213 ऋषि प्रसादः सितम्बर 2010

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

भगवान से अपनत्व – स्वामी रामसुखदासजी महाराज


हमने संतों से यह बात सुनी है कि जो भगवान को मान लेता है, उसको अपना स्वरूप जना देने की जिम्मेदारी भगवान पर आ जाती है। कितनी विलक्षण बात है ! ‘भगवान कैसे हैं, कैसे नहीं है’ – इसका ज्ञान उसको खुद को नहीं करना पड़ता। वह तो केवल मान लेता है कि ‘भगवान हैं।’ …

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बड़ों के सम्मान का शुभ फल


कुरुक्षेत्र के मैदान में कौरव पाण्डव दोनों दल युद्ध के लिए एकत्र हो गये थे। सेनाओं ने व्यूह बना लिये थे। वीरों के धनुष चढ़ चुके थे। युद्ध प्रारम्भ होने में कुछ क्षणों की ही देर जान पड़ती थी। सहसा धर्मराज युधिष्ठिर ने अपना कवच उतारकर रथ में रख दिया। अस्त्र-शस्त्र भी रख दिये और …

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अत्याचारी की कीमत !


जिसके जीवन में धर्म नहीं है, परदुःखकातरता नहीं है, संतों-महापुरुषों का, माता-पिता का, सदगुरु का आदर-सत्कार करने का, उनकी आज्ञा में चलकर मानव-जन्म सफल बनाने का सदगुण नहीं है, सत्संग नहीं है, सत्शास्त्रों का पठन-मनन नहीं है तो उसके जीवन की कोई कीमत नहीं। अमूल्य मानव-जन्म पाकर यदि अपने जन्म-जन्मान्तरों के बंधन काटने वाला सत्संग …

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