हे मनुष्य ! तू ईश्वरीय वचन को स्वीकार कर
अपक्रामन् पौरूषेयाद् वृणानो दैव्यं वचः । प्रणीतीरभ्यावर्तस्व विश्वेभिः सखिभिः सह ।। ‘हे मनुष्य ! पुरुषों की, मनुष्यकृत बातों से हटता हुआ देव-संबंधी, ईश्वरीय वचन को श्रेष्ठ मान के स्वीकार करता हुआ तू इन दैवी उत्तम नीतियों का, सुशिक्षाओं का अपने सब साथी मित्रों सहित सब प्रकार से आचरण कर ।’ (अथर्ववेदः कोड 7 सूक्त 105, …