Monthly Archives: June 2016

Rishi Prasad 270 Jun 2015

संत की महिमा


एक संत हजारों असंत को संत बना सकते हैं लेकिन हजारों संसारी मिलकर भी एक संत नहीं बना सकते। संत बनना कोई मजाक की बात नहीं है। एक संत कइयों के डूबते हुए बेड़े तार सकते हैं, कइयों के पापमय मन को पुण्यवान बना सकते हैं, कई अभागों का भाग्य बना सकते हैं, कई नास्तिकों को आस्तिक बना सकते हैं, कई अभक्तों को भक्त बना सकते हैं, दुःखी लोगों को शांत बना सकते हैं और शांत में शांतानंद (आत्मानंद) प्रकट कराके उसे मुक्त महात्मा बना सकते हैं। एक बार राजा सुषेण कहीं जा रहे थे। राजा के साथ उनका इकलौता बेटा, रानी और गुरु महाराज थे। यात्रा करते-करते एकाएक आँधी-तूफान आया। नाव खतरे में थी। सबके प्राण संकट में थे। सुषेण के कंठ में प्राण आ गये। राजा जोर-जोर से चिल्लाने लगेः “अरे बचाओ ! बाबा जी को बचाओ !! और कुछ भी ना करो, केवल इन बाबा जी को बचाओ !…” बस, इस बात की रट लगा दी। एक बार भी नहीं बोला कि ‘मुझे बचाओ, राजकुमार को बचाओ, रानी को बचाओ।’ बड़ी मुश्किल से दैवयोग से नाव किनारे लगी। सबके जी में जी आया।

मल्लाहों का जो आगेवान था, उसने पूछाः “राजा साहब ! आपने एक बार भी नहीं कहा कि मुझे बचाओ, रानी को बचाओ, मेरे बच्चे को बचाओ। बाबा जी को बचाओ, बाबा जी को बचाओ बोलते रहे !”

राजा बोलाः “मेरे जैसे दूसरे राजा मिल जायेंगे। मैं मर जाऊँगा तो गद्दी पर दूसरा आ जायेगा। रानी और उत्तराधिकारी भी दूसरे हो जायेंगे लेकिन हजारों के दिल की गद्दी पर दिलबर को बैठाने वाले ये ब्रह्मज्ञानी संत बड़ी मुश्किल से होते हैं। इसलिए ये बच गये तो सब बच गया।”

राजा संतों की महिमा को जानता था कि संतों की वाणी से लोगों को शांति मिलती है। संतों के दर्शन से समाज का पुण्य बढ़ता है। वे दिखते तो इन्सान हैं लेकिन वे रब से मिलाने वाले महापुरुष हैं। ब्रह्मवेत्ता संत का आदर मानवता का आदर है, ज्ञान का आदर है, वास्तविक विकास का आदर है। ऐसे ब्रह्मज्ञानी संत धरती पर कभी-कभार होते हैं। जितनी देर ब्रह्मवेत्ता संतों के चरणों में बैठते हैं और वचन सुनते हैं, वह समय अमूल्य होता है। संत के दर्शन-सत्संग से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-चारों फल फलित होने लगते हैं। उन्हीं संत से अगर हमको दीक्षा मिली तो वे हमारे सदगुरु बन गये। तब तो उनके द्वारा हमको वह फल मिलता है, जिसका अंत नहीं होता।

पुण्य-पाप, सुख-दुःख दे नष्ट हो जाते हैं परंतु संत के, सदगुरु के दर्शन-सत्संग का फल अनंत से मिलाकर मुक्तात्मा बना देता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2015, पृष्ठ संख्या 19, अंक 270
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

स्वास्थ्य व सत्त्व वर्धक बिल्वपत्र


 

बिल्वपत्र (बेल के पत्ते) उत्तम वायुशामक, कफ-निस्सारक व जठराग्निवर्धक हैं। ये कृमि व शरीर की दुर्गंध का नाश करते हैं। (बिल्वपत्र ज्वरनाशक, वेदनाहर, संग्राही (मल को बाँधकर लाने वाले) व सूजन उतारने वाले हैं। ये मूत्रगत शर्करा को कम करते हैं, अतः मधुमेह में लाभदायी हैं। बिल्वपत्र हृदय व मस्तिष्क को बल प्रदान करते हैं। शरीर को पुष्ट व सुडौल बनाते हैं। इनके सेवन से मन में सात्त्विकता आती है।

कोई रोग न भी हो तो भी नित्य बिल्वपत्र या इनके रस का सेवन करें तो बहुत लाभ होगा। बेल के पत्ते काली मिर्च के साथ घोंट के लेना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हितकर है। इनके रस में शहद मिलाकर लेना भी लाभकारी है।

औषधीय प्रयोग

मधुमेह (डायबिटीज)- बिल्वपत्र के 10-15 मि.ली. रस में 1 चुटकी गिलोय का सत्त्व एवं 1 चम्मच आँवले का चूर्ण मिला के लें।

स्वप्नदोषः बेलपत्र, धनिया व सौंफ समभाग लेकर कूट लें। यह 10 ग्राम मिश्रण शाम को 125 मि.ली. पानी में भिगो दें। सुबह खाली पेट लें। इसी प्रकार सुबह भिगोये चूर्ण को शाम को लें। स्वप्नदोष में शीघ्र लाभ होता है। प्रमेह एवं श्वेतप्रदर रोग में भी यह लाभकारी है।

धातुक्षीणता- बेलपत्र के 3 ग्राम चूर्ण में थोड़ा शहद मिला के सुबह शाम लेने से धातु पुष्ट होती है।

मस्तिष्क की गर्मी– बेल की पत्तियों को पानी के साथ मोटा पीस लें। इसका माथे पर लेप करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होगी और नींद अच्छी आयेगी।

छोटी पर निरोगता की लिए जरूरी बातें

शक्कर की बनी मिठाईयाँ, चाय, कॉफी अति खट्टे फल, अति तीखे, अति नमकयुक्त तथा उष्ण-तीक्ष्ण व नशीले पदार्थों के सेवन से वीर्य में दोष आ जाते हैं।

प्रातः उठते ही 6 अंजलि जल पियो। सूर्यास्त तक 2 से ढाई लीटर जल अवश्य पी जाओ। गर्मियों में जब शरीर से श्रम करो, तब इससे अधिक जल की आवश्यकता होती है।

जिन सब्जियों का छिलका बहुत कड़ा न हो, जैसे गिल्की, परवल, टिंडा आदि, उन्हें छिलके सहित खाना अत्यंत लाभकारी है। जिन फलों के छिलके खा सकते हैं जैसे सेवफल, चीकू आदि, उन्हें खूब अच्छी तरह धो के छिलकों के साथ खाना चाहिए। दाल भी छिलके सहित खानी चाहिए। चोकर अथवा छिलके में पोषकतत्त्व होते हैं और इनसे पेट साफ रहता है। सब्जी, फल आदि धोने के बाद कीटनाशक आदि रसायनों का अंश छिलकों पर न बचा हो इसका ध्यान रखें, अन्यथा नुक्सान होगा। सेवफल को चाकू से हलका-सा रगड़कर उस पर लगी मोम उतार लेनी चाहिए।

घी-तेल में तले हुए पकवानों का कभी-कभी ही सेवन करना चाहिए। नित्य या प्रायः तली हुई पूड़ी पकवान, पकौड़े, नमकीन खाने से कुछ दिनों में पेट में कब्ज रहने लगेगा, अनेक बीमारियाँ बढ़ेंगी।

खटाई में नींबू व आँवले का सेवन उत्तम है। कोकम व अनारदाने का उपयोग अल्पमात्रा में कर सकते हैं। अमचूर हानिकारक है।

भोजन इतना चबाना चाहिए कि गले के नीचे पानी की तरह पतला हो के उतरे। ऐसा करने से दाँतों का काम आँतों को नहीं करना पड़ता। इसके लिए बार-बार सावधान रहकर खूब चबा के खाने की आदत बनानी पड़ती है।

अच्छी तरह भूख लगने पर ही भोजन करें, बिना भूख का भोजन विकार पैदा करता है।

भोजन के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। अधिक यात्रा के बाद तुरंत स्नान करने से शरीर अस्वस्थ हो जाता है। थोड़ी देर आराम करके स्नान कर सकते हैं।

बदन दर्द के सचोट उपाय

25-30 मि.ली. सरसों के तेल में लहसुन की छिली हुई चार कलियाँ व आधा चम्मच अजवायन डाल के धीमी आँच पर पकायें। लहसुन और काली पड़ जाने पर तेल उतार लें, थोड़ा ठण्डा होने पर छान लें। इस गुनगुने तेल की मालिश करने से वायु प्रकोप से होने वाले बदन दर्द में राहत मिलती है।

100 ग्राम सरसों के तेल में 5 ग्राम कपूर डालें और शीशी को बंद करके धूप में रख दें। तेल में कपूर अच्छी तरह से घुलने पर इसका उपयोग कर सकते हैं। इसकी मालिश से वातविकार तथा नसों, पीठ, कमर, कूल्हे व मांसपेशियों के दर्द आदि में लाभ होता है। मातायें छाती पर यह तेल न लगायें, इससे दूध आना बंद हो जाता है।

सिर व बालों की समस्या से बचने हेतु

सर्वांगासन ठीक ढंग से करते रहने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं, झड़ना बंद हो जाता है और बाल जल्दी सफेद नहीं होते, काले, चमकीले और सुंदर बन जाते हैं। आँवले का रस कभी-कभी बालों की जड़ों में लगाने से उनका झड़ना बंद हो जाता है। (सर्वांगासन की विधि आदि पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘योगासन’ के पृष्ठ 15 पर।)

युवावस्था से ही दोनों समय भोजन करने के बाद वज्रासन में बैठकर दो-तीन मिनट तक लकड़ी की कंघी सिर में घुमाने से बाल जल्दी सफेद नहीं होते तथा वात और मस्तिष्क की पीड़ा संबंधी रोग नहीं होते। सिरदर्द दूर होकर मस्तिष्क बलवान बनता है। बालों का जल्दी गिरना, सिर की खुजली व गर्मी आदि रोग दूर होने में सहायता मिलती है। गोझरण अर्क में पानी मिलाकर बालों को मलने से वे मुलायम, पवित्र, रेशम जैसे हो जाते हैं। घरेलू उपाय सात्त्विक सचोट और सस्ते हैं बाजारू चीजों से।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2016, पृष्ठ संख्या 32,33 अंक 282

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

सत्कर्मों का महाफल देने वाला कालः चतुर्मास


पूज्य बापू जी

चतुर्मास व्रतः 15 जुलाई 2016 से 11 नवम्बर 2016)

चतुर्मास में भगवान नारायण एक रूप में तो राजा बलि के पास रहते हैं और दूसरे रूप में शेषशय्या पर शयन करते हैं, अपने योग स्वभाव में, शांत स्वभाव में, ब्रह्मानंद स्वभाव में रहते हैं। अतः इन दिनों में किया हुआ जप, संयम, दान, उपवास, मौन विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है। भगवान शेषशय्या पर सोते हैं, अतः हमें धरती या पलंग पर सादा बिस्तर अथवा कम्बल बिछाकर शयन करना चाहिए।

चतुर्मास में दीपदान करने वाले की बुद्धि, विचार और व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है और कई दीपदान करने का फल भी होता है। इन दिनों में प्रातः नक्षत्र (तारे) दिखें उसी समय उठ जाय, नक्षत्र-दर्शन करे। चौबीस घंटे में एक बार भोजन करे – ऐसे व्रत परायण व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है। (पद्म पुराण, उत्तर खण्ड)

चतुर्मास में केवल दूध पर रहने वाला अथवा केवल फल पर रहने वाले के पापों का नाश हो जाता है तथा साधन भजन में बड़ा बल मिलता है – ऐसा स्कंद पुराण में लिखा है। नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है। जो दही का त्याग करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है।

चतुर्मास में दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिए। बाकी दिनों में गृहस्थी को शुक्ल पक्ष की ही एकादशी रखनी चाहिए। चतुर्मास में शादी-विवाह, सकाम कर्म वर्जित हैं। तिल व आँवला मिश्रित अथवा बिल्वपत्र के जल से स्नान करना पाप नाशक, प्रसन्नता दायक होगा। अगर ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय…. 5 बार जप करके फिर पानी का लोटा सिर पर डाला तो पित्त की बीमारी, कंठ का सूखना – यह कम हो जायेगा, चिड़चिड़ा स्वभाव भी कम हो जायेगा।

चतुर्मास में पाचनतंत्र दुर्बल होता है तो खानपान सादा, सुपाच्य होना चाहिए। इन दिनों पलाश की पत्तल पर भोजन करने वाले को एक-एक दिन एक-एक यज्ञ करने का फल होता है, वह धनवान, रूपवान और मानयोग्य व्यक्ति बन जायेगा। पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को प्राप्त कराने वाला होता है। नहीं तो वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना पुण्यदायी कहा गया है।

भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाओ तो पूरे मंदिर में बिल्वपत्र का हवामान रहेगा और वही हवा श्वास के द्वारा व्यक्ति लेगा, इससे वायु-प्रकोप दूर होगा तथा वनस्पति व मंत्र का आपस में जो मेल होगा उसका भी लाभ मिलेगा। इसलिए सावन महीने में बिल्वपत्र की महिमा है।

इन 4 महीनों में अगर पति-पत्नी हैं, तब भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आयु, आरोग्य और पुष्टि में वृद्धि करता है। भोग-विलास, शारीरिक स्पर्श ज्यादा हानि करेगा। इस समय सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं तो जीवनी शक्ति कमजोर रहती है, जिससे वीर्य, ओज कम बनता है। जो विदेशी लोग चतुर्मास के महत्त्व को नहीं जानते वे ‘यह पाऊँ, यह खाऊँ….’ में उलझते हैं, विकलांग, चिड़चिड़े, पति बदलू, पत्नी बदलू, फैशन बदलू हो जाते हैं, फिर भी दुःखी व अशांत रहते हैं। जो इसका महत्त्व जानते हैं और नियम पालते हैं वे कुछ बदलू नहीं होते फिर भी अबदल आत्मा में उनका रसमय जीवन होता है। कितनी असुविधा होती है भारतवासियों को, फिर भी शांति, आनंद और मस्ती मजे में रह रहे हैं। और कई माई-भाई ऐसे हैं कि जो वे कह देते हैं वह हो जाता है अथवा जो होनी होती है वह उनको पता चल जाती है। विदेशियों के पास ऐसा सामर्थ्य नहीं है।

चतुर्मास में निंदा न करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, किसी भी अविवाहित या दूसरे की विवाहित स्त्री पर बुरी नजर न करे, संत-दर्शन करे, संत के वचन वाले सत्शास्त्र पढ़े, सत्संग सुने, संतों की सेवा करे और सुबह या जब समय मिले भ्रूमध्य में ॐकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है।

मिथ्या आचरण का त्याग कर दे और जप अनुष्ठान करे तो उसे ब्रह्मविद्या का अधिकार मिल जाता है। जिसने चतुर्मास में संयम करके अपना साधन भजन का धन इकट्ठा नहीं किया मानो उसने अपने हाथ से अमृत का घड़ा गिरा दिया। और मासों की अपेक्षा चतुर्मास में बहुत शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति होती है। जैसे चतुर्मास में दूसरे मौसम की अपेक्षा पेड़ पौधों की कलमें विशेष रूप से लग जाती हैं, ऐसे ही चतुर्मास में पुण्य, दान, यज्ञ, व्रत, सत्य आदि भी आपके गहरे मन में विशेष लग जाते हैं और महाफल देने तक आपकी मदद में रहते हैं।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2016, पृष्ठ संख्या 24,25 अंक 282

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ