228 ऋषि प्रसादः अक्तूबर 2011

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

अक्रोध और क्षमा


राजा युधिष्ठिर अक्रोध और क्षमा के मूर्तिमान स्वरूप थे । ‘महाभारत’ के वन पर्व में कथा आती है कि द्रौपदी ने एक बार युधिष्ठिर जी के मन में क्रोध का संचार करने की अतिशय चेष्टा की । उसने कहाः “नाथ ! मैं राजा द्रुपद की कन्या हूँ, पाण्डवों की धर्मपत्नी और ध्रुष्टद्युम्न की बहन हूँ …

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अनुभव का आदर कर लो तो काम बन जाय


पूज्य बापू जी की मधुमय, ज्ञानवर्धक अनुभवमय अमृतवाणी जीवन में रस हो लेकिन रस उद्गम स्थान पर ले जाय । जीवन में रस तो है लेकिन उद्गम स्थान से दूर ले जाता है तो वह जीवन नीरस हो जाता है । जैसे पान मसाले का रस, पति-पत्नी का विकारी रस अथवा वाहवाही का रस । …

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मन का चिंतन ऊँचा करो-पूज्य बापू जी


एक होती है ‘आधि’, दूसरी होती है ‘व्याधि’ । मन के दुःखों को आधि बोलते हैं, शरीर के दुःखों को व्याधि बोलते हैं । जो आधि-व्याधि को सत्य मानता है और उनको अपने में थोपता है तो समझो वह अभी संसार का खिलौना है । मन में दुःख आये, चिंता आये तो बोलेः “मैं दुःखी …

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