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बीरबल की बुद्धिमत्ता का कमाल – पूज्य बापू जी


‘सभा में कितने बहरे हैं ?’

अकबर ने बीरबल से पूछाः “राजदरबार में बहरे आदमी कितने हैं ?” बीरबल ने कहाः “अभी बताऊँ कि बाद में बताऊँ ?” “कैसे बताओगे ?” “मेरे पास एक युक्ति है ।” बीरबल ने बात-बात में एक मजाक किया और थोड़ी देर के बाद दूसरा किया । अकबर को कहाः “राजा साहब ! इस पूरी सभा में चार व्यक्ति बहरे हैं ।” अकबर बोलाः “कैसे जान लिया ?” “बहरा व्यक्ति दो बार हँसता है, एक तो सबके हँसने के साथ वह हँसेगा फिर दूसरे से पूछेगा कि ‘क्या बात बोली ?’ और पूछ के दोबारा हँसेगा ।”

‘राम जी की जगह मेरा नाम लिखो’

अकबर ने सभा बुलायी । सभा में अच्छे-अच्छ लोग आये थे – हिन्दू भी थे, मुसलमान भी थे । अकबर ने कहाः “मेरे राज्य में कोई कमी तो नहीं है ?” अब कौन बोले कि कही है ! मतदान का तो जमाना नहीं था कि लोग बोल दें- ‘भाई ! यह कमी है, वह कमी है… इनको दूर करो, नहीं तो हम तुम्हें अपना मत (वोट) नहीं देंगे ।’ बोलेः “जहाँपनाह ! आपके राज्य में क्या कमी हो सकती है !” “मेरे राज्य में सुख-सम्पदा है, आनंद है ?” “है ।” “मेरे राज्य में आप लोग दुःखी तो नहीं हैं ?” बोलेः “नहीं जहाँपनाह !” “तो मेरा राज्य रामराज्य जैसा है कि नहीं ?” चाटुकार लोग और क्या करते, बोलेः “हाँ हुजूर ! आपका राज्य रामराज्य जैसा है ।” अकबरः “रामराज्य जैसी ही सुख-सुविधा और मौज है न ?” बोलेः “है ।” “तो फिर हिन्दू लोग सुन लो, सारे हिन्दू जो भी मेरे राज्य में रहते हैं वे चिट्ठी लिखने के पहले, बहीखाता लिखने के पहले लिखते हैं ‘श्रीराम’ तो अब श्रीराम की जगह पर ‘श्रीअकबर’ लिखा करो !” हिन्दुओं ने देखा कि ‘यह तो इसने मुसीबत कर दी ! अब क्या बोलें ! नहीं लिखेंगे तो तंग करेगा और लिखें तो राम जी की बराबरी यह भोंदू कैसे करेगा ?’ चाटुकारी करते-करते जो अगुआ थे वे तो बुरी तरह फँस गये । जा के बीरबल के सामने हाथाजोड़ी की कि “बीरबल ! तुम्हीं बचाओ ।” बीरबल ने कहाः “कोई बात नहीं, तुम लोग घबराओ नहीं ।” बीरबल रोज ध्यान करते थे, सारस्वत्य मंत्र जपते थे, उनकी बुद्धिशक्ति खुली थी । बीरबल ने कहाः “जहाँपनाह ! श्रीराम की जगह पर आपका नाम लिखने को ये लोग तैयार हैं परंतु एक खटक है । आप इनकी वह खटक दूर कर दो तो पूरा समाज इनकी बात मानेगा, नहीं तो समाज के लोग अड़ गये हैं…. ।” अकबर बोलाः “किस बात पर अड़े हैं ?” “राम जी का नाम लिखकर समुद्र में पत्थर फेंकते थे तो वे तैरते थे । ‘श्रीराम’ लिख के पत्थर समुद्र में तारे गये, अब ‘श्रीअकबर’ लिख के 2-4 पत्थर अगर तैर जायेंगे तो फिर आपका नाम निखना चालू कर देंगे । आप चलिये और आपका कोई हनुमान लाइये जो ‘श्रीअकबर’ लिख दे और पत्थर तैरने लग जायें । पूरी पुलिया मत बनाइये, चार पत्थर भी तैरा के दिखा दोगे तो सारे-के-सारे हिन्दू आपकी बात मान लेंगे ।” अकबर बोलता हैः “चुप करो, इस बात को भूल जाओ, मेरी इज्जत खराब होगी । भले हिन्दू श्रीराम लिखें ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 18, 26 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

बंधन केवल मान्यता है


जीव बंधन से जकड़ा हुआ है । कर्म में बंधन है पाप-पुण्य का । भोग में बंधन है सुख-दुःख का । प्रेम में बंधन है संयोग-वियोग का । सृष्टि में चारों ओर भय, बंधन और परतंत्रता ही नज़र आते हैं । ऐसे में भय से, बंधन से, पराधीनता से मुक्ति कैसे हो, यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है । श्रुति पुरान बहु कहेउ उपाई । ‘वेदों और पुराणों में बहुत से उपाय बतलाये हैं’ (श्रीरामचरित. उ.कां. 116.3) परंतु कोई काम नहीं बन पाता । यदि कदाचित अपना आपा ही ब्रह्म निकल आवे तो सब समस्याएँ हल हो सकती है । ब्रह्मज्ञान का यही प्रयोजन है । अपने को ब्रह्म समझना बहुत आवश्यक है । जब तक आप अपने को शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि या अहंकार समझते रहोगे अर्थात् अपने को परिच्छिन्न (सीमित) समझते रहोगे तब तक इनके बंधनों से मुक्ति नहीं मिल सकती । आपकी समूची पराधीनता मिटाने के लिए ब्रह्मज्ञान है । जन्म-मरण अपने सत्स्वरूप के विपरीत है, अज्ञान अपने ज्ञानस्वरूप के विपरीत है और दुःखी होना अपनी आनंदस्वरूपता के विपरीत है । हम जो हैं (सच्चिदानंद अद्वय (एकमात्र)), अपने विपरीत जीवन व्यतीत कर रहे हैं । जैसे डाकू लोग करोड़पति सेठ को पकड़ के जंगल में किसी अँधेरी कोठरी में बंद कर दें, वैसी ही स्थिति मनुष्य की है । अतः आओ, अपने ब्रह्मस्वरूप को जानें और सम्पूर्ण बंधनों से, जन्म-मरण से, अज्ञान से, दुःख से, आवागमन से और परिच्छिन्नत्व से मुक्त हो जायें । यह जीवन का परम पुरुषार्थ है । सचमुच विचार करक देखें तो हमारे में कहीं बंधन की सिद्धि नहीं होती । इसलिए बंधन केवल मान्यता है । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 15 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

जीवन के विकास के दो पंख – पूज्य बापू जी


जीवन के विकास के दो पंख हैं – प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति । व्यक्ति की प्राणशक्ति जितनी मजबूत है और ज्ञान जितना ऊँचा है वह उतने ऊँचे-से-ऊँचे पद पर पहुँच जाता है । बच्चों को, बड़ों को प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति – इन दो शक्तियों की जरूरत है । ये दोनों बढ़ गयीं तो व्यक्ति सारी दुनिया को आश्चर्य में डाल सकता है । जिसके जीवन में प्राणशक्ति बढ़ाने की कला जानने वाले ज्ञानदाता सद्गुरु नहीं हैं वह बड़ा होते हुए भी बच्चा है और जिसके जीवन में प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति बढ़ाने वाले सद्गुरु हैं वह बच्चा भी कभी नहीं रहता कच्चा ! वह छोटे-से-छोटा बच्चा भी बड़ी बुलंदियों तक पहुँचाने काम कर सकता है । प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति का बल प्राणशक्ति शरीर, मन, बुद्धि को पुष्ट करती है । राममूर्ति ऐसे कमजोर विद्यार्थी थे कि विद्यालय जाते-जाते जमीन पकड़ के बैठ जाते थे । उनको किसी ने प्राणायाम करना सिखाया तो बड़े पहलवान हुए । कई ऐसी कथाएँ-घटनाएँ हैं । ओहो ! रावण में कम थी तपस्या ? यह-वह… गजब का था रावण का तप, वैभव ! फिर भी राम जी की प्राणशक्ति-ज्ञानशक्ति के आगे रावम को हार माननी पड़ी । आखिर रावण मरते समय कहता हैः “श्रीराम भगवान को मेरा प्रणाम है !” क्योंकि रामजी ज्ञानशक्ति के मूल में टिके थे । ज्ञानशक्ति में विश्रांति पाने वाले ब्रह्मर्षि वसिष्ठ जी के आगे आखिर में राजर्षि विश्वामित्र को हार माननी पड़ी । ज्ञानशक्ति और प्राणशक्ति गुरुकुल शिक्षा-पद्धति के बच्चे नहीं जानेंगे तो क्या टाई व पैंट पहनने वाले और अंग्रेजी पढ़ाई में पतित बुद्धि वाले जानेंगे ? वे थोड़े ही जान सकते हैं । सूती कपड़े स्वास्थ्य के लिए उत्तम हैं । सिंथेटिक कपड़े प्राणशक्ति को उन्नत नहीं करते और टाई गर्दन को दबा के रखती है तो रक्त संचारण कम होता है, जिससे कईयों को बीमारी भी हो जाती है । बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजों के जमाने में भी धोती कुर्ता पहन के महाविद्यालय जाते थे । उस समय अन्य विद्यार्थी टाई, शर्ट-पैंट पहनकर जाते थे । बाल गंगाधर तिलक अपने संकल्प पर दृढ़ रहे तो धीरे-धीरे 1-2-5-15… कई विद्यार्थी उनका अऩुकरण कर भारतीय वेशभूषा पहनने लगे । बालगंगाधर में प्राणशक्ति थी, ज्ञानशक्ति थी ! ऐसा नहीं कि दूसरे हूँसी उड़ायें तो ये अपना सिद्धांत छोड़ दें !… नहीं । मैं छुईमुई का पौधा नहीं, जो छूने से मुऱझा जाऊँ । मैं वो गुरु का चेला नहीं, जो हौवा से डर जाऊँ ।। मैं तो जंगलों में ऐसी ही जगह जाता जहाँ जंगली प्राणी मिलें । एक बार मैं ऋषिकेश आश्रम के पास शाम को जंगल में घूमने गया तो एक बड़ा लम्बा-चौड़ा चीता मेरे सामने से पसार हुआ पर मेरे को उसने कुछ नहीं किया । मेरे और उसके बीच 10-15 फुट का अंतर था बस । मैंने उसको बाद में देखा जब वह गुजर गया । मैं तो नीचे देख के चल रहा था, उसने तो ऊपर पहाड़ी से मुझे देख लिया होगा । भूखा चीता था, उसके पेट की ऐसी दशा थी कि मेरे जैसे को नाश्ते में ले लेवे परंतु उसने कुछ नहीं किया । प्राणशक्ति-ज्ञानशक्ति मजबूत है तो हिंसक प्राणी भी आपकी आध्यात्मिक आभा से उस समय अहिंसक स्वभाव के हो जाते हैं । एक बार स्वामी रामतीर्थ हिमालय के जंगलों में घूम रहे थे । अचानक 5 भालू दौड़ते हुए आ गये उन पर हावी होने के लिए । रामतीर्थः “ऐ ! वापस जाओ !” उनकी ओर देखा । डरावनी आवाज करके भालू डरा रहे थे परंतु रामतीर्थ की प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति के प्रभाव से आखिर वे पाँचों भालू भाग खड़े हुए, स्वामी रामतीर्थ ज्यों-के-त्यों ! राजस्थान में एक माउंट आबू है । मैं वहाँ साधना करने के रहा था । वहाँ भी रीछ थे, उन्होंने कइयों को झपेटा था । एक रात को रीछ की आवाज आ रही थी । देखा कि हमारी गुफा की फलानी ओर से वह आ रहा है । मैं गुफा से नीचे उतरा । चाँदनी में वह बायें से आ रहा था और मेरा पगडंडी वाला रास्ता दायें से था । वह काला, भूत जैसा था और मेरे सफेद कपड़े थे । उसने मुझे ठीक से देखा और मैंने भी उसको ठीक से देखा पर वह आगे आया ही नहीं । सर्प विषैले प्यार से वश में बाबा तेरे आगे ।… मैंने साँप को उठाया था तुमने वह तस्वीर देखी होगी । मेरे से ज्यादा लम्बा जंगल का साँप था । मैं जगन्नाथपुरी के जंगल में घूमने जाता था । वहाँ एक साँप बड़े प्यार से मेरी और देख रहा था । मैंने उसको उठाया । साँप हाथ का स्पर्श भी हो तो भाँप जाता है, जान जाता है पर उसने कुछ नहीं किया । आप ज्ञानशक्ति-प्राणशक्ति में सराबोर हो निश्चिंत रहते हैं तो सर्प भी अपना विषैला स्वभाव भूल जाता है । प्राणशक्ति कैसे बढ़े ? प्राणशक्ति बढ़ानी हो तो मैं अच्छी तरह से जानता हूँ- इन्द्रियाणां मनो नाथो मनोनाथस्तु मारुतः । (हठयोग प्रदीपिकाः4.29) इन्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है । तो सुबह 3 से 5 बजे के बीच… कुल मिला के 5 बजे के पहले त्रिबंधयुक्त 3 प्राणायाम कर लें, बस… ! एक से सवा मिनट श्वास अंदर रोकें फिर धीरे-धीरे समय बढ़ाते जायें । मैं तो दो मिनट रोकता हूँ इस उम्र में भी । समझो सवा मिनट अंदर रोका तो एक मिनट बाहर रोकना है । फिर धीरे-धीरे 5-5 सेकेंड समय बढ़ाओ । प्राण (श्वास) रोकने से फेफड़ों के बंद छिद्र खुलते हैं और प्राणशक्ति बढ़ती है । ज्ञानशक्ति कैसे विकसित हो ? ज्ञानशक्ति की महिमा अपरम्पार है अपरम्पार ! एक विद्यार्थी सोचने लगा कि ‘ज्ञानशक्ति कहाँ होती है और कैसे विकसित होती है ?’ गुरुजी तो अंतर्यामी होते हैं, बोलेः “कई बच्चे बेचारे सोचते हैं कि ‘ज्ञानशक्ति कहाँ होती है, कैसे विकसित होती है ?’ अरे, यह आत्मा ही ज्ञानस्वरूप है, तुम ही ज्ञानस्वरूप हो बेटे-बेटियाँ ! लाले-लालियाँ ! तुम्हारा ज्ञान मन में आता है, बुद्धि में आता है, आँखों में आता है । तुम अपने मूल ज्ञान को पा लोगे तो जन्म-मरण से पार हो जाओगे । तुम्हारे 21 कुल तर जायेंगे !” अब आप लोग प्राणशक्ति बढ़ाने के लिए प्राणायाम करना चालू करो और ज्ञानशक्ति बढ़ाने के लिए ‘मैं कौन हूँ ?’ ऐसा सुबह-शाम खोजना शुरु करो । भगवान या गुरु को एकटक देखते हुए ॐकार का गुंजन, जप करने से प्राणशक्ति और ज्ञानशक्ति दोनों निखरती हैं । स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2022, पृष्ठ संख्या 6-8 अंक 359 ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ