प्रश्नः हमें यह ज्ञान तो है कि क्या करना चाहिए, क्या नहीं परंतु जब सम्मुख कोई प्रलोभन या आकर्षण आ जाता है तब ज्ञान के विपरीत आचरण होने लगता है । इसका क्या कारण है ?
उत्तरः जब तक ज्ञान और सुख एक साथ रहते हैं तब तक अनुचित आचरण नहीं होता । जब सुख ज्ञान से अलग हो जाता है और ज्ञान सुख के पीछे-पीछे चलने लगता है तब अनुचित आचरण होता है । इसको यों समझिये कि हम जानते तो हैं कि झूठ बोलना अनुचित है, पाप है, चोरी करना अनुचित है, पाप है परंतु झूठ बोलने से या चोरी करने से मुझे सुख मिलेगा’ यह कल्पना हो जाती है तो मन सुख के पक्ष में हो जाता है और ज्ञान का साथ छोड़ देता है । ज्ञान स्वामी है, सुख उसका सेवक है । जहाँ ज्ञान के अनुसार आचरण होगा वह सुख साथ-साथ चलेगा । परंतु जब सुख के पीछे-पीछे ज्ञान चलने लगता है तब ज्ञान अपने शुद्ध स्वरूप में नहीं रहता, विपरीत हो जाता है अर्थात् अज्ञान हो जाता है । यही कारण है कि हमारे मन में सुख का पक्षपात भर गया है और ज्ञान के अनुसार जीवन में रुचि नहीं रही है । इस रुचि को उत्पन्न करने के लिए थोड़ा कष्ट सहकर भी अपने ज्ञान के अनुसार जीवन जीना चाहिए । सुख क्षणिक होता है । ज्ञान के विपरीत होने पर तो वह दुःखदायी भी हो जाता है । अतः तपस्या, सहिष्णुता और निष्कामता के द्वारा अपने सुख को ज्ञान का अनुयायी बनाना चाहिए तब पाप के प्रलोभन और आकर्षण अपने अंतःकरण पर प्रभाव नहीं जमायेंगे ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2022, पृष्ठ संख्या 23 अंक 352
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