230 ऋषि प्रसादः फरवरी 2012

सांसारिक, आध्यात्मिक उन्नति, उत्तम स्वास्थ्य, साँस्कृतिक शिक्षा, मोक्ष के सोपान – ऋषि प्रसाद। हरि ओम्।

अत्याचार की पराकाष्ठा से उन्नति की पराकाष्ठा तक


(पूज्य बापू जी की पावन अमृतवाणी) विपत्तियों के पहाड़, दुःखों के समुद्र हमें दुःखी बनाने में समर्थ नहीं है, क्योंकि सर्वसमर्थ हमारा आत्मा परम हितैषी है। केवल हम उसे अपना मानें, समर्थ मानें, प्रीतिपूर्वक सुमिरें। सुषुप्ति की जड़ता में भी वह हमारा साथ नहीं छोड़ता, अचेतन अवस्था में भी हमारा साथ नहीं छोड़ता। मृत्यु भी …

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आत्मसुख में बाधक व साधक बातें


(पूज्य बापू जी की प्रेरणादायी वाणी) आत्मसुख में पाँच चीजें बाधक और पाँच चीजें साधक हैं। आत्मसुख में बाधक हैः बहुत प्रकार के ग्रंथों को पढ़ना, बहुत दृश्यों को देखना, पिक्चरें देखना। बहिर्मुख लोगों की बातों में आना और उनकी लिखी हुई पुस्तकें पढ़ना, बहुत सारे समाचार सुनना, अखबार-उपन्यास पढ़ना। बुद्धि को बहुत चीजों से …

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अनेक रोगों का मूल कारणः विरूद्ध आहार


जो पदार्थ रस-रक्तादि धातुओं के विरूद्ध गुण-धर्म वाले व वात-पित-कफ इन त्रिदोषों को प्रकुपित करने वाले हैं, उनके सेवन से रोगों की उत्पत्ति होती है। इन पदार्थों में कुछ परस्पर गुणविरुद्ध, कुछ संयोगविरूद्ध, कुछ संस्कारविरूद्ध और कुछ देश, काल, मात्रा स्वभाव आदि से विरूद्ध होते हैं। जैसे – दूध के साथ मूँग, उड़द, चना आदि …

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