भगवान शिव ने की सर्जरी
जो इन्द्रिय-गणों का, मन बुद्धि गणों का स्वामी है, उस अंतर्यामी विभु का ही वाचक है ʹगणेशʹ शब्द। ʹगणानां पतिः इति गणपतिः।ʹ उस निराकार परब्रह्म को समझाने के लिए ऋषियों ने और भगवान ने क्या लीला की है ! कथा आती है, शिवजी कहीं गये थे। पार्वती जी ने अपने योगबल से एक बालक पैदा कर उसे चौकीदारी करने रखा। शिवजी जब प्रवेश कर रहे थे तो वह बालक रास्ता रोककर खड़ा हो गया और शिवजी से कहाः “आप अन्दर नहीं जा सकते।”
शिवजी ने त्रिशूल से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। पार्वती जी ने सारी घटना बतायी। शिवजी बोलेः “अच्छा-अच्छा, यह तुम्हारा मानस-पुत्र है तो हम भी इसमें अपने मानसिक बल की लीला दिखा देते हैं।” शिवजी ने अपने गणों से कहाः “जाओ, जो भी प्राणी मिले उसका सिर ले आओ।” गण हाथी का सिर ले आये और शिवजी ने उसे बालक के धड़ पर लगा दिया। सर्जरी की कितनी ऊँची घटना है ! बोले, ʹमेरी नाक सर्जरी से बदल दी, मेरा फलाना बदल दिया….ʹ अरे, सिर बदल दिया तुम्हारे भोले बाबा ने ! कैसी सर्जरी है !
और फिर इस सर्जरी से लोगों को कितना समझने को मिला !
समाज को अनोखी प्रेरणा
गणेश जी के कान बड़े सूप जैसे हैं। वे यह प्रेरणा देते हैं कि जो कुटुम्ब का बड़ा हो, समाज का बड़ा हो उसमें बड़ी खबरदारी होनी चाहिए। सूपे में अन्न-धान में से कंकड़-पत्थर निकल जाते हैं। असार निकल जाता है, सार रह जाता है। ऐसे ही सुनो लेकिन सार-सार ले लो। जो सुनो वह सब सच्चा न मानो, सब झूठा न मानो, सार-सार लो। यह गणेश जी के बाह्य विग्रह से प्रेरणा मिलती है।
गणेश जी की सूँड लम्बी है अर्थात् वे दूर की वस्तु की भी गंध लेते हैं। ऐसे ही कुटुम्ब का जो अगुआ है, उसको कौन, कहाँ, क्या कर रहा है या क्या होने वाला है इसकी गंध आनी चाहिए।
हाथी के शरीर की अपेक्षा उसकी आँखें बहुत छोटी हैं लेकिन सुई को भी उठा लेता है हाथी। ऐसे ही समाज का, कुटुम्ब का अगुआ सूक्ष्म दृष्टिवाला होना चाहिए। किसको अभी कहने से क्या होगा ? थोड़ी देर के बाद कहने से क्या होगा ? तोल-मोल के बोले, तोल-मोल के निर्णय करे।
भगवान गणेश जी की सवारी क्या है ? चूहा ! इतने बड़े गणपति चूहे पर कैसे जाते होंगे ? यह प्रतीक है समझाने के लिए कि छोटे-से-छोटे आदमी को भी अपनी सेवा में रखो। बड़ा आदमी तो खबर आदि नहीं लायेगा लेकिन चूहा किसी के भी घर में घुस जायेगा। ऐसे छोटे से छोटे आदमी से भी कोई न कोई सेवा लेकर आप दूर तक की जानकारी रखो और अपना संदेश, अपना सिद्धान्त दूर तक पहुँचाओ। ऐसा नहीं कि चूहे पर गणपति बैठते हैं और घर घर जाते हैं। यह संकेत है आध्यात्मिक ज्ञान के जगत में प्रवेश पाने का
गणेश-विसर्जन का आत्मोन्नतिकारक संदेश
गणेशजी की मूर्ति तो बनी, नाचते-गाते विसर्जित भी की, निराकार प्रभु को साकार रूप में मानकर फिर साकार आकृति भी विसर्जित हुई लेकिन इस भगवद्-उत्सव में नाचना-कूदना झूमना तुम्हारे दिल में कुछ दे जाता है। रॉक और पॉप म्यूजिक पर जो नाचते-कूदते हैं, उनको भी कुछ दे जाता है जैसे – सेक्सुअल आकर्षण, चिड़चिड़ा स्वभाव, जीवनशक्ति का ह्रास…. लेकिन गजानन के निमित्त जो नाचते-गाते झूमते हैं, उन्हें यह उत्सव सूझबूझ दे जाता है कि सुनो सब लेकिन छान-छानकर सार-सार ही मन में रखो। दूर की भी गंध तुम्हारे पास होनी चाहिए। छोटे-से-छोटे आदमी का भी उपयोग करके अपना दैवी कार्य करो।
गणेश विसर्जन कार्यक्रम आपको अहंकार के विसर्जन, आकृति में सत्यता के विसर्जन, राग-द्वेष के विसर्जन का संदेश देता है। बीते हुए का शोक न करो। जो चला गया वह चला गया। जो चीज-वस्तु बदलती है उसका शोक न करो। आने वाले का भय न करो। वर्तमान में अहंकार की, नासमझी की दलदल में न गिरो। तुम बुद्धिमत्ता बढ़ाने के लिए ʹૐ गं गं गं गणपतये नमःʹ का जप किया करो और बच्चों को भी सिखाओ। बिल्कुल सुंदर व्यवस्था हो जायेगी !
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अगस्त 2013, पृष्ठ संख्या 8,9 अंक 248
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