दिनांक 15-1-1996 की घटना है। बारिश होने के कारण कपड़े सुखाने के धातु के वायर में करंट आ गया था। मेरा छोटा पुत्र विशाल, जो कि 11वीं कक्षा में पढ़ता है, उससे छू गया और बिजली का शॉक लगते ही वह बेहोश और मृतदेह समान हो गया।
हमारे ऊपर तो मानो वज्रपात सा हुआ। पूरा परिवार शोकसंतप्त हो उठा। जिसे पता चला, वही इधर-उधर से तात्कालिक उपचार की व्यवस्था के लिए दौड़-धूप करने लगा। इसी भागदौड़ में हमने उसे तुरन्त बड़े अस्पताल में दाखिल करवाया। डॉक्टर ने भी बच्चे की हालत गंभीर बतायी। ऐसी परिस्थिति देखकर मेरी आँखों से अश्रुधारा बह निकली। मैंने मन-ही-मन निजानंद की मस्ती में मस्त रहने वाले पूज्य सदगुरुदेव को याद किया और प्रार्थना कीः ʹहे गुरुदेव ! अब तो इस बच्चे का जीवन आपके ही हाथों में है। हे मेरे प्रभु ! आप चाहे जो कर सकते हैं….ʹ और अन्ततः मेरी प्रार्थना सफल हुई। बच्चे में एक नवीन चेतना का संचार हुआ एंव धीरे-धीरे बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। कुछ ही दिनों में वह पूर्णतः स्वस्थ हो गया।
डॉक्टर ने उपचार किया लेकिन जो जीवनदान उस प्यारे प्रभु की कृपा से, सदगुरुदेव की कृपा से मिला उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। बस, ईश्वर से मैं यही प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे ब्रह्मनिष्ठ संत महापुरुषों के प्रति हमारी श्रद्धा में वृद्धि होती रहे।
डॉ. वाय.पी. कालरा।
EEG. Dept. Samaldas College, Bhavnagar (Guj.)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 1996, पृष्ठ संख्या 28, अंक 47
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