बुद्धि, स्वास्थ्य व सत्संकल्प के पोषण का पर्व-पूज्य बापू जी

बुद्धि, स्वास्थ्य व सत्संकल्प के पोषण का पर्व-पूज्य बापू जी


मकर सक्रान्ति के दिन से बुद्धि के अधिष्ठाता देव सूर्यनारायण मकर राशि में प्रवेश करते हैं। यह त्यौहार भी है, सत्संकल्प व सूर्योपासना करने की प्रेरणा देने वाला पर्व भी है। मनोकामनापूर्ति के लिए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, स्वास्थ्य के लिए सूर्यस्नान और ध्यान किया जाता है।

सत्संकल्प व प्रार्थना करें

इस दिन से सूर्य दक्षिण दिशा को छोड़कर उत्तर की तरफ बढ़ेगा। ऐसे ही हमारे चित्त की वृत्तियाँ, हमारा मन ऊपर की यात्राओं में बढ़े, दक्षिण अर्थात् नीचे का भाग, उत्तर माना ऊँचा भाग। इस हेतु सुबह-सुबह तुम यही माँगना कि ‘हे ज्ञानप्रकाश प्रभो ! ऐसी कृपा करो कि सब वासनाएँ खत्म होकर हम परमात्मा-साक्षात्कार करें। उसमें तुम सहयोग दो। जब हमें अहंकार सताये, वासनायें सतायें, सूक्ष्म जगत के असुर-राक्षस सतायें तो तुम उनको दूर करने में सहयोग देना।’

निरोगता भी देते हैं सूर्यनारायण

इस सूर्यनारायण की कोमल किरणों का फायदा उठायें। सूर्यस्नान से बहुत सारे रोग मिटते हैं। लेटे-लेटे किया गया सूर्यस्नान विशेष फायदा करता है। सिर को ढककर सूर्य की किरणें मिलें, जिससे अंगों में जिन  रंगों की कमी है, वात-पित्त-कफ का जो असंतुलन है वह ठीक होने लगे। मंदाग्नि दूर करने हेतु भी सूर्यस्नान किया जाता है और सूर्यनमस्कार करके बल, ओज और तेज बढ़ाया जाता है। इस दिन तिल और गुड़ देते-लेते हैं, जिससे हमारे जीवन में स्निग्धता व मधुरता आये।

अव्यक्त को व्यक्त के रूप में देखें

सर्वनियंता, सर्वव्यापी जगदीश्वर को सर्वत्र पूजने की क्षमता लोगों को नहीं है तो सनातन धर्म के मनीषियों ने ऐसी व्यवस्था की है कि उस अव्यक्त को व्यक्त के रूप में देखकर पूजा करते-करते साधारण से साधारण व्यक्ति भी परम पद को पा सकता है। है तो जल-थल में परमात्मा पर जल-थल को पूज नहीं सकते तो शालिग्राम की व्यवस्था कर दी। है तो वह सर्वेश्वर अणु-परमाणु में लेकिन जहाँ विशेष चमका है, उसे ॐ रवये नमः, ॐ सूर्याय नमः आदि कह के नमन करते हैं।

नमन तो सूर्यनारायण को करते हैं  लेकिन जीवनशक्ति अपनी जागृत होती है। नमन तो माता-पिता, गुरु को करते हैं लेकिन आयुष्ट, बुद्धि, योग्यता अपनी बढ़ती है।

महापुरुषों का उद्देश्य

जैसे सूर्य उत्तर को छोड़कर दक्षिण में आता है और दक्षिण में जी के फिर उत्तर की तरफ चलता है, ऐसे ही महापुरुष उत्तर (परमात्म-ऊँचाई) की यात्रा करते हुए भी फिर दक्षिण की तरफ आते हैं अर्थात् हम लोगों के बीच आते हैं ताकि हम उनके साथ चल पड़ें और उत्तर की यात्रा कर लें। उत्तरायण कितना मूल्यवान पर्व है !

यह मकर सक्रांति पर्व ऋतु बदलाव का, स्वभाव-बदलाव का संदेश लेकर आता है। जरा-जरा परिस्थिति को सत्य मानकर सिकुड़ो या फूलो मत। ये सब परिस्थितियाँ आती जाती रहेंगी लेकिन तुम्हारा आत्मसाक्षी ज्यों का त्यों रहेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2017, पृष्ठ संख्या 13 अंक 300

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