पायें देशी गायों से उनके रंगानुसार विशेष लाभ

पायें देशी गायों से उनके रंगानुसार विशेष लाभ


वैसे तो सभी देशी गायों का दूध पुष्टीदायी तथा स्वास्थ्य, बल, बुद्धि व सात्त्विकता वर्धक होता है परंतु कैसी सूक्ष्म दृष्टि है भारत के संतों-महापुरुषों की, जिन्होंने अलग-अलग रंगों की गायों में पायी जाने वाली भिन्न-भिन्न विशेषताएँ भी खोज निकालीं !

सफेद रंग की गाय

श्वेत (सफेद) रंग की गायों में धी, धृति, स्मृति वर्धक सत्त्व सविशेष रहता है। प्राचीन काल में ऋषि-मुनि आदि ज्यादातर श्वेत गौ के दूध का सेवन करते थे क्योंकि उससे अध्यात्म बल एवं विद्या की अभिवृद्धि होती है।

प्राचीन गुरुकुलों में विद्यार्थियों को श्वेत गौ के गो-रस (गाय का दूध, दही आदि) का सेवन कराया जाता था, जिससे उनकी बुद्धि वेदादि विद्या का कंठस्थ करने में समर्थ बनती थी।

इनका दूध कफकारक तथा पचने में भारी होता है पर उसमें सोंठ, काली मिर्च, पिप्ली, पिप्पलीमूल, हल्दी आदि डालकर पीने से वह त्रिदोषशामक व सुपाच्य हो जाता है।

सगर्भा  माताएँ अगर श्वेत बछड़ेवाली श्वेत गाय के दूध का चाँदी के पात्र में सेवन करें तो उन्हें दीर्घायु, गौरवर्ण की तथा ओजस्वी, तेजस्वी एवं निरामय संतान की प्राप्ति होती है।

यदि श्वेत गौ के दूध को मंडूकपर्णी, ब्राह्मी, शंखपुष्पी आदि मेधाजनक औषधियों से सिद्ध करके उसका सेवन मनोरोगियों को कराया जाय तो उनका मानसिक रोग शांत होता है।

लाल रंग की गाय

लाल गाय सूर्यकिरणों का सेवन कर शौर्यशक्ति को अपने दूध में प्रवाहित करती है। ऐसी गायों का दूध वायु तथा कफशामक होता है वह शरीर को बलिष्ठ बनाता है। इनके दूध में शौर्यशक्ति सविशेष रहती है इसलिए क्षत्रिय युद्ध के लिए जाते समय भी अपने साथ लाल गायों के झुंड-के-झुंड ले जाते थे।

पीले रंग की गाय

पीले रंग की गाय का दूध वात-पित्तशामक होता है। इसके सेवन से व्यवहार पालन, व्यापार-वाणिज्य व नैतिकता की वृद्धि होती है। अतः वैश्य ऐसी गायें रखते थे।

चितकबरी गाय

इसका दूध वातशामक होता है, जिसे पीने से सेवाकार्यों में कुशलता आती है। इसीलिए चतुर्थ वर्ण के लोग चितकबरी गायें पालते थे।

काली गाय

काली गायों का दूध अन्य गायों की अपेक्षा अधिक गुणकारी होता है। इनका दूध अग्निमांद्यजनित रोग-नाशक व उत्तम वातशामक है। पंचगव्य-निर्माण में काली गौ के गोबर का रस लेना सबसे श्रेष्ठ माना  जाता है।

वर्तमान समय में गौ-हत्या में बढ़ोतरी और गौ-पालन हेतु लोगों की घटती हुई रूचि के कारण हमारे ऋषि-मुनियों की ऐसी महान खोजों का लाभ उठाना सबके लिए सम्भव नहीं हो पा रहा है। अतः आज गौ-सेवा, गौ संरक्षण व संवर्धन हेतु सभी को अवश्य प्रयास करना चाहिए।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 2018, पृष्ठ संख्या 27 अंक 309

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