100 ऋषि प्रसादः अप्रैल 2001

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

ठीक अभ्यास करें


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से अभ्यासयोगेनयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना। परमं पुरुषं दिव्यं याति  पार्थानुचिन्तयन्।। ‘हे पार्थ ! परमेश्वर के ध्यान के अभ्यासरूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाशरूप दिव्य पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ही प्राप्त होता है।’ (गीताः 8.8) अभ्यास तो सब …

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समय बड़ा बलवान….


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग-प्रवचन से श्रीकृष्ण के स्वधामगमन के बाद अर्जुन उनकी आज्ञा के अनुसार द्वारिका से यदुवंश की स्त्रियों, वृद्धों एवं बच्चों को लेकर इन्द्रप्रस्थ की ओर चल पड़े। चलते-चलते बुद्धिमान एवं सामर्थ्यशाली अर्जुन ने अत्यंत समृद्धशाली पंचनद देश (पंजाब) में पहुँचकर पड़ाव डाला। एकमात्र अर्जुन के संरक्षण में ले जायी …

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जन्म कर्म चे मे दिव्यम्….


संत श्री आसाराम जी बापू के सत्संग प्रवचन से गीता में भगवान कहते हैं- जन्म कर्म चे मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। व्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोsर्जुन।। ‘हे अर्जुन ! मेरे जन्म और कर्म दिव्य अर्थात् निर्मल और अलौकिक हैं – इस प्रकार जो मनुष्य तत्त्व से मुझे जान लेता है, वह शरीर को …

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