हत्यारा होता है। संत के निंदक को ईश्वर की मार पड़ती है।’

श्रीनिवास को तपेदिक (टी.बी.) रोग हो गया और वे अत्यंत दुर्बल व अशांत हो गये। रोग को मिटाने के सभी उपाय असफल हो गये। अंत में उन्होंने 48 दिनों तक हनुमान जी की विशेष पूजा-प्रार्थना की। हनुमान जी ने उन्हें स्वप्न में दर्शन देकर कहाः “संत विजयदास जी की निंदा एवं अपमान करने के कारण ही यह भयानक रोग हुआ है। उनके पास विनयपूर्वक जाओ और क्षमायाचना करके आशीर्वाद प्राप्त करो तो रोग ठीक हो जायेगा।”

जो लोग संत की निंदा करते हैं उनके जीवन में असाध्य रोग, अशांति, पीड़ा, संताप आदि स्वतः आ जाते हैं। इसका प्रायश्चित्त है जिन संत की निंदा की है उनसे क्षमा माँगना।

श्रीनिवास उठे और पश्चाताप करने लगे। वे संत विजयदास जी की शरण गये और क्षमायाचना करते हुए फूट-फूट कर रो पड़े।

श्री रामचरितमानस (उ.कां. 124.4) में आता हैः

संत हृदय नवनीत समाना।

कहा कबिन्ह परि कहै न जाना।।

निज परिताप द्रवइ नवनीता।

पर दुःख द्रवहिं संत सुपुनीता।।

‘संतों का हृदय मक्खन के समान होता है, ऐसा कवियों ने कहा है परंतु उन्होंने असली बात कहना नहीं जाना क्योंकि मक्खन तो अपने को ताप मिलने से पिघलता है और परम पवित्र संत दूसरों के दुःख से पिघल जाते हैं।’

दयालु संत ने श्रीनिवास को क्षमा करके आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिए अपने शिष्य गोपालदास जी के पास भेज दिया। उन्होंने श्रीनिवास से सब बाते जानकर उन्हें मंत्रदीक्षा व प्रसाद दिया।

श्रद्धापूर्वक गुरुमंत्र का जप करने और गुरुदेव के शुभ संकल्प के प्रभाव से कुछ ही दिनों में श्रीनिवास स्वस्थ हो गये। फिर सदगुरु के मार्गदर्शन-अनुसार श्रीनिवास पंढरपुर आये और गुरु-उपदिष्ट साधन आदि करने लगे। ये ही श्रीनिवास आगे चलकर गुरुकृपा से संतत्व को उपलब्ध हो महान संत जगन्नाथदास जी के नाम से सुप्रसिद्ध हुए। उनके जीवन में भगवत्प्रसाद छलका, कई अदभुत अनुभव हुए, आध्यात्मिक शक्ति का विकास हुआ। लाखों लोग उनके सम्पर्क से धन्य हो गये।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 12 अंक 300

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