हे मन ! तू परमात्मा में लग
एतस्माद्विरमेन्द्रियार्थगहनादायासकादाश्रय श्रेयोमार्गमशेषदुःखशमनव्यापारदक्षं क्षणात्। स्वात्मीभावमुपैहि सन्त्यज निजां कल्लोललोलां गतिं मा भूयो भज भङ्गुरां भवरतिं चेतः प्रसीदाधुना।। ‘हे चित्त ! श्रोत्रादि इन्द्रियों के शब्दादि विषयरूपी वन से विश्राम ले अर्थात् इऩ लौकिक वस्तुओं से मुँह मोड़ व जिससे क्षणभर में ही सारे दुःखों की निवृत्ति हो जाती है ऐसे ज्ञानमार्ग का अनुसरण करके ‘स्व’ स्वरूप का अनुसंधान …