जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा – पूज्य बापू जी

जन्माष्टमी व्रत-उपवास की महिमा – पूज्य बापू जी


(श्री कृष्णजन्माष्टमीः 17 अगस्त 2014)

जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहिए, बड़ा लाभ होता है। इससे सात जन्मों के पाप-ताप मिटते हैं। जन्माष्टमी एक तो उत्सव है, दूसरा महान पर्व है, तीसरा महान व्रत-उपवास और पावन दिन भी है।

‘वायु-पुराण’ में और कई ग्रंथों में जन्माष्टमी के दिन की महिमा लिखी है। ‘जो जन्माष्टमी की रात्रि को उत्सव के पहले अन्न खाता है, भोजन कर लेता है वह नराधम है’ – ऐसा भी लिखा है। जो उपवास करता है, जप ध्यान करके उत्सव मना कर फिर खाता है, वह अपने कुल की 21 पीढ़ियाँ तार लेता है और वह मनुष्य परमात्मा को साकार रूप में अथवा निराकार तत्त्व में पानी में सक्षमता की तरफ बहुत आगे बढ़ जाता है। इसका मतलब यह नहीं कि व्रत की महिमा सुनकर मधुमेहवाले या कमजोर लोग भी व्रत रखें। बालक, अति कमजोर तथा बूढ़े लोग अनुकूलता के अनुसार थोड़ा फल आदि खायें।

जन्माष्टमी के दिन किया जप अनंत गुना फल देता है। उसमें भी जन्माष्टमी की पूरी रात जागरण करके जप-ध्यान का विशेष महत्त्व है । जिसको क्लीं कृष्णाय नमः। मंत्र का थोड़ा जप करने को भी मिल जाय, उसके त्रिताप नष्ट होने में देर नहीं लगती। ‘भविष्य पुराण’ के अनुसार जन्माष्टमी का व्रत संसार में सुख शांति और प्राणी वर्ग को रोग रहित जीवन देने वाला, अकाल मृत्यु को टालने वाला, गर्भपात के कष्टों से बचाने वाला तथा दुर्भाग्य और कलह को दूर भगाने वाला होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2014, पृष्ठ संख्या 8, अंक 259

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