053 ऋषि प्रसादः मई 1997

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

सत्संग सरिता


पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू जिसके जीवन में सत्त्वगुण नहीं है, दैवी लक्षण नहीं है वह सुख के पीछे भटक-भटककर जीवन खत्म कर देता है। सुख तो उसे जरा-सा मिला न मिला लेकिन दुःख, मुसीबत और चिंता उसके भाग्य में सदा ही बनी रहती है। अगर मनुष्य अपने जीवन में सब दुःखों की निवृत्ति और …

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परमानंद की प्राप्ति का साधन


  पूज्यपाद संत श्री आशाराम जी बापू आत्मकल्याण के इच्छुक व ईश्वरानुरागी साधकों को आत्मशान्ति, आत्मबल प्राप्त करने के लिए, चित्तशुद्धि के लिए ज्ञानमुद्रा बड़ी सहाय करती है। ब्रह्ममुहूर्त की अमृतवेला में शौच-स्नानादि से निवृत्त होकर गर्म आसन बिछाकर पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाओ। 10-15 प्राणायाम कर लो। यदि त्रिबन्ध के साथ प्राणायाम …

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जनकपुरी में लगी आग


पूज्यपाद संत श्री आशारामजी बापू महर्षि याज्ञवल्क्य के सत्संग-प्रवचन में जब राजा जनक पहुँचते तभी महर्षि प्रवचन का प्रारम्भ करते थे। प्रतिदिन ऐसा होने से सत्संग में आने वाले अन्य ऋषि-मुनि एवं तपस्वियों को मन में ऐसा होता था कि याज्ञवल्क्य जैसे महर्षि भी सत्तावानों की, धनवानों की खुशामद करते हैं। क्या हम साधु-महात्मा उनके …

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