ऐसे ही हर सत्संग में गुरु के स्थान पर वे लीलाशाह महाराज जी की तस्वीर रखते है , शायद अपने निगुरेपन को छुपाने के लिए । हमने गूगल पर सर्च किया तो पता चला लीलाशाह महाराज जी का महािनवार् 4 नवंबर 1973 को हुआ हैऔर प्रभु जी का जन 15 दिसंबर 1974 को हुआ है(screenshot) लीलाशाहजी महाराज के शरीर छोड़ने
के पश्चात हुआ है तो उनसे दीक्षा लेना और उनकी कृपा से आत्मसाक्षात्कार होना तो असंभव है ।
ऐसे ही लोगों में यह संभ्रम बनाए हए हैं की गुरू भक्ति की बातें तो बहुत करते हैं पर यह नहीं बताते कि इनके गुरू कौन है? उनके पिताजी जिनसे उनको गुरुमंत्र बचपन में मिला वह या जिन से मंत्र लेने की बात तो दूर ही है पर उनसे वह कभी मिली भी नहीं और जिनके फोटो सत्संग कार्यक्रमों में लगाते हैं वह ब्रह्मलीन साईं लीलाशाह या जिनको आत्म साक्षात्कार हुआ नहीं है ऐसे मैया ? मैयाजी को आत्म साक्षात्कार हआ नहीं यह बात बापू स्वयं
बताते हैं(वीडीयो)
यह तो संभव है कि कोई गरीब महिला अगर किसी करोडपति से विवाह कर ले तो वह धनवान हो जायेगी
लेकिन किसी वैज्ञानिक के साथ किसी अनपढ़ मिहला का विवाह हो जाए तो क्या वह महिला भी वैज्ञानिक हो जायेगी? और उस मिहला को कुछ बच्चे हो जाए तो क्या वे सब बच्चे भी वैज्ञानिक हो जाय? इसी तरह किसी ब्रह्मज्ञानी से किसी अज्ञानी मिहला का विवाह हो जाए तो वह महिला ब्रह्मज्ञानी नहीं हो जाएगी और
उसके बच्चे भी ब्रह्मज्ञानी नहीं हो जाएगे । अगर वे ब्रह्मज्ञानी पिता के सिद्धांत के अनुसार चलकर कृपा को हजम करेंगे तो ही वे ब्रह्मज्ञानी हो सकते है । अगर गुरु के द्वारा प्रमािणत हए बिना पुजवाने की वासना से पीड़ित होकर ज्ञान की गहराइयों की बातें करते रहेंगे तो उनको कभी ब्रह्मज्ञान नही हो सकता । और रही साक्षात्कार की बात तो लीलाशाहजी महाराज की कृपा से तो न हीं हुआ क्योंकि वह उनके सानिध्य मे नहीं रही ना मंत्र ही लिया है
मैया जी से भी नहीं क्योंकि मैया जी को भी नहीं हुआ यह बात बापू भी बताते हैं। आत्म साक्षात्कार किए हए पिताजी से भी नहीं क्योंकि वह उनको गुरु मानती ही नहीं अगर मानती तो उनका नाम जीवनी में चरित्र में अवश्य छपवाती।