महापुरुष देते अजब युक्तियाँ

महापुरुष देते अजब युक्तियाँ


(गुरु अर्जुन देव शहीदी दिवसः 7 जून 2019)

एक दिन मंगलसेन नाम का एक व्यक्ति अपनी मंडली के साथ गुरु अर्जुनदेव जी के दरबार में आया । उसने प्रार्थना कीः “गुरु महाराज ! कोई ऐसी युक्ति बताइये जिससे हमारा भी कल्याण हो जाय ।”

अर्जुनदेव जी बोलेः “जीवन में सत्य पर पहरा देना सीखो, कल्याण अवश्य ही होगा ।”

मंगलसेन बोलाः “मेरे लिए यह कार्य अत्यंत कठिन है ।”

“मंगलसेन ! तुम इसी जन्म में अपना कल्याण चाहते हो और उसके लिए कोई मूल्य भी चुकाना नहीं चाहते ! दोनों बातें एक साथ कैसे हो सकती हैं ?”

मंगलसेन के चेहरे पर गम्भीरता छा गयी, बोलाः “मैं आपके बताये सत्य के मार्ग पर चलना तो चाहता हूँ पर एकाएक जीवन में क्रांति लाना इतना सहज नहीं है क्योंकि अब तक हमारा स्वभाव परिपक्व हो चुका है कि हम झूठ बोले बिना नहीं रह सकते ।”

अर्जुनदेव जी ने उत्साहवर्धन करते हुए कहाः “धीरे-धीरे प्रयास करो । जहाँ चाह, वहाँ राह । परमात्मा की कृपा का सहारा लेकर लग जाओ तो ऐसा क्या है जो नहीं हो सकता ! केवल दृढ़ संकल्प करने की आवश्यकता है ।”

“गुरु महाराज ! इस कठिन कार्य में जब हम डगमगायें तो हमें सहारा देने वाला कोई प्रेरणास्रोत भी हो, ऐसी कुछ कृपा कीजिये ।”

अर्जुन देव जी ने एक सुंदर युक्ति बतायीः “एक कोरी लेखन-पुस्तिका सदैव अपने पास रखो, जब कभी किसी मजबूरीवश झूठ बोलना पड़े तो उस पूरे वृत्तांत को लिख लिया करो और सप्ताह बाद उसे सत्संगियों की सभा में सुना दिया करो । सभा कार्य की विवशता को ध्यान में रखकर क्षमा करती रहेगी ।”

उपरोक्त बात सुनने में जितनी सहज लगती थी, जीवन में अपनानी उतनी ही कठिन थी । मंगलसेन को अपने झूठ का विवरण सबके समक्ष रखना ग्लानिपूर्ण लगा । वह गरु आज्ञानुसार अपने पास एक लेखन-पुस्तिका रखने लगा किंतु जब भी कोई कार्य-व्यवहार होता तो बहुत सावधानी से कार्य करता ताकि झूठ बोलने की नौबत ही न आये ।

मंगलसेन जानता था कि सद्गुरु सर्वसमर्थ और सर्वज्ञ होते हैं इसलिए वह बड़ी सतर्कता से व्यवहार करता । सत्याचरण करने से वह धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगा । उसे सब ओर से मान-सम्मान भी मिलने लगा ।

ऐसी स्थिति में अहंकार अपने पैर पसाने लगता है परंतु मंगलसेन सावधान था । उसे अंतःप्रेरणा हुई कि ‘यह क्रांतिकारी परिवर्तन तो गुरुवचनों को आचरण में लाने का ही परिणाम है ।’

वह अपने सहयोगियों की मंडली के साथ पुनः गुरुदेव की शरण में पहुँच गया । अंतर्यामी गुरुदेव सब कुछ जानते हुए भी सत्संगियों को सीख देने के लिए अनजान होकर बोलेः “मंगलसेन ! वह झूठ लिखने वाली पुस्तिका लाओ ।”

मंगलसेन ने वह पुस्तिका गुरु जी के समक्ष रख दी । अर्जुनदेव जी पुस्तिका को देखकर बोलेः “यह तो कोरी की कोरी है ।”

तब मंगलसेन ने सब हाल कह सुनाया । गुरुदेव उस पर प्रसन्न होकर बोलेः “जो श्रद्धा-विश्वास के साथ गुरुवचनों के अनुसार आचरण करता है, उसके संग प्रभु स्वयं होते हैं, गुरु का अथाह सामर्थ्य उसके साथ होता है, उसे किसी भी कार्य में कोई कठिनाई आड़े नहीं आती ।”

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2019, पृष्ठ संख्या 18,19 अंक 317

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