आप लोग सोचिये !!
बापूजी के सानिध्य में रहकर शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने वाले सच्चे
गुरुभक्त अपने गुरुमाता और गुरुपुत्री के साथ इस प्रकार द्वेष भावना रख
सकता है क्या ??
नहीं न !!
अगर सच्चे गुरु भक्त अपने गुरु के आश्रम के विरुद्ध प्रवृत्ति करनेवालों का दर्शन करने से रोकते है तो यह सच्चे गुरु भक्त का कर्तव्य निभाते है. यह द्वेष भावना नहीं है. गुरु से बढ़कर ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी नहीं हो सकते तो और कौन हो सकता है?