सज्जनों और दुर्जनों का स्वभाव
मृदघटवत् सुखभेद्यो दुःसन्धानश्च दुर्जनो भवति । सुजनस्तु कनकघटवद्दुर्भद्याश्चाशु सन्धेयः ।। ‘दुर्जन मनुष्य मिट्टी के घड़े के समान सहज में टूट जाता है और फिर उसका जुड़ना कठिन होता है । सज्जन व्यक्ति सोने के घड़े के समान होता है जो टूट नहीं सकता और टूटे भी तो शीघ्र जुड़ सकता है ।’ नारिकेलासमाकारा दृश्यन्ते हि …