अनुभव न होने के तीन कारण

अनुभव न होने के तीन कारण


जिन चीजों को महत्व नही देना चाहिए उन चीजों को महत्व दे रखा है। जिन कर्मों को महत्व नही देना चाहिए उन कर्मों को महत्व दे रखा है। जिस व्यवहार को महत्व कम देना चाहिए उसको हमने अधिक दे रखा है इसलिए हमारा इन्द्रियाँ मन और बुद्धि परमात्मा में स्थिर नही हो पाती। ध्यान से सुनना, आप ध्यान करना मत, सुनना ध्यान से… आत्मसाक्षात्कार करने में अथवा अपने में ईश्वर है उसका अनुभव करने में तीन बातें अड़चन करती है बस! केवल तीन बातें!
पहली बात है जीने की इच्छा … आप जीने की इच्छा न करेंगे तभी भी जिएँगे भैया! श्रीराम! कथा ध्यान से सुने! इधर उधर न देखे।
एक तो जीने की इच्छा, दूसरा – करने की इच्छा और तीसरा- पाने की इच्छा … ये तीन चीजें जो है इंसान को ईश्वर… है तो इंसान ईश्वर, है तो आत्मा परमात्मा!
नानक तुमसे बड़े नही थे, कृष्ण तुमसे बड़े नही थे, कबीर तुमसे बड़े नही थे, लीलाशाह साँई तुमसे बड़े नही थे, और तुम उनसे छोटे नही हो। लेकिन छोटे तुम रह गए और वे बड़े हो गए। कारण एक ही है, इन तीन चीजों को वो लोग समझ गए, अपन लोग नही समझते!
जीने की इच्छा… शरीर में ममता…जीने की इच्छा…दूसरा – करने की इच्छा, तीसरा- पाने की इच्छा…ये जो तीन इच्छाएँ है –
जीने की इच्छा,करने की इच्छा और पाने की इच्छा…इसीसे आदमी अपने केंद्र से बाहर आ जाता है। श्रीराम! अगर ये तीन इच्छाएँ जितने अंश में कम उतने अंश में आदमी महान हो जाएगा। और अगर ये इच्छाएँ तीनों भीतर से चली गई तो आदमी आदमी के रूप में तो दिखेगा लेकिन उसके द्वारा परमात्मा अटखेलियाँ करेगा!
बाहर से तो कार कार दिखेगी लेकिन अंदर इंजिन बदल जाएगा। ऐसे ही वो आदमी तो आदमी दिखेगा, व्यक्ति तो व्यक्ति दिखेगा लेकिन अंदर जीव की जगह पर ईश्वर अटखेलियाँ करेगा!
नानक जब घर छोड़ के गए, साधन भजन करके आत्मज्ञान पाकर आए तो उसका बाप बोलता था कि इसको तो मैं जानता हूँ, ये तो मुझे ????
नही..मॉडल… कालू कहता था ये तो नानक है …मॉडल नानक का है लेकिन अब वो नानक को नानक न समझो, गुरु नानक समझो तो कल्याण होगा।
देवहूति ने अपने पुत्र के अंदर , कपिल मुनि के अंदर भगवान के गीत सुने और उनका उपदेश सुनकर माता देवहूति गदगद हो गई , आत्माराम को प्राप्त हो गई। उसके नेत्रों से जो जल चला वो जल की बूँदे जहाँ पड़े , जहाँ जल के बिंदू पड़े वो सिध्दपुर में बिंदु सरोवर नाम से प्रसिद्ध हुए। श्रीराम!
ये आत्म खजाना ऐसा है कि नही देखता है कि सामने वाला बेटा है कि बाप है, पापी है कि पुण्यात्मा है, पढ़ा लिखा है कि अनपढ़ है, इतना महापापी…साढ़े साठ बैल गाड़ियाँ भर जाए इतने जनेऊ द्विजातियों
के उतरवा लिए थे…वालिया लुटारा..लूटता था लोगों को…जो मर जाते थे उनके जनेऊ साढ़े सात बैल गाड़ियाँ भर जाए उतने इकट्ठे हुए थे, साधु और ब्राह्मणों को भी छीन लेता था,द्विजों को मार देता था। ऐसा वालिया लुटारा वाल्मिकी ऋषि बन सकता है, तो तुम्हारे घर का कोई कुटुंबी या तुम आत्मज्ञान पा लो इसमें कोई कठिनाई नही है भैय्या! श्रीराम!
चिंता ऐसी डाकिनी काटी कलेजा खाय
साँई बेचारा क्या करे कबतक कथा सुनाए?
ॐ ॐ ॐ
मैं वो पंडित की कथा कहूँगा …श्रीराम!
देवशर्मा नाम के पंडित बडी मधुर कथा करते थे। भगवत की सप्ताह करे,कभी देवी भागवत की करे, कभी रामायण करे, कभी महाभारत की कथा करे, पंडित का गुजारा था कथा करना। गुजारा कथा को बना लेना एक बात है लेकिन कथा से थाक उतार देना अपना और दूसरों का वो दूसरी बात है, श्रीराम! कथा…उसको उल्टा दो तो थाक। पंडित थे, व्याख्या करते थे,उसमें बहुत लोग सुनने को आते थे। एक समय की बात है,पुरुषोत्तम मास की , पंडित ने एक महिने की कथा रखी,पुराण रखा। सुनते-सुनते जो श्रोता थे उसमें एक कोई साधक पहुँच गया। और साधक ने देखा कि पंडितजी व्याख्या तो बहुत करते है लेकिन अंदर जगे है कि नही ? जो अंदर जगा हुआ होता है न उसके पास व्याख्या कैसी भी हो लेकिन प्रश्न का उत्तर संतोषकारक आएगा ,उसको देखकर हृदय में शांति आएगी। जो ब्रह्मज्ञानी संत है वो बोलेंगे न भले ग्रामटिकल भूल हो, किस्से कहानियाँ पंडित जैसी न हो फिर भी सच्चे संत जब बोलते है न तो हृदय को शांति मिलती है।श्रीराम! श्रद्धा रखके सुनो तो!
उस पंडित को कोई व्यापारी आ गया.. खांड-वांड बेचता होगा या कुछ बेचता होगा …मुझे पता नही वो खांड बेचता था कि इधर उधर देखता था लेकिन था जरूर कोई ऐसा व्यापारी।श्रीराम! उस ???
ने क्या किया बेचारे ने,पंडित से प्रश्न पूछा कि “महाराज, आप बोलते है पाप नही करो
तो पाप जनमता कैसे है?पाप का बाप क्या है?” बपहि चला जाए तो बेटे पैदा ही न होंगे! पंडित ने कहा “अच्छा,मैं कल जवाब दूँगा।” पाप का बाप…Who is the father of the paap? पाप का पिता कौन? अब पंडितजी ने ऐसा कोई शास्त्र- वास्त्र में ऐसा कोई ऐसा याद उसको रहा नही। रात को घर गया, पोथियाँ-वोथियाँ देखी,दो-दो चश्मे चढ़ाता था पंडित, कभी दूर का पढ़ने का,कभी नजीक का पढ़ने का ..रात का ११-१२ बज गए महाराज! पंडित को कोई ऐसा मिला ही नही कि पाप का बाप कौन है। पंडित से पूछा- लोभ का बाप कौन है?पाप का बाप कौन है? पंडित जी ने पोथे- वोथे खोले,पता नही चला। सुबह को भी अपना नियम-वियम करा और पाप का बाप कौन?पाप का बाप कौन ?कुछ लगा नही हाथ! आखिर वो कथा करने को जा रहे थे…हररोज जहाँ से गुजरते थे रास्ते में एक सुंदर सुहावना चौखट लगा हुआ सुंदर घर था लेकिन घर के अंदर रहने वाली व्यक्ति असुंदर थी,वेश्या थी। उसके कृत्य असुंदर थे, उसका मकान बड़ा सुंदर था, श्रीराम! मकान सुंदर होनेसे जरूरी नही कि वो व्यक्ति सुंदर रहती है और मकान असुंदर होने से जरूरी नही कि व्यक्ति असुंदर रहती है। ऐसे ही तुम्हारा ये चेहरा- मकान सुंदर होने से तुम्हारी बुद्धि सुंदर है ये जरूरी नही है और चेहरा असुंदर होने से तुम्हारा अंदर वाला असुंदर है ऐसी भी बात नही! तो महाराज! वो वेश्या को होता था कि इतने पाप करती है तो रोज ये पंडित जब पसार होते है न, भगवान की कथा करने को जाते है तो इनके दिमाग में भगवान तो है न कि भगवान की कथा करूँगा! तो वेश्या प्रतिदिन उस पंडित का दर्शन करती थी। पंडित कथा में जाए तब भी दर्शन करे और कथा से लौटे तब भी दर्शन करे। जब सुबह का समय था और रात के संध्या के समय तो वेश्या को पता नही चला कि पंडित के दिमाग में कोई उलझन है..लेकिन सुबह जब जा रहे थे तब उलझन बढ़ गई थी। वेश्या ने भाँप लिया क्योंकि पुरुषों से उनका संपर्क होता है और मनोवैज्ञानिक हिस्सा भी उसका विकसित होता है, श्रीराम! वैश्या ने देख लिया कि पंडित उदास हो के जा रहे है। बोली “पंडितजी , नमस्कार! “
बोले “नमस्कार! “
बोली “आज उदास होके जा रहे है!”
बहुत हाजीजी की तब पंडित ने कहा कि किसीने सवाल पूछा है-“पाप का बाप कौन है?” उसका उत्तर नही आ रहा है। उसी सोच विचार में जा रहे है। जरूरी नही कि पंडित के मुँह से ही शास्त्र निकले, कभी कभी वेश्या के मुँह से भी भगवान चाहे तो शास्त्र निकालता है,वो समर्थ है! जरूरी नही कि मैं बोलू और शास्त्र हो, कभी कभी
आप बोले और शास्त्र हो सकता है, जय रामजी की! महाराज ! वेश्या के मुँह से शास्त्र तो क्या निकले, वेश्या के व्यवहार से शास्त्र निकला। वेश्या ने प्रणाम किया, बोले
” महाराज! ये तो जरासी बात है। पाप का बाप कौन आपको पता नही?”
बोले “नही!मुझे पता नही।”
बोले “महाराज! तो फिर आज कथा जाकर क्या करोगे?थोड़े लेट चले जाना,मैं आदमी भेज देती हूँ वो लोग कीर्तन करेंगे। और १ घँटा,२ घँटा श्याम की कथा बढा देना। दिन की कथा पावन करो…कृपा करो आज मेरा घर पावन करो आप।”
सौ का नोट धर दिया पंडितजी के चरणों में…घर पावन करो। पंडित ने देखा रुपया, आठ आना बहुत देते है, सौ रुपया दे रही है
एक मिनट घूम के निकल जाऊँगा ,लोग देखेंगे तो नही! आटा माँग के बाहर !
बोले, “बाहर क्या जाते हो?अब आए हो ,आज मेरे घर का कुछ… सीधा मैं देती हूँ …आप ही बनाकर भोजन कर लो।”
सौ का नोट और रख दिया!
पंडित ने देखा सीधा बना के खाने में सौ रुपया दक्षिणा मिलती है…सीधा बनाने को ही जा रहे थे, बोले “नाथ! आज तो पक्की रसोई है! पक्की रसोई में तो कोई ????
होती नही।मेरे को संकल्प है कि मैं बनाऊँ और आप खा लोगो।क्योंकि पक्की रसोई है पानी तो डालना नही! दूध से आटा गुंदूँगी ,पूरी तलूँगी, सीरा बनाऊँगी तो वो भी दूध से, सबकुछ दूध से होगा…पक्की रसोई है!” सौ रुपया धर दिया!
महाराज! आटा गूंद लिया, वेश्या ने भोजन बनाया…अब बोले “पंडितजी!मैंने आजतक न जाने कितने पाप कर्म किए और तुम कितने धर्मात्मा! मेरे घर को पावन किया, अब मेरे रसोई को पावन कर रहे हो , अब मेरे हाथों को पावन करो..मेरी इच्छा है कि अपने हाथ से आपके मुँह में ग्रास रखूँ!”
सौ का नोट धर दिया और ग्रास मुँह में धरने लगी, पंडित ने मुँह खोला और दे तमाचा! This is the father of the paap! पाप का बाप ये है लोभ! पंडित है, छूते नही, ये नही करते,वो नही करते , किसीके घर नही रहते, रसोई में नही खाते लेकिन तीन नोटों ने तुम्हारा सबकुछ पोथियों में रख दिया! ” जय रामजी की!
ये केवल एक पंडित नही , हम लोग दुकान पे बैठ के भी तो पंडित के भाई होते है भैय्या! जो चिंता बढ़ जाती है न हमारे पास अनुचित धन आता है। श्रीराम! जब बीमारियाँ बढ़ने लगे तो समझ जाना अनुचित धन आया है। चिंता बढ़ जाए तो समझ लेना पाप का बाप आया है…ॐ ॐ ॐ… इसीलिए नाव में पानी भर जाए तो दोनों हाथ धो लेने चाहिए और घर में धन आ जाए तो भी दोनो हाथ से सत्कर्म में लगाए। तो इन्द्रियाँ फिर आपकी संयत रहेगी, मन शांत रहेगा और बुद्धि परमात्मा में स्थिर होगी। श्रीराम!
धन आता है तो आदमी बेफाम होने लगता है, धन आता है तो आदमी की विलासिता बढ़ जाती है, धन आता है तो आदमी बाहर से तो बलवान दिखता है लेकिन अंदर से खोखला होता जाता है। जितना आदमी धनवान अधिक उतना अंदर से खोखला अधिक! श्रीराम! जय रामजी की! जितना धनवान अधिक उतना अंदर से खोखला अधिक…हाँ! उस धन के साथ अगर राम नाम धन है तो, उस धन के साथ अगर गुरुओं का ज्ञान का धन है तो और बात है लेकिन नही तो महाराज! जितना धन और सत्ता बढ़ती है उतना आदमी अंदर से कंगाल हो जाता है और इन्द्रियाँ और मन उसकी बेफाम हो जाती है! श्रीराम!

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