अशुभ से लोहा लेना चाहिए – पूज्य बापू जी

अशुभ से लोहा लेना चाहिए – पूज्य बापू जी


 

(शंकराचार्य श्री जयेन्द्र सरस्वती की रिहाई के बाद 19 जनवरी 2005 को हुए सत्संग से)

जब-जब अन्याय हुआ तो संतों ने ही लोहा लिया है। अंग्रेज इतना अन्याय करते थे तो संतों की प्रेरणा से ही लोगों में जागृति आयी और फिर गांधी जी भी तैयार हो गये। स्वामी रामतीर्थ का संकल्प, विवेकानंद जी का संकल्प, ऋषि दयानंद जी आदि का संकल्प…..

एक संत को वाइसरॉय ने बुलाया कि “आपके सत्संग ठीक होते हैं न ? हमारे ब्रिटिश शासन में आपको कोई समस्या तो नहीं ?

संत बोलेः “नहीं, सब ठीक होता है।”

“तो आप सत्संग के बाद प्रार्थना किया करो न, कि ‘ब्रिटिश शासन भारत में रहे।’ ये सब लोग भारत की आजादी-आजादी…. सब बकवास कर रहे हैं।”

“यह तो नहीं हो सकता है। मैं यह कह सकता हूँ कि ब्रिटिश शासन का खात्मा जल्दी हो। भारत आजाद हो।”

शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी को फँसाया जा रहा था तो हम लोगों ने इसके विरोध में दिल्ली में एक दिन का सत्याग्रह किया था। उस समय 80-90 प्रतिशत लोग बोलते थे कि “बापू जी ने बहुत बढ़िया किया”, 5-10 प्रतिशत लोग होते हैं न, कि “संतों को यह सब करने की क्या जरूरत है ?” अरे ! तुम क्या सिखाते हो कि ‘संतों को यह नहीं करना चाहिए, वह नहीं करना चाहिए…..’ तुम्हारी बेचारी पहुँच क्या ! तुम अपना ही घर, अपना ही दिल सँवार लो तो बहुत है।

हम तो बैठ गये सत्याग्रह में। शंकराचार्य जी के खिलाफ 1-2 दिन पहले कुछ लोगों ने बयान दिये थे कि ‘उनको पद से इस्तीफा दे देना चाहिए जब तक निर्दोष साबित नहीं होते ” जब हम लोग सत्याग्रह पर बैठे तो जो मनचाहे बयान देते थे, उन सबके तेवर बदल गये। आप भगवत्प्रेरणा से कोई कार्य करते हो तो दुनिया फिर उसके अनुसार पटरी बदलने को तैयार हो जाती है। इसका अर्थ यह नहीं कि हमने सत्याग्रह किया उसी से हो गया, नहीं। फिर भी कोई अच्छा कार्य शुरु करता है तो भगवान की दया से सब लोगों का सहयोग मिल जाता है। इसीलिए बुरे से लोहा लेना चाहिए। कोई आदमी पीड़ित हो रहा हो और अन्याय होता हो तो आपका जितना भी बस चलता है, बुद्धिपूर्वक, धैर्यपूर्वक अशुभ से लोहा लेकर शुभ की मदद करना चाहिए।

आजकल बहुत झूठे केस हो जाते हैं। शत्रुता से या किसी कारण के अथवा दहेज के बहुत झूठे केस होते हैं। कई बार तो निर्दोष लोग खून के केस में झूठे फँसाये जाते हैं। कोई झूठा फँस गया हो तो उसको बचाने के लिए शुभ संकल्प करें, मंत्रजप करना चाहिए तो वह बच जायेगा, निर्दोष छूट जायेगा।

जैसे शंकराचार्य जी के लिए जब तूफान चला तो वहाँ अशुभ भावनावाली टोली कम नहीं थी लेकिन जब शुभ भावना के संकल्प ने जोर पकड़ा तो अशुभ दबा। अशुभ से लोहा लेने के लिए शुभ लोगों को संगठित होना चाहिए, आवाज उठानी चाहिए। संसार है, शुभ-अशुभ चलता रहता है। अशुभ से दबो मत और शुभ का अभिमान करो मत। पक्षपात नहीं करो, सत्य का आश्रय लो। प्रीतिपूर्वक भगवान का जप करो और जब संसार की कोई समस्या सुलझानी हो तो विश्वासपूर्वक चिंतन करो कि ‘यह काम होगा, भगवान जानते हैं। मैं निर्दोष हूँ अथवा फलाना निर्दोष है, छूटेगा ही।’ ऐसा संदेह न करो कि ‘छूटेगा कि नहीं ? अपना क्या ? मैं दिल्ली में उपवास करूँ और वे मद्रास में हैं, उनको लाभ होगा कि नहीं ?’ अरे ! हम बैठे हैं तो संकल्प जायेगा, देर-सवेर रंग आयेगा तो पूरे हिन्दुस्तान में रंग आ गया। आपका इरादा पक्का होना चाहिए और स्वार्थ नहीं होना चाहिए बस। हमें तो संतोष है कि हमने जयेन्द्र सरस्वती जी के लिए अन्याय के खिलाफ जो धरना दिया था वह सार्थक हो गया।

निंदा स्तुति से जुड़ो नहीं

प्रभु के साथ रहो

करोड़ों लोग यशगान करते हैं तो हजारों लोग थोड़ी निंदा कर लेंगे तो क्या है ! लाखों या करोड़ों भी निंदा कर लेंगे तो क्या है ! जिसकी स्तुति हुई उसकी निंदा हुई, हम तो अपने-आप, प्रभु के साथ। यह इसीलिए बता रहा हूँ कि आप भी मजबूत बन जाओ, गंदी झूठी अफवाह से डरो नहीं। बोलेः ‘झूठ –मूठ में मेरी बेइज्जती कर दी…..’ कर दी तो कर दी। जिसकी कर दी वह शरीर है, अगर सचमुच में की तो तू बुराई से बच जा और झूठा आरोप किया है तो करने दे, उनका तो धंधा है। वे तो ब्लैकमेलिंग करने के लिए, पैसे नोंचने के लिए अखबारों में, चैनलों में किसी को भी निंदा का शिकार बना देते हैं, ऐसे क्या डरना ! जरा-जरा बात में डरने की क्या जरूरत है !

अपनी तरफ से बुरा नहीं करते फिर कोई बुराई थोप दे तो क्यों डरना ? मजबूत बनो। आपकी इज्जत, आपका मनोबल ऐसा क्या कि 5-25 आदमी बेईमानी या द्वेष से आपकी निंदा करें और आप तुच्छ हो जाओ। आप ऐसे तुच्छ नहीं हो। और 50-100 चमचे आपकी वाहवाही करें और आप बड़े हो गये, इसमें भी भोले नहीं पड़ो। यह संसार है, हम हैं अपने आप, प्रभु के साथ निंदा में, स्तुति में। बस, यह मंत्र पक्का रखो। ‘जन्म के पहले प्रभु के साथ थे, अभी भी प्रभु के साथ हैं, निंदा और स्तुति सब आयी गयी, हम तो प्रभु के साथ। प्रभु हम तुम्हारे साथ हैं न ? हैं न ? हैं न ? दे ताली, ले मजा !’ इतना तो यार सीख लो तुम, कम-से-कम जितना ट्रक ड्राइवर ट्रक के पीछे लिख के चलते हैं, ‘बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला।’ आजकल ऐसा ही है, सूझबूझ से जीना पड़ेगा। और जितना आप इन चीजों से डरोगे उतना वे ब्लैकमेलिंग वाले आपकी नस जान जायेंगे, आपको शोषित कर देंगे।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 257

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