Monthly Archives: December 2009

क्या नरेन्द्र मोदी ‘सेक्यूलर’ बनना चाहते हैं? – पी.दैवमुत्तु


सम्पादक, राष्ट्रीय पत्रिका हिन्दू वॉइस

दिनांक 27 नवंबर 2009 को बहुत से टी.वी. चैनलों पर प्रसारित हुए समाचारों को देखकर मैं हैरान हो गया। गुजरात पुलिस आसाराम बापू के आश्रम में घुसकर वहाँ के लोगों को निर्दयतापूर्वक मार रही थी। बापू जी के साबरमती आश्रम में रहने वाले साधकों को ऐसे मार रही थी जैसे वे कोई कुख्यात अपराधी हों।

समाचार संवाददाताओं का कहना है कि पुलिस ने आसाराम बापू के आश्रम में घुसकर लगभग 150 साधकों को गाँधीनगर में हुई घटना के अपराध में गिरफ्तार कर लिया। गाँधीनगर डी.एस.पी. पीयूष पटेल ने पी.टी.आई. को बताया कि “हमने आश्रम से लगभग 150 लोगों को सर्च ऑपरेशन के समय गिरफ्तार किया है।” उन्होंने यह भी कहा कि आश्रम में संदेहास्पद वस्तु या कोई भी हथियार नहीं मिला।

अपने व्यवसाय के संबंध में आश्रम के बहुत से साधकों से मैं मिल चुका हूँ। उनसे बातचीत और व्यवहार के फलस्वरूप मैं ऐसा कह सकता हूँ कि किसी आदमी को मारना तो दूर वे एक मक्खी भी नहीं मार सकते। ऐसे साधुओं को घोर अपराधियों की तरह मारना-पीटना यह गुजरात पुलिस का कार्य निंदनीय है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा निन्दनीय कार्य उस प्रदेश में हुआ जहाँ हिन्दुत्व के पक्षधर श्री नरेन्द्र मोदी का शासन है और जिन पर हमें गर्व था। कुछ समय पहले उनकी सरकार द्वारा अहमदाबाद और सूरत के बहुत से मंदिरों को ढहा दिया गया। ऐसा हिन्दुविरोधी कार्य करके श्री मोदी क्या प्रमाणित करना चाहते हैं ? वे सभी काँग्रेसियों, कम्युनिस्टों, सपा व बसपा की तरह अपने को सेक्यूलर साबित करना चाहते हैं ? यदि श्री मोदी ऐसा सोच रहे हैं तो वे अपनी कब्र खोद रहे हैं, अपने कट्टर हिन्दु समर्थक मतदाताओं को अपने से दूर कर रहे हैं।

पुलिस के द्वारा किसी मस्जिद में घुसकर किसी अपराधी को पकड़ने और मारने की घटना मैंने न तो सुनी है, न तो देखी है। किसी मस्जिद या चर्च में घुसकर लाठीचार्ज करने की बात तो दूर है, केरल स्थित मराड़ में सन् 2003 में शुक्रवार की नमाज अदा कर मस्जिद से लौट रहे मुसलमानों ने जब बहुत से हिन्दु मछुआरों की निर्मम हत्या कर दी तो भी पुलिस ने हत्यारों के साथ इस तरह  वर्तन नहीं किया था, न तो वे मस्जिद में घुसे थे। मैंने यह भी नहीं सुना है कि गुजरात पुलिस ने किसी मस्जिद पर छापा मारकर वहाँ छिपे राष्ट्रद्रोही लोगों को कभी पकड़ा हो।

मैं आसाराम बापू का अनुयायी नहीं हूँ। मैं किसी संत की वकालत नहीं करता। परंतु एक कट्टर हिन्दू होने के नाते मैं गुजरात पुलिस की इस सशस्त्र हिन्दूविरोधी कार्यवाही का विरोध करता हूँ। यदि कोई गैरकानूनी कार्य करता है तो कानून उस पर कार्यवाही कर उसे दंडित कर सकता है, परंतु किसी आश्रम में घुसकर साधकों को निर्दयतापूर्वक पीटना एक जंगली और अप्रजातांत्रिक कृत्य है। क्या गुजरात पुलिस के पास मस्जिद या चर्च में घुसकर इस तरह से बर्बतापूर्वक किसी को मारने की हिम्मत है ?

मेरे साथ अन्य हिन्दू भी श्री मोदी को हिन्दुत्व का रक्षक समझते हैं। क्या वे इस घटना के बारे में स्पष्टीकरण देंगे ? वे यह भी बताये कि वे मस्जिद या चर्च में छिपे राष्ट्रद्रोहियों के प्रति भी इसी तरह की कार्यवाही करेंगे ?

सभी हिन्दू साधु संतों के लिए यह एक चेतावनी है। यदि वे संगठित नहीं होते हैं तो वे भी इस प्रकार की पुलिस बर्बरता के शिकार होंगे।

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कथा प्रसंग – मोहे संत सदा अति प्यारे


(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)

कांचीके मंदिर में एक पुजारी पूजा करता था। पुजारी का काम था भगवान की पूजा-आरती करे, भोग लगाये और भगवान को भोग लगाया हुआ प्रसाद राजा साहब के पास पहुँचाए।

एक बार राजा किसी बात कसे पुजारी पर नाराज हो गया। राजा ने आदेश दे दिया की ‘पुजारी इस मंदिर में पूजा नहीं करेगा और मेरे राज्य में भी नहीं रहेगा।’ अब राजा का आदेश है तो पुजारी बेचारा क्या कर सकता था। तीन दिन के अन्दर राज्य से निकलना था। उसने अपना सामान आदि समेट लिया।

पुजारी एक महात्मा के पास आता-जाता था, उनकी सेवा करता था। वह महात्मा के पास जाकर बोलाः ‘महाराज ! मुझे तो राज्य छोड़ जाने का आदेश मिला है। अब मैं जा रहा हूँ, आपसे आशीर्वाद लेने आया हूँ।”

महात्मा ने कहाः “तू रोज भोजन बनाकर दे जाता था, ठाकुर जी का प्रसाद लाता था। तेरे जैसा भक्त जाता है तो फिर हम यहाँ बैठकर क्या करेंगे ? चलो, जहाँ तुम वहाँ हम।”

महात्मा ने भी अपना झोली-झंडा समेटा। बाबा लोगों का क्या है, जहाँ जायेंगे वहाँ खायेंगे ! जय-जय सियाराम ! महात्मा जी मंदिर में गये और भगवान नारायण से बोलेः “हे शेषशायी ! आप भले ही यहाँ आराम करो, हम तो अब जाते हैं। पुजारी सेवक जा रहा है तो हम इधर बैठकर क्या करेंगे !”

भगवान ने उनको कहा कि “जब आप जैसे संत चले जायेंगे तो हम इधर नगर में क्या करेंगे ! मुझे भी इन राजाओं का राजवी भोग नहीं चाहिए। संत होते हैं तो मुझे अच्छा लगता है। चलो, हम भी चलते हैं आपके साथ।”

आगे पुजारी, उसके पीछे महात्मा और उनके पीछे भगवान शेषशायी नारायण साधारण आदमी का रूप बनाकर चल दिये। चल दिये तो नगर में उथल-पुथल होने लगी, राजा को भयंकर सपने आने लगे, नगर में अपशकुन होने लगे। राजा भागता दौड़ता दूसरे महात्माओं के पास पहुँचा और उनसे उत्पातों का कारण पूछा तो पता चला कि पुजारी गये तो महात्मा गये और महात्मा और महात्मा गये तो भगवान शेषशायी भी चले गये। अब तो मंदिर में केवल मूर्ति है, मूर्ति का देवत्व तो भगवान समेटकर ले गये। जैसे बिजली, पंखे सब होते हैं और फ्यूज उड़ गया तो हाय-हाय ! करते रहो। ए.सी. है, पावर हाउस भी है तो क्या हुआ, फ्यूज उड़ गया तो कुछ नहीं ! ऐसे ही भगवान ने फ्यूज निकाल लिया तो राज्य में हाहाकार मचने लगा।

राजा मंदिर में गया और भगवान शेषशायी के आगे प्रार्थना की। आकाशवाणी हुईः “राजन् ! जब महात्मा जा रहे हैं तो हम क्यों रहेंगे ?”

राजा ने महात्मा जी के पास जाकर कहाः “महाराज ! आप रुक जाइये।”

महात्मा बोलेः “तुमने इन सज्जन-स्वभाव पुजारी को तो निकाल दिया, अब ये नहीं रहेंगे तो हम क्यों रहें ! पहले इनसे माफी माँगो, इन्हें मनाओ। ये रहेंगे तो हम रहेंगे।”

भगवान बोलेः “महात्मा रहेंगे तो हम भी रहेंगे।”

उधो ! मोहे संत सदा अति प्यारे।

ऐसा नहीं कि संत भगवान की भक्ति करते हैं, खुशामद करते हैं, नहीं। संत और भक्त भगवान को प्यार करते हैं तो भगवान भी उन्हें प्यार करते हैं। प्यारे प्यारों को प्यारे ही होते हैं। राजा ने खूब अनुनय-विनय करके पुजारी को और महात्मा को मना लिया तो भगवान ने कहाः “चलो भाई ! अब हम भी आयेंगे लेकिन इस बात की लोगों को स्मृति कैसे रहेगी ?”

शेषनाग जी ने कहाः “महाराज ! हम आपके ऊपर छाया करते थे, अब आप जाकर फिर उलटे लौटे हैं तो हम भी उलटे ही रहेंगे।”

आप आज भी कांची के मंदिर में जाकर देख सकते हो, शेषशायी भगवान नारायण के ऊपर छाया करने वाले शेषनाग का फन उलटा है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2009, पृष्ठ संख्या 9,15, अंक 204

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गुरु सन्देश – परमात्मा उसी का है…..


(पूज्य बापू जी के सत्संग प्रवचन से)

मनुष्य को वस्तुओं की कद्र करना सीखना ही चाहिए। काम में आने वाली वस्तुएँ इधर-उधर पड़ी रहें, यह ठीक नहीं है। किसी घर में वर्षों से एक पुराना साज पड़ा था। उसने घर के कोने में जगह रोक रखी है, ऐसा सोचकर दिवाली के दिनों में घरवालों ने उसे निकालकर जहाँ कूड़ा फैंका जाता था वहाँ डाल दिया। कोई संगीतज्ञ फकीर वहाँ से गुजरा तो उसने देखा कि पुराना साज कूड़े में पड़ा है। उसने साज उठाया, साफ किया और उस पर उँगलियाँ घुमायीं तो साज से मधुर स्वर निकलने लगा। लोग आकर्षित हुए, भीड़ हो गयी। यह वही साज था जो वर्षों तक घर में पड़ा था। घरवाले भी मुग्ध होकर बाहर निकले और बोलेः “यह साज तो हमारा है।”

तब उस संगीतज्ञ ने कहाः “यदि यह तुम्हारा होता तो घर में ही रखते। तुमने तो इसे कूड़े में फैंक दिया, अतः अब यह तुम्हारा नहीं है।”

साज उसी का है जो बजाना जानता है।

गीत उसी का है जो गाना जानता है।

आश्रम उसी का है जो रहना जानता है।

परमात्मा उसी का है जो पाना जानता है।।

मनुष्य-जीवन बहुत अनमोल है, हमें इसकी कीमत का पता नहीं है। जो आया सो खा लिया…. जो आया सो पी लिया…. जिस-किसी के साथ उठे-बैठे… स्पर्श किया… इन सबसे जप-ध्यान में तो अरुचि होती ही है, साथ ही विषय विकारों में, मेरे-तेरे में, निंदा-स्तुति में व्यर्थ ही अपना समय खो देते हैं। फिर हम न तो अपने किसी काम में आ पाते हैं और न ही समाज के। मनुष्य अगर अपने तन-मनरूपी साज को बजाना सीख जाय तो मृत्यु के पहले आत्मानंद के गीत गूँजेंगे।

यदि आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर होना है तो साधक को विशेष सावधानी रखने की जरूरत है। जिसे आध्यात्मिक लाभ की कद्र नहीं, जिसके जीवन में दृढ़ व्रत नहीं है, दृढ़ता नहीं है और जो भगवान का महत्त्व नहीं जानता, उसको भगवान के धाम में भी रहने को मिल जाय फिर भी वहाँ से गिरता है बेचारा। जय-विजय भगवान के धाम में रहते थे किंतु भगवान के महत्त्व को नहीं जानते थे तो गिरे। जो अपने जीवन का महत्त्व जितना जानता है, उतना ही सत्संग का, महापुरुषों का महत्त्व जानेगा। जिसको मनुष्य-जन्म की कद्र नहीं है, वह अभागा महापुरुषों की, सत्संग की भी कद्र नहीं कर सकता। जिसको अपनी मनुष्यता की कद्र है, उसको संतों की भी कद्र होगी, सत्संग की भी कद्र होगी, वह अपनी वाणी को व्यर्थ नहीं जाने देगा, अपने समय को व्यर्थ नहीं जाने देगा, अपनी सेवा में निखार लायेगा, अपना कोई दुराग्रह नहीं रखेगा, गीता के ज्ञान में दृढ़व्रती होगा। भजन्ते मां दृढ़व्रताः। और वह समता बनाये रखेगा, अपने जीवनरूपी साज पर कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग से सोऽहम् स्वरूप के गीत गुँजाएगा। इस अमूल्य मानव-देह को पाकर भी इसकी कद्र न की तो फिर मनुष्य जन्म पाने का क्या अर्थ है ? फिर तो जीवन व्यर्थ ही गया। यह मनुष्य-जन्म फिर से मिलेगा कि नहीं, क्या पता ? अतः सदैव याद रखें कि यह मनुष्य-जन्म आत्मज्ञान, आत्मदर्शन, मुक्ति एवं अखंड आनंद की प्राप्ति के लिए ही मिला है। ब्रह्मानंद की मधुर वंशी बजाने के लिए मिला है इसे व्यर्थ न खोयें। जीवनरूपी साज टूट जाये, इसकी मधुर धुन निकालने की क्षमता समाप्त हो जाय उसके पहले इसे किसी समर्थ सदगुरु को सौंपकर निश्चिंत हो जाओ।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2009, अंक 204, पृष्ठ संख्या 21,23

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