Monthly Archives: November 2013

ज्ञान-प्रेम-माधुर्य का महासागर सनातन धर्म – पूज्य बापू जी


दुनिया के हर प्राचीन धर्म ने, दुनिया के हर सुलझे हुए सम्प्रदाय व कई प्रबुद्ध महापुरुषों ने और राजा महाराजाओं ने जिसको सहर्ष स्वीकार किया और अनुभूतियाँ की हैं, सारी पृथ्वी पर और स्वर्ग में ही नहीं अपितु, अतल, वितल, तलातल, रसातल, महातल, जनलोक, भुवर्लोक, तपलोक आदि अन्य लोकों पर भी जिसका साम्राज्य छाया हुआ है, वह सार्वभौम ब्रह्मांडव्यापी धर्म है ‘सनातन धर्म’।

भिन्न-भिन्न देश काल और परिस्थिति के अनुसार पृथक-पृथक धर्म बने हैं किंतु सनातन धर्म सम्पूर्ण मानव-जाति के विकास का मार्ग प्रशस्त करता है। सनातन सत्य रूपी धर्म जीवमात्र के भीतर, हर दिल में धड़कनें ले रहा है। सनातन सत्य हर दिल में छुपी हुई परमात्मा की वह सुषुप्त शक्ति है, जिसके जागृत होने से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है, पूर्ण आत्मिक विकास होता है। जितने अंश में मानव सनातन सत्य के निकट होता है, उतने अंश में उसका जीवन मधुर होता है। जितने अंश में सनातन सत्य से संबंधु जुड़ता है, जितने अंश में अपनी सुषुप्त शक्तियाँ सनातन चेतना से प्राप्त करता है, उतने अंश में वह अपने क्षेत्र में उन्नत होता है। यह एक हकीकत है कि मनुष्य जितना-जितना ‘देह’ को सत्य मानकर संकीर्ण कल्पनाएँ रचता है, उतना-उतना सच्चे सुख से दूर होता जाता है। आज का मनुष्य शरीर के भोगों में, बड़ी-बड़ी सुख-सुविधाओं से सम्पन्न महलों में रहने में, भौतिक ऐश-आरामों में रचे-पचे रहने में ही सच्चा सुख मान बैठा है और उसे ही प्राप्त करने  में अपना सारा समय बरबाद कर देता है। फलस्वरूप वह अपने आत्मा-परमात्मा के ज्ञान से वंचित ही रह जाता है।

भागवत के प्रसंग में आता है कि रहुगण राजा राजपाट का सुख भोगते-भोगते विचार करते हैं- ‘जिस देह को जला देना है, उस देह को आज तक तो बहुत भोगों और सुख सुविधाओं में रमाया लेकिन ज्यों ही मृत्यु का एक झटका आयेगा तो सब कुछ पराया हो जायेगा। मृत्यु आकर सब छीन ले उसके पहले उस सनातन शांति से मुलाकात कर लें तो अच्छा रहेगा।’

जहाँ में उसने बड़ी बात कर ली,

जिसने अपने-आपसे मुलाकात कर ली।

सनातन धर्म हमें अपने वास्तविक स्वरूप अर्थात् स्व-स्वरूप को प्रकट करने की आज्ञा देता है। हमारा आदि धर्म हमें सिखाता है कि पंचभूतों का बना शरीर ‘हम’ नहीं हैं। वास्तव में हम स्वयं ब्रह्म हैं, जो सृष्टि का कर्ता और धर्ता वास्तव में हम अभेद ब्रह्म हैं। सारा जगत ब्रह्मस्वरूप ही है। माया के पाश में बन्धे हुए एक-दूसरे को हिन्दू, मुसलमान, ईसाई आदि मानते हैं और संकीर्ण विचारधाराओं में  बहने लगते हैं। दुःख, अशांति, झगड़े, चिंता आदि में हम उलझते गये हैं, वरना सनातन धर्म एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति…..हम सभी एक हैं, भिन्न नहीं हैं… यह दिव्य संदेश विश्व को दे रहा है और यही तो सनातन सत्य भी है। इस सनातन सत्य रूपी व्यापक दृष्टिकोण का प्रभाव समाज पर जितने अंश में होता है, उतने ही अंश में स्नेह, आनंदद, भाईचारा, दया, करुणा, अहिंसा आदि दैवी गुणों से समाज सम्पन्न होता है। इस सत्य के साथ अपना नाता जोड़ना ही व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जगत में प्रगति का मूल मंत्र है, मधुर जीवन की कुंजी है। फिर चाहे रमण महर्षि जी हों, साँईं लीलाशाहजी हों, ऋषि याज्ञवल्क्य हों, चाहे रामावतरा या कृष्णावतार हों, चाहे कोई राजनैतिक जगत में सेवा करने वाला हो।

ऐसा नहीं कि उन्होंने जो पाया है, वह हम नहीं पा सकते। हममें भी वही योग्यता है। सिर्फ ठीक मार्गदर्शन से सही पथ पर लगने की आवश्यकता है। स्वामी रामतीर्थ अपने ईश्वर से  मुलाकात करके ऐसे छलके कि सनातन धर्म के अमृत को बाँटते-बाँटते वे अमेरिका पहुँचे। उस समय (सन् 1899-1901) अमेरिका के राष्ट्रपति रूज़वेल्ट ने स्वामी रामतीर्थ की उदारता को अखबारों द्वारा सुना और उससे वे इतने प्रभावित हुए कि स्वयं चलकर रामतीर्थ के दर्शन करने गये। अखबारवालों को स्वामी रामतीर्थ के बारे में  बताते हुए उन्होंने कहा थाः “मैंने आज तक सुना  था कि जीसस सनातन सत्य के अमृत को पाये हुए थे लेकिन भारत के इस साधु को तो अमृत बाँटते हुए देखा।  मेरा जीवन सफल हो गया।”

आज हम अपने जीवन में सनातन सत्य के अमृत को पाने की आकांक्षा नहीं रखते इसलिए हम सुविधाओं के बीच पैदा होते हैं, पलते हैं फिर भी जिंदगीभर परेशान ही रहते हैं और आखिर उस सच्चे सुख को पाये बिना मर जाते हैं, जीवन व्यर्थ गँवा देते हैं।

धन, सौंदर्य से हम सुंदर नही होते वरन् सुंदर से भी सुंदर आत्मस्वरूप के करीब पहुँचने पर हम सुंदर होते हैं। जितने हम भीतर के धन से खोखले या कंगाल होते हैं उतनी बाह्य पदार्थों की गुलामी करनी पड़ती है क्योंकि सुख इन्सान की जरूरत है। जब तक हमें आत्मिक आनंद नहीं मिलता, तब तक हम विषय वासना में सुख ढूँढते हैं किन्तु  दुःख,  परेशानी के अलावा कछ हाथ नहीं लगता। इसके विपरीत, जितने हम भीतर के धन से सम्पन्न होते हैं, आत्मसुख से तृप्त होते हैं उतना हम बाह्य भोग-पदार्थों की ओर से बेपरवाह होते हैं।

अष्टावक्रजी के शरीर में आठ कमियाँ थीं। छोटा कद, टेढ़ी टाँगें थीं और उम्र 12 वर्ष थी फिर भी संसार से विरक्त होकर सरकने वाली चीजों से और मन के निर्णयों, आकर्षणों से पार हो के मुक्तिपद प्राप्त किये हुए थे तो राजा जनक उनके चरणों में प्रणाम करके उनके आगे प्रश्न करते हैं- “भगवन् ! आत्मसुख कैसे प्राप्त होता है ?”

सनातन सत्य के सुख को पाने की जिज्ञासा हर मनुष्य में होती है परंतु सच्ची दिशा न मिलने पर वह संसार-सुख में भटक जाता है। मिथ्या जगत के नश्वर सुख में सत्यबुद्धि  करके हम क्षणिक सुख प्राप्त करने में लगे रहते हैं। फिर चाहे कितने विघ्न क्यों न आयें ? पैसे कमाने के लिए न जाने क्या-क्या करना पड़ता है ? यदि धन बहुत हो गया तो शरीर में रोग घुसा होता है, किसी के माँ-बाप अचानक चल बसते हैं। जीवन है तो कुछ-कुछ आफतें आती ही रहती हैं। अरे ! भगवान स्वयं जब श्रीरामचन्द्रजी तथा श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब उन्हें भी विघ्न-बाधाएँ आयी थीं किंतु फर्क है तो इतना कि हम जब विघ्न-बाधाएँ आती हैं तो उनमें बहकर हताश निराश हो जाते है जबकि संत-महापुरुष सत्यस्वरूप ईश्वर के साथ अपना सनातन संबंध जोड़े हुए होते हैं, जिससे वे लेशमात्र भी विघ्न-बाधाओं में बहते नहीं हैं। वे निराश या हताश नहीं होते वरन् मुसीबतें उनके जीवन को चमकाने, प्रसिद्धि दिलाने एवं पूजनीय बनने का कारण बन जाती हैं। भगवान श्रीरामचन्द्रजी को 14 साल का वनवास मिला था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म ही काल कोठरी में हुआ था। पूतना जहर पिलाने आ गयी, कंस मामा ने लगातार कई षडयन्त्र रचे। फिर भी श्रीकृष्ण और रामजी सदैव अपने सनातन सत्यस्वरूप में प्रतिष्ठित रहे, मुस्कराते रहे। यही तो है जीव को अपने आत्मस्वरूप में जगाने का सनातन धर्म का उद्देश्य

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या  12-14, अंक 251

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बापू जी को जेल क्यों ? – वरिष्ठ पत्रकार हबीब खान


आज हर समाचार चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में सुबह से लेकर रात तक आशारामजी बापू के नाम का ही झुनझुना बजा रहा है। लेकिन देश की कई महत्त्वपूर्ण समस्याओं से संबंधित समाचारों का ‘ब्लैक आउट’ (बिल्कुल गायब किया जाना) आखिर क्यों ? बड़े-बड़े नेताओं को देश-विदेश के न्यायालयों द्वारा समन्स और नोटिस जारी होने की खबरें मीडिया से ब्लैक आउट क्यों रहीं ?

आशारामजी बापू की गिरफ्तारी कुछ और नहीं एक पूर्वनियोजित षडयन्त्र है। गिरफ्तारी के बाद आरोप लगाने वाले लड़की की सहेली का बयान पी-7 न्यूज चैनल पर दिखाया गया कि ‘मेरी सहेली का कहना है कि मेरे से जैसा बुलवाते हैं’, वैसा मैं बोलती हूँ। और लड़की की शिकायत के आधार पर दर्ज पुलिस एफ आई आर में बलात्कार का आरोप नहीं है। इस विषय में ‘इंडिया टीवी’ न्यूज चैनल पर दिखाया गया जोधपुर पुलिस कके डीसीपी अजय पाल लाम्बा का बयान है कि ‘एफ आई आर में बच्ची ने 376 (बलात्कार) का आरोप नहीं लगाया है। हम बार बार यह कह रहे हैं कि मेडिकल रिपोर्ट जो दिल्ली से आयी है उसमें भी किसी भी तरह से 376 के आरोप के पक्ष में कोई सबूत नहीं है।’ मेडिकल रिपोर्ट में भी लड़की पवित्र है, फिर भी बापू जी को जेल क्यों ? बापू जी के सेवादार शिवाभाई को बापू की फर्जी सेक्स सीडी की बात कबूलवाने के लिए तीसरी डिग्री के रिमांड का  इस्तेमाल करके पुलिस कका उन पर खूब दबाव देना, एक के बाद दूसरा आरोप लगना – क्या यह षडयन्त्र नहीं है ? आशारामजी बापू की गिरफ्तारी कुछ और नहीं, निशाना है 2014 की चुनावी रणनीति का कि ‘जनता के दिलो-दिमाग में साधु-संतों के विरूद्ध इतना जहर भर दो कि चुनावों में जनता साधु-संतों पर विश्वास न करे।’ आखिर मीडिया और सरकार केवल हिन्दुओं के ही विरुद्ध इतने बलशाली क्यों हो जाते हैं ? क्या अन्य धर्माचार्यों पर कोई आरोप नहीं लगते ? उनको गिरफ्तार करने की न सरकार में ताकत है और न ही मीडिया में उन पर चर्चा करने की हिम्मत।

मीडिया की आँखें तब भी नहीं खुलीं जब 7 सितम्बर 2013 को फर्जी सेक्स स्केंडल से बाइज्जत बरी होने वाली स्वामी नित्यानंद जी के संदर्भ में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ‘स्टार विजय’ और उसके उप चैनल को 7 दिनों तक हर एक घंटे के बाद माफीनामा चलाने का आदेश दिया था।

वास्तव में आशारामजी बापू के विरुद्ध न ही बलात्कार का मामला है और न ही किसी प्रकार के यौन-शोषण का। आशारामजी बापू एक सफल योजना के तहत विश्वव्यापी स्तर पर विरोध कर रहे थे हिन्दुओं के धर्मांतरण का। इसी प्रकार हिन्दुओं के श्रद्धेय शंकराचार्य को गिरफ्तार किया गया था, उन पर आरोप था खून का। शंकराचार्य जी भी धर्मांतरण का विरोध अपने स्तर पर कर रहे थे। उस समय भी मीडिया में अनर्गल बकवास, चर्चाएँ होती थीं लेकिन जब वे निर्दोष सिद्ध हुए तो किसी भी चैनल ने माफी  तक नहीं माँगी।

वास्तविकता यही है कि जो भी ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाये जा रहे धर्मांतरण में रूकावट बनेंगे, सरकार उन्हें जनता मे जलील करने का काम करती रहेगी और मीडिया कंधे-से-कंधा  मिलाकर हिन्दू-विरोधियों का साथ देता रहेगा

साध्वी प्रज्ञा सिंह और स्वामी असीमानंद को इतने वर्षों से जेलों में यातनाएँ दे रहे थे लेकिन आरोप आज तक  सिद्ध नहीं कर पाये। आतंकवादियों को उनकी पसंद का खाना परोसा जा रहा है और साध्वी प्रज्ञा के भोजन में अंडा मिलाकर उनकी सात्विकता  अपमानित करने कौन-सा कानून है, कौन सी राजनीति है ?

उन पत्रकारों को धन्यवाद है जो जनता की आँखें खोलने के लिए ऐसे पक्ष को भी जनता के सामने रखते हैं जो प्रायः अधिकांश मीडिया द्वारा ब्लैक आउट कर दिये जाते हैं। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि जब 6 सितम्बर को एक न्यूज चैनल ने आशारामजी बापू के विषय पर चर्चा में एक वरिष्ठ पत्रकार को भी बुला लिया। मेहमान पत्रकार ने पूछा कि ‘फलाने नेता की सेक्स विडियो जब सभी चैनलों को भेजी गयी थी तो उसे दिखाने की क्या किसी की हिम्मत हुई ? तब कहाँ गयी थी तुम्हारी पत्रकारिता ? जब अन्य धर्मों में पनप रहे अपराधों की बात आती है तब क्यों नहीं खुलता तुम्हारा मुँह ?’

कहते हैं, ‘आशाराम बापू – बलात्कारी, स्वामी नित्यानंद – सेक्स स्केण्डल वाले, जयेन्द्र सरस्वतीजी – हत्यारे, साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानंद -आतंकवादी’ यानी जो साधु-संत धर्मांतरण और काले धन पर बोलेगा, इसी तरह अपमानित होता रहेगा।

आशारामजी बापू के खिलाफ साजिश की योजना का पर्दाफाश शीघ्रातिशीघ्र होना चाहिए और जनता से अपील की है कि वे सत्य उजागर करने वाले न्यूज चैनल जैसे ए2जेड’, सुदर्शन आदि ही देखें, जिससे बिकाऊ, देशद्रोही, भ्रष्ट मीडिया की टीआरपी बढ़ाने का अवसर न मिल सके।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 16,17, अंक 251

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

आश्रम का कुप्रचार करने वालों को सर्वोच्च न्यायालय का करारा तमाचा


5 वर्ष पूर्व जुलाई 2008 में संत श्री आशारामजी गुरुकुल, अहमदाबाद में पढ़ने वाले दो बच्चों की अपमृत्यु के मामले को लेकर आजकल कुछ चैनलों पर समाज को गुमराह करने वाली झूठी खबरें चलायी जा रही हैं, जबकि सच्चाई इस प्रकार हैः

इस मामले में 9-11-2012 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में आश्रम के सात साधकों पर आपराधिक धारा 304 लगाने की गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया था। मामले की सीबीआई से जाँच कराने की माँग को भी ठुकरा दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात उच्च  न्यायालय के फैसले को मान्य रखा था।

न्याय सहायक विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल), शव परीक्षण (पोस्टमार्टम) आदि कानूनी एवं वैज्ञानिक रिपोर्टें बताती हैं कि बच्चों के शरीर के अंगों पर मृत्यु से पूर्व किसी भी प्रकार की चोटें नहीं थीं। दोनों ही शवों में गले पर कोई भी जख्म नहीं था। सिर के बालों का मुंडन या हजामत नहीं की गई थी। बच्चों के साथ किसी ने सृष्टिविरुद्ध कृत्य (सेक्स) नहीं किया था। बच्चों के शरीर में कोई भी रासायनिक विष नहीं पाया गया।

एफएसएल रिपोर्ट में स्पष्टरूप से उल्लेख किया गया है कि दोनों बच्चों के शवों पर जानवरों के दाँतों के निशान पाये गये अर्थात् शवों के अंगों को निकाला नहीं गया था अपितु वे जानवरों द्वारा क्षतिग्रस्त हुए थे। दोनों बच्चों पर कोई भी तांत्रिक विधि नहीं की गयी थी। पुलिस, सीआईडी क्राइम और एफएसएल की टीमों के द्वारा आश्रम तथा गुरुकुल की बार-बार तलाशी ली गयी, विडियोग्राफी की गयी, विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा साधकों से अनेकों बार पूछताछ की गयी परंतु उनको तांत्रिक विधि से संबंधित कोई सबूत नहीं मिला।

जाँच अधिकारी द्वारा धारा 160 के अंतर्गत विभिन्न अखबारों एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों तथा सम्पादकों को उनके पास उपलब्ध जानकारी इकट्ठी करने के लिए ‘समन्स’ दिये गये थे। ‘सूचना एवं प्रसारण विभाग, गांधीनगर’ द्वारा अखबार में प्रेस विज्ञप्ति भी दी गयी थी कि ‘किसी को भी आश्रम में यदि किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि अथवा घटना होती है – ऐसी जानकारी हो तो वह आकर जाँच अधिकारी को जानकारी दे।’ यह भी स्पष्ट किया गया था कि ‘जानकारी देने वाले उस व्यक्ति को पुरस्कृत किया जायेगा एवं उसका नाम गुप्त रखा जायेगा।’ इस संदर्भ में कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया।

न्यायमूर्ति त्रिवेदी जाँच आयोग में बयानों के दौरान आश्रम पर झूठे, मनगढंत आरोप लगाने वाले लोगों के साथ झूठ का भी विशेष जाँच में पर्दाफाश हो गया। लगातार 5 वर्षों तक जाँच करने के पश्चातत 1 अगस्त 2013 को न्यायमूर्ति श्री डी.के.त्रिवेदी जाँच आयोग ने अपनी जाँच रिपोर्ट गुजरात सरकार को सौंप दी है। कुछ मीडिया में आयी खबर के अनुसार इस रिपोर्ट में आश्रम पर लगाये गये झूठे आरोपों को नकार दिया गया है और आश्रम को क्लीन चिट दी गयी है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2013, पृष्ठ संख्या 9, अंक 251

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ