पूर्णरूप से भयरहित क्या और क्यों ?
भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं वित्ते नृपालाद्भयं मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया भयम्। शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद्भयं सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम्।। ‘भोगविलास में रोगादि उत्पन्न होने का, सत्कुल में वंश-परम्परा टूटने का, द्रव्य (धन-सम्पदा) में राजा का, मौन-धारण में दीनता का, पराक्रम में शत्रु का, सुंदरता में जरा (बुढ़ापा) का, शास्त्र …