भारती देवी की पूजवाने की वासना

भारती देवी की पूजवाने की वासना


आखिर किस आधार पर उनके भक्त उनको आत्माज्ञानी मानते है? एक सच्चे ब्रह्मज्ञानी गुरु के शिष्य होकर भी किसी पाखंडी के चक्कर में क्यों आते? फिर भी उनका कसूर नहीं है । आसुरी माया का प्रभाव ही ऐसा होता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते है कि उनकी दैवी माया बड़ी दुस्तर है फिर भी कोई कोई सतगुरू के शिष्य उनकी कृपा से माया को तर जाते है लेकिन आसुरी माया तरना तो असंभव है क्योंकि वह शिष्य की श्रद्धा सतगुरू से

अपने में लगा देते है । इसिलए आसुरी माया के चक्कर में आये हए लोग सावधान हो जाए तो ठीक है अन्यथा उनके  लिए मोक्ष पाना तो असंभव हो जाएगा और उनको नरकों की यात्रा से बचाने वाला भी कोई नहीं मिलेगा।

जैसे लौकिक जगत के सेक्स वकर्र और उनके pimp धन कमाने के लिए चरित्रवान पुरूषों को भ्रष्टाचारी बनाते है , उनके धन, यौवन, स्वास्थ्य एवं चरित्र को नष्ट कर देते है वैसे आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र pimp धन कमाने के लिए और खुद को पजुवाने के लिए ब्रह्मज्ञानी गुरू के शिष्यों , एकनिष्ठ गुरुभक्तों को व्यिभचारणी भक्ति सिखाकर उनका धन, उच्च आध्याित्मक संपत्ति , एकनिष्ठ गुरुभक्ति , स्वास्थ्य और मोक्ष क संभावना को नष्ट कर देते है जो करोड़ों जन्मों के बाद कभी कभी प्राप्त होती है । और जैसे एक बार जिसको सेक्स वकर्र का चस्का लग जाता है वह फिर से चरित्रवान बनना नहीं चाहता वैसे ही जिसको एक बार आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र का चसका लग गया वह भी फिर से एकनिष्ठ गुरुभक्त  बनना नहीं चाहता लौकिक जगत के सेक्स वकर्र तो स्त्रियां ही हो सकती है लेकिन आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र स्त्रियां और पुरूष दोनों हो सकते है। लौकिक जगत के सेक्स वकर्र का शिकार तो केवल परूष होते है पर आध्याित्मक जगत के सेक्स वकर्र के शिकार स्त्रियां और पुरुष दोनों होते हैं। इसका यह प्रमाण है कि भारती देवी पूज्यबापू को ना ही गरू मानते हैं और ना ही पिता। फिर भी उनकी दुकान बापू के नाम से ही चलती हैं । 95% श्रोता बापू के ही साधक है और सेवा में भी आश्रम के ही समर्पित भक्त हैं। जब वे बापू से अलग है तो बापू के शिष्यों क सेवा क्यों लेते हैं ? सवा सो करोड़ से ज्यादा लोग भारत में है उनको अपना शिष्य या अनुयायी क्यों नहीं बनाते? क्योंकि गुरु बनने का सामर्थ्य नहीं है, इसिलए पाखण्ड चलाकर पूजवाने की वासना तृप्त करनी है ।

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