कर्नाटक के श्री रामचन्द्रपुर मठ के प्रमुख जगदगुरु शंकराचार्य श्री राघवेश्वर भारती जी के खिलाफ लगाये गये दुष्कर्म के सभी आरोपों को गत 31 मार्च को बेंगलुरु सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया। एक 51 वर्षीय महिला ने राघवेश्वर भारती जी पर उसके साथ 161 से अधिक बार दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था।
श्री राघवेश्वर जी का मामला आँखें खोल देने वाला एक और प्रत्यक्ष उदाहरण है कि किस प्रकार छुपे तौर पर हिन्दुत्व को नष्ट करने का एक विशाल कुचक्र चलाया जा रहा है।
मा. न्यायाधीश श्री जी.बी. मुदीगौदर ने कहा कि “आरोपी(स्वामी राघवेश्वर जी) के खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है। यह मामला आरोपी को महज उत्पीड़ित और शर्मिन्दा करने की एक कोशिश के सिवाय और कुछ भी नहीं है।”
श्री राघवेश्वर जी के अलावा ऐसे कई हिन्दू संत हैं, जिन्हें झूठे आरोपों के तहत बिना किसी ठोस सबूत के वर्षों से कारागृहों में रखा गया है। पूज्य बापू जी पर चलाये जा रहे मामलों में ऐसे कई मुद्दे हैं जो राघवेश्वर भारती जी के मामले से समानता रखते हैं। आइये, उन पर दृष्टि डालें-
एफ आई आर दर्ज करवाने के पूर्व अभियोक्त्री (आरोप लगाने वाली महिला) के पति द्वारा श्री राघवेश्वर जी से 3 करोड़ रूपये की फिरौती माँगी गयी थी। इस मामले में दम्पत्ति को गिरफ्तार कर पूछताछ भी की गयी थी। इसी प्रकार 8 अगस्त 2008 को षड्यंत्रकारियों ने आश्रम में बापू जी के नाम से फेक्स किया था कि ‘एक सप्ताह के अंदर हमें 50 करोड़ रुपये दे दो अन्यथा तुम और तुम्हारा परिवार जेल की हवा खाने को तैयार हो जाओ। बनावटी मुद्दे तैयार हैं, तुम्हें पैसों की हेराफेरी में, जमीनों एवं लड़कियों के झूठे केसों में फँसायेंगे।’ एक स्टिंग ऑपरेशन में राजू चांडक नामक साजिशकर्ता ने इसी प्रकार के षड्यंत्र रचने की बात को स्वीकारा भी है।
श्री राघवेश्वर जी के मामले में न्यायालय के आदेश में उल्लेख किया गया है कि ‘आरोप लगाने वाली महिला ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह बीच में छः महीने से भी अधिक समय तक मठ से सम्बंधित गतिविधियों से दूर रही है। यदि उसके द्वारा लगाये गये आरोप के मुताबिक उसे सचमुच यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था तो उसे पुनः मठ में वापिस नहीं आना चाहिए था। महिला का यह कृत्य उसके गुप्त, स्वार्थी उद्देश्य और स्वामी जी की छवि को धूमिल करने के लिए रची गयी सुनियोजित, भयावह रूपरेखा को स्पष्ट करता है’
पूज्य बापू जी पर आरोप लगाने वाली सूरत की महिला ने स्वयं एफ आई आर में लिखवाया है कि जब वह आश्रम में रहती थी उस दौरान उसका दूसरे शहरों में आना-जाना चालू रहता था, यहाँ तक कि अपने पिता के घर भी वह कई बार गयी। अगर उसके साथ ऐसी कोई घटना घटती तो वह आश्रम में वापस क्यों आती ?
वह कहती है कि ‘उसके साथ सन् 2001 में तथाकथित घटना घटी। 2002 में उसकी छोटी बहन आश्रम में रहने के लिए आयी थी।’ अगर किसी लड़की के साथ कहीं बलात्कार हुआ हो तो क्या वह चाहेगी कि उसकी छोटी बहन भी ऐसी जगह पर रहने आये ? कदापि नहीं।
श्री राघवेश्वर जी के मामले के फैसले में एक बिंदु यह भी लिखा है कि ‘आरोपी को तो सिर्फ इस आधार पर ही बरी कर देना चाहिए कि कथित पहली घटना की तारीख से 3 वर्ष से भी अधिक की देरी के बाद इस मामले को दर्ज कराया गया एवं कथित तौर पर मामले से जुड़ी सामग्रियों को 82 दिनों बाद पेश किया गया।’
इस प्रकार अगर समयावधि किसी मामले में निर्दोषता की सिद्धि में इतनी महत्वपूर्ण है तो पूज्य बापू जी के ऊपर अहमदाबाद में और नारायण साँईं जी पर सूरत में जो मामले थोपे गये हैं, उनमें तो तथाकथित घटना 12 और 11 साल बाद एफ आई आर दर्ज करायी गयी है। ऐसे में अहमदाबाद व सूरत मामलों में पूज्य बापू जी व नारायण साँईं जी को जमानत तक नहीं मिल पायी है।
राघवेश्वर भारती जी के मामले में अभियोजन (आरोपकर्ता) पक्ष के गवाहों के बयान और अभियोक्त्री के स्वयं के बयान खुद उऩ्हीं के पक्ष के खिलाफ बोलते हैं।
इसी प्रकार बापू जी के अहमदाबाद मामले में अभियोक्त्री ने गांधीनगर कोर्ट में एक याचिका में कहा था कि “मैंने दबाव में आकर आरोप लगाया था, मैं अपना बयान बदलकर सत्य उजागर करना चाहती हूँ।” इसके अलावा पूज्य श्री के जोधपुर मामले की मुख्य गवाह सुधा पटेल ने जोधपुर सत्र न्यायालय में बताया कि ‘पुलिसवालों ने मेरे बयान लिये थे, यह गलत (झूठी बात) है। आज से पहले न मैं कभी जोधपुर आयी और न ही कभी कहीं बयान दिये थे।’
राघवेश्वर जी के मामले में महिला के मोबाइल कॉल डिटेल रजिस्टर और प्रत्यक्ष गवाह के बयान से पता चलता है कि तथाकथित घटना के समय महिला वहाँ थी ही नहीं।
ठीक उसी प्रकार पूज्य बापू जी के जोधपुर मामले में न्यायविद् डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलासा किया कि ‘लड़की के फोन रिकॉर्डस से पता लगा कि जिस समय पर वह कहती है कि वह कुटिया में थी, उस समय वह वहाँ थी ही नहीं ! उसी समय बापू जी सत्संग में थे और आखिर में मँगनी के कार्यक्रम में व्यस्त थे। वे भी वहाँ कुटिया में नहीं थे।”
इस प्रकार के सभी पहलुओं को देखने के बाद केवल आश्चर्य ही किया जा सकता है कि पूज्य बापू जी को पिछले 2 वर्ष 8 महीनों से अधिक समय से अभी तक जमानत तक क्यों नहीं मिल पायी ?
हिन्दू संतों पर झूठे आरोप लगवाकर उन्हें अपराधी साबित करने के लिए लगभग एक सी नीति अपनाने वाले षड्यंत्र साफ देखे जा सकते हैं। भारतीयों को अपनी संस्कृति व देश के खिलाफ इस सिलसिलेवार अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र को समझने के लिए बहुत सतर्क और विचारशील रहना होगा एवं संगठित होकर इसका प्रतिकार करना होगा।
संकलकः श्री रू. भ. ठाकुर
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2016, पृष्ठ संख्या 6,7 अंक 281
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