Monthly Archives: May 2009

मौन का संदेश-महात्मा गाँधी


मैं दक्षिण अफ्रीका में एक मठ देखने गया था । वहाँ के अधिकांश निवासियों ने मौनव्रत ले रखा था । मैं मठ के मुख्य व्यवस्थापक से पूछा कि “इसका हेतु क्या है ?” उसने कहाः “हेतु तो प्रकट ही है – अगर हमें उस छोटी सी मूक आवाज को सुनना है, जो सदा हमारे भीतर बोलती रहती है तो वह हमें सुनायी नहीं देगी – यदि हम लगातार बोलते रहेंगे ।”

मैंने वह कीमती पाठ समझ लिया । मुझे मौन का रहस्य मालूम है । अल्पभाषी मनुष्य अपनी वाणी में क्वचित ही विचारहीन होता है, वह एक-एक शब्द को तौलेगा । कितने ही आदमी बोलने के लिए अधीर दिखायी देते हैं । अगर हम उद्विग्न प्राणी मौन का महत्त्व समझ लें तो दुनिया का  आधा दुःख खत्म हो जायेगा । हम पर आधुनिक सभ्यता का आक्रमण होने से पहले हमें 24 में से कम-से-कम 6 से 8 घंटे मौन के मिलते थे । आधुनिक सभ्यता ने हमे रात को दिन में और  मूल्यवान मौन को व्यर्थ के शोरगुल में बदलना सिखा दिया है । यह कितनी बड़ी बात होगी अगर हम अपने व्यस्त जीवन में रोज कम-से-कम दो घंटे अपने मन के एकांत में चले जायें और हमारे भीतर जो महान मौन की वाणी है उसे सुनने की तैयार करें । अगर हम सुनने को तैयार हों तो ईश्वरीय रेडियो तो हमेशा गाता ही रहता है परंतु मौन के बिना उसे सुनना संभव नहीं है ।

मेरे लिए यह (मौन) अब शारीरिक और आध्यात्मिक, दोनों प्रकार की आवश्यकता बन गया है । शुरु-शुरु में यह कार्य के दबाव से राहत पाने को लिया जाता था । इसके सिवा मुझे लिखने का समय चाहिए था । परंतु थोड़े दिन के अभ्यास के बाद मुझे इसका आध्यात्मिक मूल्य मालूम हो गया । मेरे मन में अचानक यह विचार दौड़ गया कि यही समय है जब मैं ईश्वर से अच्छी तरह लौ लगा सकता हूँ ।

मेरे जैसे सत्य के जिज्ञासु के लिए मौन बड़ा सहायक है । मौनवृत्ति में आत्मा को उसका मार्ग अधिक स्पष्ट दिखायी देता है और जो कुछ पकड़ में नहीं आता या जिसके समझने में भ्रम की संभावना होती है, वह स्फटिक की तरह स्पष्ट दिखायी देने लगता है । हमारा जीवन सत्य की एक खोज है और आत्मा को अपनी पूरी ऊँचाई तक पहुँचने के लिए भीतरी विश्राम और शांति की जरूरत होती है ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2009, पृष्ठ संख्या 16 अंक 197

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ