सूर्योपासना

सूर्योपासना


 

इस आदित्य देव की उपासना करते समय सूर्य गायित्री का जप करके अगर जल चढाते हो, और चढा हुआ जल जिस धरती पर गिरा, वहां की मिट्टी लेकर तिलक लगाते हो, और ताम्बे के लोटे में बचा हुआ जल, शेष घूँट भर बचा कर रखा हुआ जल, महा मृत्युंजय का जप करते ही पीते हैं तो आरोग्य की भी खूब रक्षा होती है;

आचमन लेते समय उच्चारण करना होता है –

अकाल-मृत्यु-हरणं सर्व-व्याधि-विनाशनम

सूर्य-पादोदकं-तीर्थं जठरे धारयामि अहम्

यह श्लोक का अर्थ यह समझ लो की अकाल मृत्यु को हरने वाले सूर्य नारायण के चरणों का जल, मैं अपनी जठर में धारण करता हूँ…जठर, भीतर के रोगों को, और, सूर्य की कृपा बाहर के शत्रु-विघ्न आदि, अकाल मृत्यु आदि रोगों को हरे;

सूर्य को अर्घ्य देते समय,

“ॐ आदित्याय विद्महे भास्कराय धीमहि तन्नो भानु प्रचोदयात”

 

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