2 प्रकार के भक्त – पूज्य बापू जी

2 प्रकार के भक्त – पूज्य बापू जी


2 प्रकार के भक्त होते हैं । एक होते हैं अहंनिष्ठ भक्त । वे सोचते हैं, ‘मैं पापी हूँ, क्या करूँ ? क्या मुँह दिखाऊँ ? कैसे प्रार्थना करूँ ? मैं ठीक हो जाऊँगा फिर भक्ति करूँगा, मेरी आदत ठीक हो जायेगी फिर मंत्रदीक्षा लूँगा….’ ऐसे अहंनिष्ठ व्यक्ति उलझ जाते हैं ।

दूसरे होते हैं भगवद्-परायण भक्त । वे भगवान को प्रार्थना करते हैं, ‘मैं पापी हूँ तो भी तुम्हारा हूँ, व्यसनी हूँ तो भी तुम्हारा हूँ, जैसा-तैसा हूँ तुम्हारा हूँ, तुम्हारी शरण आया हूँ । अब आप ही मेरे तारणहार हैं ।’ ऐसे भक्त जल्दी पार हो जाते हैं । अहंनिष्ठ को परिश्रम पड़ता है, भगवद्-परायण को ज्यादा परिश्रम नहीं पड़ता है । बंदरी के बच्चे को परिश्रम करना पड़ता है माँ को पकड़ने में लेकिन बिल्ली के बच्चे को तो माँ स्वयं उठा लेती है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, अक्तूबर 2020, पृष्ठ संख्या 7 अंक 334

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