महापुरुषों के चरणों में असंख्य लोग जाते हैं। उनको सुख-शांति मिलती है, ज्ञान मिलता है, प्रेरणा मिलती है, आरोग्यता मिलती है…. न जाने कितना कुछ मिलता है रुषों के चरणों में असंख्य लोग जाते हैं। उनको सुख-शांति मिलती है, ज्ञान मिलता है, प्रेरणा मिलती है, आरोग्यता मिलती है…. न जाने कितना कुछ मिलता है। बदले में लोग कुछ दें तो महापुरुष फिर वे चीजें भी समाज की उन्नति के लिए लगा देते हैं। ऐसे संतों के लिए भी कुछ का कुछ कुप्रचार करने वाले और षडयंत्र रचने वाले लोग अनादिकाल से चले आ रहे हैं।
गुरुनानक देव जी ने क्या लिया? रूखी सूखी रोटी ली, कभी कणा प्रसाद खाया होगा। यात्रा के लिए कभी पैदल तो कभी रथ में बैठे होंगे। इतनी सारी मुसीबतें सही जिन महापुरुष ने, उनको भी नालायक लोगों ने बाबर की जेल में धकेल दिया, दुनिया जानती है। ऐसे ही सुकरात को दुष्ट लोगों ने ऐसे चक्कर में ला दिया कि उनको सरकारी तौर से मृत्युदण्ड घोषित हो गया। हम मंसूर को खूब-खूब स्नेह करते हैं, प्रणाम भी करते हैं ऐसे महापुरुष को ! मजहबवादियों ने राजा को उकसाया और आखिर मंसूर के सिर पर फटकार दी गयी शूली की सजा। क्या नानकजी को कमी थी कि इधर से उधर दौड़ धूप करते थे ? नहीं। भवसागर से पार कराने वाली नाव में आप जैसों को बैठाने के लिए वे महापुरुष तकलीफें सहते थे।
श्री रामकृष्ण परमहंस कहो, स्वामी विवेकानंद कहो, स्वामी रामतीर्थ कहो, भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी कहो, ये जो भी विमल विवेक के पाये हुए महापुरुष हैं, वे कुछ न कुछ खूँटा लगा के रखते हैं ताकि वे लोगों के बीच उठने बैठने के काबिल रहें। नहीं तो बैठे, बंद हो गयी आँखें, समाधि हो गयी।
ब्राह्मी स्थिति प्राप्त कर, कार्य रहे न शेष।
मोह कभी न ठग सके, इच्छा नहीं लवलेश।।
फिर भी इच्छा रखते हैं कि ‘अच्छा भाई ! शांत रहो, शोर मत करो, ऐसे करो…..’ यह क्यों करते कराते हैं ? उनको क्या लेना देना है ! लेकिन व्यवहार में आपके जैसा ही व्यवहार करेंगे। यह एक खूँटी लगा दी।
ऐसे महापुरुष जब हयात होते हैं, तब उनके साथ बड़ा अन्याय होता है। फिर भी वे महापुरुष सब सह लेते हैं। पाँच पचीस मूर्खों के कारण करोड़ों लोगों से यह नाव छीन लूँ क्या मैं ? नहीं, नहीं। कितना सहा होगा उन महापुरुषों ने ! फिर भी तुम्हारे बीच टिके रहे, डटे रहे। तुम क्या दे सकते हो उनको ? तुम्हारे पास देने को है भी क्या ? आत्मधन से तो तुम कंगले हो और नश्वर धन को तो वे लात मारकर महापुरुष हुए हैं।
कबीर जी ने क्या बिगाड़ा था ? काशीनरेश मत्था टेकते हैं और बाद में वे ही काशी नरेश कबीर जी को मुजरिम बनाकर अपने न्यायालय में खड़ा कर देते हैं। हालाँकि उन महापुरुषों का कोई दुश्मन नहीं होता लेकिन अभी भी देखते हैं कि समाज का कहीं शोषण होता है या लोग देश को खंड खंड करने का षडयंत्र कर रहे हैं तो हम लोगों को भी सच्चाई बोलनी पड़ती है और फिर उनकी नजर में हम लोग दुश्मन जैसे लगते हैं। वे लोग भी हमारा कुप्रचार खूब करते हैं। जिनके धंधे खराब होंगे या जिनकी दुष्ट मुरादें नाकामयाब होंगी, वे दुष्ट लोग कुछ-न-कुछ तो हमारे लिए भी बकेंगे, करेंगे। सीधी बात है ! वह सब सहन करके भी तुमको जगाने के पीछे लगे हैं, उनका दिल कितना तुम्हारे लिए उदार है !
कबीर जी की निंदा होने लगी, अफवाहें होने लगीं। क्या के क्या आरोप लगने लगे ! आखिर कुछ लोग बिखर गये। कुछ लोग श्रद्धालु थे, बोलेः “संतों के खिलाफ तो ये नालायक लोग षडयंत्र करते रहते हैं।” भगवान राम के गुरु थे वसिष्ठजी महाराज, उन पर भी लोग आरोप करते थे। हमारे लिए भी कुछ लोग बोलते हैं- ‘बापू ने फलाने को यह कर दिया…..।’ ऐसा-ऐसा बकते हैं, ऐसे-ऐसे पर्चे छपवाते हैं, बाँटते हैं ! नारायण (पूज्य बापू जी के सुपुत्र) के लिए कुछ-का-कुछ छपवाते हैं, बाँटते हैं। कैसे-कैसे षडयन्त्र ! कैसी-कैसी अफवाहें ! क्या-क्या बातें बनाते हैं ! यह अभी से नहीं, पिछले 30 सालों से चल रहा है।
ऐसे लोग मेरे गुरु जी के पास जातेः “बापू ने हमारे को यह कर दिया, वह कर दिया…..।” गुरु जी बोलेः “खबरदार ! इसकी शादी हुई, सुंदर पत्नी और परिवार को छोड़ के मेरे पास रहा है। इस लड़के को मैं जानता हूँ।”
मोटेरा आश्रम जो साबरमती तट पर बना है, उसके चारों तरफ खाइयाँ थीं। आधा-एक-बीघा समतल जमीन थी बस, बाकी अपन लोगों ने भरकर समतल की। चारों तरफ दारू की 40-40 भट्ठियाँ चलती थीं। पुलिस आ जाय तो पुलिस की पिटाई करके उनको वापस भेज देते। ऐसी जगह पर जब आश्रम बनाया होगा तो कितने विघ्न आये होंगे, जरा सोचो ! अभी तीर्थधाम बन गया है। दारू की 40 भट्ठियाँ बन्द हुईं तो उनके मालिक और भट्टी चलाने वाले हो जो लोग होंगे, उनको कैसा लगा होगा ? लेकिन अब वे सन्मार्ग में लगे और उनकी आजीविका अच्छी चल गयी तो अभी वे खुश हैं। यहाँ मत्था टेकते हैं बेचारे। लेकिन पहले तो उन्होंने भी खूब सुनायी। उस समय अफवाह और कुप्रचार करने वालों की एक चैनल बनी थी (गुट बना था)। कुछ अखबार तो पैसे लेकर ऐसा-ऐसा लिखते कि महाराज ! आप पढ़ो तो आपको लगे कि ये बाबा नहीं हैं…..।
हम कोई ऐसे ही बापू जी होकर पूजे जा रहे हैं क्या ? तुम्हारी उन्नति के लिए हम सब कुछ सह रहे हैं और इससे 10 गुना सहने की हमारी तैयारी है। हम किसी का बुरा नहीं सोचते हैं, न करते हैं लेकिन हमारी बुराई के लिए कोई करता है तो हम यही कहते हैं-
जिसने दिया दर्दे दिल उसका प्रभु भला करे।….
हम सचमुच में भाग्यशाली है ! ऐसे ब्रह्मज्ञानी संत भारत में ही मिल पाते हैं। भगवान के अवतार भारत में होते हैं और यहीं का प्रसाद देश-विदेश में प्रसारित होता है। कुंडलिनी शक्ति जागृत करने का सामर्थ्य भी भारत के संतों ने विदेश में फैलाया और विदेश के लोग वह सीखकर अपना व्यापार-भाव से प्रचार कर रहे हैं। सारा विश्व मंगलमय हो ! हमारा किसी जाति, सम्प्रदाय, पंथ से कोई विरोध नहीं है परंतु जिस संस्कृति में हम जन्में हैं उसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है। अतः हम उदार बन जायें, ठीक है लेकिन हम मूर्ख न बनें कि हमारी संस्कृति की जड़ें कटती जायें, हम आपस में ही लड़ते रहें।
हिन्दू ही हिन्दू संतों की अवहेलना कर लेते हैं, मुकद्दमेबाजी करवाते हैं। दूसरे मजहबवाले तो अपने फकीरों के लिए ऐसा नहीं सोचते, करते। ‘अपने ही लोगों के पैर काटो।’ कितने शर्म की बात है ! कितनी नासमझी की बात है ! परमात्मा का साक्षात्कार इसी जन्म में कर सकते हैं, इतनी ऊँचाइयाँ हमारी वैदिक संस्कृति में, हमारे महापुरुषों के पास अभी भी हैं और ऐसे वे महापुरुष धरती पर अभी भी मिल रहे हैं कि जो पराकाष्ठा तक पहुँचाने में सक्षम हैं। अतः इस संस्कृति की सुरक्षा करना, इस संस्कृति में आपस में संगठित रहना, यह मानव-जाति की, विश्वमानव की सेवा है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2014, पृष्ठ संख्या 4,5 अंक 264
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