ठीक अभ्यास करें
संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से अभ्यासयोगेनयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना। परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।। ‘हे पार्थ ! परमेश्वर के ध्यान के अभ्यासरूप योग से युक्त, दूसरी ओर न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ मनुष्य परम प्रकाशरूप दिव्य पुरुष को अर्थात् परमेश्वर को ही प्राप्त होता है।’ (गीताः 8.8) अभ्यास तो सब …