Tag Archives: Sharir Swasthya

Sharir Swasthya

आयुर्वेद का अद्भुत प्राकट्य व एलोपैथी की शुरुआत – पूज्य बापू जी


ईसा के 460 वर्ष पूर्व ग्रीस देश में जन्मा हिप्पोक्रेट्स नाम का एक व्यक्ति औषधियों का रिसर्च करने बैठा । मिस्टर हिप्पोक्रेट्स को शाबाश है, आरोग्य के लिए प्रयत्न कि या और खोजें की । उसे एलोपैथी का जनक कहा गया । हिप्पोक्रेट्स ने इस चिकित्सा-पद्धति की खोज अपने दोस्तों के साथ, अपनी सहेलियों के साथ उठते-बैठते, खाते-पीते की होगी, अन्यथा ऋषि पद्धति से ध्यानयोग का आश्रय लेकर खोज करते तो इस पद्धति की दवाइयों में इतने दुष्परिणाम नहीं रहते । पाश्चात्य कल्चर में मांसाहार करते हैं, दारू भी पीते हैं, बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड, बनाते हैं और खोज भी करते हैं, उनको थैंक्स है लेकिन आयुर्वेद का प्राकट्य कैसे हुआ ?

भगवान ब्रह्मा जी, जो सृष्टि के कर्ता हैं, विश्व के गोप्ता ( गोपनीय रहस्यों के जानकार ) हैं और सारे भुवनों के रहस्यों को जानते हैं, उन्होंने समाधिस्थ होकर हमारे स्वास्थ्य के बारे में चिंतन किया और आरोग्य का पुनः प्राकट्य करने के लिए सच्चिदानंदरूप परमेश्वर से एक हो के आयुर्वेद प्रकट किया । मांसाहार तो क्या, शाकाहार भी क्या, ब्रह्मा जी तो ब्रह्मा जी हैं… ध्यान ही आत्मा का वास्तविक भोजन है यह वे भली-भाँति जानते हैं । धन्यवाद दे दो हिप्पोक्रेट्स को लेकिन ब्रह्मदेव तो भगवद् रूप हैं, सृष्टि के कर्ता हैं, उन्होंने समाधि-अवस्था में आयुर्वेद की खोज की, उनको तो खूब-खूब प्रणाम है ! फिर इस आयुर्वेद के ज्ञान को बॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड वालों ने आगे नहीं बढ़ाया, ऋषि मुनियों ने आगे बढ़ाया ।

भगवान शिवजी के ससुर दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मा जी से आयुर्वेद का ज्ञान लिया । उस आयुर्वेद के ज्ञान को अश्विनी कुमार, जो एकदम संयमी, सदाचारी, बुद्धिमान, ग्रहणशक्ति के धनी, ब्रह्मचर्य-व्रत में पक्के थे और विषय-विकारों से बचे हुए थे, उन्होंने झेला । उनसे देवराज इन्द्र ने और इन्द्र से महर्षि भरद्वाज जी तथा धन्वंतरि जी ने यह ज्ञान पाया । भरद्वाज जी ने पृथ्वी पर आ के अन्य ऋषियों को सुनाया । भरद्वाज जी के शिष्य ब्रह्मर्षि आत्रेय पुनर्वसु हुए और उनके अग्निवेश आदि 6 शिष्य हुए । उनमें प्रमुख अग्निवेश जी ने गुरु-उपदेश को एक शास्त्र के रूप में सूत्ररूप से ग्रंथित किया, जो ‘अग्निवेश तंत्र’ नाम से जाना गया । इस ग्रंथ का आचार्य चरक ने संस्कार कर संग्रह व भाष्य लिखा, जिससे उसका नाम ‘चरक संहिता’ पड़ा । कालांतर में आचार्य दृढ़बल ने चरक संहिता का विस्तार कर उसे सुसमृद्ध बनाया ।

भगवान धन्वंतरि जी ने आयुर्वेद का ज्ञान अपने शिष्य सुश्रुत आदि को दिया । उनमें प्रमुख शिष्य आचार्य सुश्रुत ने उस ज्ञान का श्रवण कर संहिता के रूप में संकलित किया, जो ‘सुश्रुत संहिता’ के नाम से आज भी सुविख्यात है ।

इन परम्पराओं में अन्य ऋषि-मुनियों ने भी इस प्रकार के अनेक ग्रंथ रचे । इस प्रकार ब्रह्मा जी से ऋषि परम्परा द्वारा आयुर्वेद मानवमात्र के कल्याणार्थ प्रचलित हुआ ।

अभी विदेशी भाषा और विदेशी दवाओं का जो आकर्षण लोगों में देखने को मिल रहा है, यह इश्तहारबाजी व प्रचार का ही प्रभाव है । एलोपैथी के इलाज से दुष्प्रभाव खूब भयंकर जानलेवा होते हैं । एलोपैथी का कुप्रभाव ऐसा है कि अभी तक हमारे जैसे आयुर्वेद का उपयोग नहीं करते तो चल पड़ते ( शरीर छूट जाता ) इसलिए हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमारी भारतीय संस्कृति में भगवान ब्रह्मा जी का, धन्वंतरि जी का, और भी एक-से-एक ऋषि-मुनियों की परम्परा वाले आयुर्वेद का प्रसाद हमको मिल रहा है, जिससे हम और लोगों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ और ज्यादा सत्य के करीब हो जाते हैं ।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2022, पृष्ठ संख्या 31, 32 अंक 353

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

शीतऋतु में विशेष हितकर पौष्टिक एवं रुचिकर राब



लाभः यह राब सुपाच्य, पौष्टिक एवं भूख व बलवर्धक है । इसमें
बाजरा व गुड़ का मेल होने से यह सर्दियों में विशेष हितकर है । बाजरे
में भरपूर कैल्शियम होने से यह सब हड्डियों की मजबूती के लिए
उपयोगी है । यह रक्ताल्पता (अनीमिया), मोटापा तथा कफजन्य रोगों
में भी लाभकारी है । मधुमेह (डायबिटीज) में नमकीन राब फायदेमंद है

विधिः 1 कटोरी राब बनाने हेतु किसी बर्तन में 1.5 से 2 कटोरी
पानी लेकर उसमें 3-4 चम्मच सेंका हुआ बाजरा का आटा मिला के
पकने चढ़ा दें । इसमें थोड़ी-सी सौंफ और आवश्यकतानुसार गुड़ डाल दें
। दूसरे बर्तन में आधा से 1 चम्मच चावल इस प्रकार पकायें कि खिचड़ी
की तरह न घुलें, खुले-खुले रहें । अच्छी तरह पक जाने पर राब में
चावल डाल दें । बस, मीठी राब तैयार है । इस विधि से बनाई गयी राब
रुचिकारक व स्वादिष्ट बनती है ।
नमकीन राब बनानी हो तेल में जीरे व कढ़ीपत्ते का छौंक लगा लें
। इसमें 1.5 से 2 कटोरी पानी डाल क 3 से 4 चम्मच सेंका हुआ बाजरे
का आटा मिला लें और हल्दी, नमक धनिया आदि डालकर पका लें ।
फिर उपरोक्त विधि में बताये अनुसार चावल पका के इसमें मिला लें ।
बस, नमकीन राब तैयार है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 32 अंक 348
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

चॉकलेट के दुष्परिणामों से बचकर
अपनायें स्वास्थ्य-हितकर तुलसी गोली !



बच्चों का रुचिकर चॉकलेट उनके स्वास्थ्य के लिए कितना घातक
है इस बात को या तो हम गम्भीरता से लेते नहीं हैं या फिर इसकी
हानियों को जानते हुए भी इससे बच्चों को नहीं बचा पाते क्योंकि हमारे
पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता जो बच्चों की चॉकलेट की माँग को
पूरा कर सके । यहाँ चॉकलेट का एक सुंदर विकल्प दिया जा रहा है ।
पूज्य बापू जी के सत्संग-वचनामृत में आता हैः “चॉकलेट से बहुत
हानि होती है । इसमें कई रसायन (केमिकल्ज़) पड़ते हैं । इससे चॉकलेट
खाने वाले बच्चों में मानसिक व्यग्रता, उत्तेजना, अवसाद (डिप्रेशन),
क्रोध, सिरदर्द, पेटदर्द, जोड़ों का दर्द और दाँतों के रोग बढ़ जाते हैं तथा
स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है ।
चॉकलेट बनाने वाले आपकी जेब के और आपके बच्चों के स्वास्थ्य
के दुश्मन हैं । इसलिए चॉकलेट भूलकर भी नहीं खिलाना चाहिए । हमने
एक टॉफी (तुलसी गोली) बनवायी, जिसमें त्रिकटु (सोंठ, काली मिर्च व
पीपर) हैं । इसके सेवन से बच्चे के पेट के कृमि मिट जायेंगे, उसको
कफ व खाँसी हो तो वे भी दूर हो जायेंगे, भूख भी अच्छी लगेगी और
टॉफी खाने का स्वाद भी आयेगा ।”
कई शोधों के बाद वैज्ञानिक भी अब यह बात बोलने लगे हैं कि
चॉकलेट का सेवन कई घातक बीमारियों का कारण है ।
चॉकलेट में पाये जाने वाले हानिकारक तत्त्व व उनके घातक
दुष्परिणाम
चॉकलेट में कैफीन, सीसा (लेड), कैडमियम, थियोब्रोमाइन,
वैसोएक्टिव एमाइंस, सैच्युरेटेड फैट्स व अतिरिक्त शर्करा, थियोफिलिन,

ट्रिप्टोफान जैसे हानिकारक तत्त्व पाये जाने इसका सेवन कई प्रकार की
विकृतियाँ पैदा करता है, जैसे-
बौद्धिक विकास में रुकावट होती है ।
रक्तचाप (बी.पी) बढ़ता है । यकृत (लिवर), गुर्दों (किडनीज़) और
हड्डियों को हानि पहुँचती है ।
अपच, पेटदर्द, सिरदर्द, अरुचि, जी मिचलाना, उलटी, दस्त,
अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, चक्कर आना, बेचैनी, हृदयरोग, मोटापा, दंतक्षय,
त्वचा का लाल होना, पेशाब में कठिनाई, त्वचा पर चकते, साँस लेने में
तकलीफ, थकान आदि समस्याएँ होती हैं ।
अतः हानिकारक द्रव्यों से युक्त चॉकलेट का सेवन करने की
अपेक्षा स्वास्थ्य, स्मृति व बल वर्धक तुलसी गोलियों का सेवन करें । ये
तुलसी के बीज, सोंठ, काली मिर्च, पीपर आदि बहुगुणी औषधियों से
युक्त होने से सभी के लिए लाभदायी हैं ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2021, पृष्ठ संख्या 34 अंक 348
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ