यकृत चिकित्सा

यकृत चिकित्सा


यकृत-चिकित्सा के लिए अन्य कोई भी चिकित्सा-पद्धतियों की अपेक्षा आयुर्वेद श्रेष्ठ पद्धति है। आयुर्वेद में इसके सचोट इलाज हैं। यकृत संबंधी किसी भी रोग की चिकित्सा निष्णात वैद्य की देखरेख में करवानी चाहिए।

कई रोगों में यकृत (Liver) की कार्यक्षमता कम हो जाती है। यकृत की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वैदिक औषधियाँ अत्यन्त उपयोगी हैं। अतः यकृत को प्रभावित करने वाले किसी भी रोग में रोग की यथायोग्य चिकित्सा के साथ-साथ निम्न बताई हुई आयुर्वैदिक औषधियों का सेवन हितकारी हैः

सुबह खाली पेट एक चुटकी (लगभग 1 ग्राम) साबुत चावल पानी के साथ निगल जायें।

हल्दी, धनिया एवं जवारा का रस 20 से 50 मि.ली. की मात्रा में सुबह-शाम पी सकते हैं।

रोहितक का चूर्ण 2 ग्राम एवं बड़ी हरड़ का चूर्ण 2 ग्राम सुबह खाली पेट गोमूत्र के साथ लेना चाहिए।

पुनर्नवामंडूर की 2-2 गोलियाँ (करीब एकाध ग्राम) सुबह-शाम गोमूत्र के साथ लेना चाहिए। यह सब संत श्री लीलाशाहजी उपचार केन्द्र (आश्रम) में भी मिल सकेगा।

संशमनी वटी की दो-दो गोलियाँ सुबह-दोपहर-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।

आरोग्यवर्धिनी वटी नं 1 की 1-1 गोली सुबह-शाम पानी के साथ लेना चाहिए।

हरित की 3 गोलियाँ रात्रि में गोमूत्र के साथ लें।

वज्रासन, पादपश्चिमोत्तानासन, पद्मासन, भुजंगासन जैसे आसन तथा प्राणायाम भी इस रोग में लाभप्रद हैं।

अपथ्यः लीवर के रोगी भारी पदार्थ एवं दही, उड़द की दाल, आलू, भिंडी, मूली, केला, नारियल, बरफ और उससे निमित्त पदार्थ, तली हुई चीजें, मूँगफली, मिठाई, अचार, खटाई इत्यादि न खायें।

पथ्यः शालि चावल, मूँग, चने, परमल (मुरमुरे), जौ, गेहूँ, अँगूर, अनार, परवल, लौकी, तुरई, गाय का दूध, गोमूत्र, धनिया, गन्ना आदि जठराग्नि को ध्यान में रखकर, नपातुला ही खाना चाहिए।

बच्चों में तुतलेपन एवं शैयामूत्र की समस्या

कुछ बच्चों में तुतलेपन एवं शैयामूत्र की बीमारी पायी जाती है। बचपन में यह क्रिया रोग नहीं मानी जाती किन्तु 4-5 वर्ष के बाद अथवा किशोरावस्था में भी यह क्रिया बच्चों में बनी रहती है तो उसके निदान के लिए माता-पिता को उचित इलाज कराना चाहिए। आगे चलकर इन बीमारियों से बच्चों का विकास अवरूद्ध हो जाता है तथा उनमें एक हीन भावना घर कर लेती है।

तुतलापन एक मानसिक दोष है। प्रायः बच्चों में कोई भी कार्य शीघ्र करने की एवं उतावलेपन की प्रवृत्ति पायी जाती है। कुछ बच्चे अपने से बड़ों के साथ रहकर उन्हीं की तरह जल्दी बोलने का प्रयास करते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें तुतलापन आ जाता है।

तुतलेपन का इलाज

तेजपात (तमालपत्र) को जीभ के नीचे रखकर रुक-रुककर बोलने से लाभ होता है।

दालचीनी चबाने व चूसने से भी तुतलेपन में लाभ होता है।

दो-चार बादाम प्रतिदिन रात को भिगोकर सुबह छील लो। तत्पश्चात उन्हें पीसकर दस ग्राम मक्खन में मिला लो। फिर बच्चों को सेवन कराओ। यह उपाय कुछ माह तक निरन्तर अपनाओ तो काभी लाभ होता है।

आरती के बाद जो शंख बजाया जाता है उस शंख में सुबह पानी भर दो। वह पानी शाम को पिलाओ। शाम को पानी भर दो और सुबह पिलाओ। शंखभस्म 50 मि.ग्रा. पानी के साथ दो। यह भस्म आप बना लो अथवा आश्रम के दवाखाने से प्राप्त कर लो।

शैयामूत्र का इलाज

जामुन की गुठली को पीसकर चूर्ण बना लो। इस चूर्ण की एक चम्मच मात्रा पानी के साथ देने से लाभ होता है।

रात को सोते समय प्रतिदिन छुहारे खिलाओ।

200 ग्राम गुड़ में 100 ग्राम काले तिल एवं 50 ग्राम अजवाइन मिलाकर 10-10 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार चबाकर खाने से लाभ होता है।

रात्रि को सोते समय दो अखरोट की गिरी एवं 20 किसमिस 15-20 दिन तक निरन्तर देने से लाभ होता है।

सोने से पूर्व शहद का सेवन करने से लाभ होता है। रात को भोजन के बाद दो चम्मच शहद आधे कप पानी में मिलाकर पिलाना चाहिए। यदि बच्चे की आयु छः वर्ष से कम हो तो शहद एक चम्मच देना चाहिए। इस प्रयोग से मूत्राशय की मूत्र रोकने की शक्ति बढ़ती है।

काले तिल को पीसकर चूर्ण बना लो। एक बड़ा चम्मच चूर्ण खूब चबा-चबाकर खाने के लिए दो तथा ऊपर से दूध पिलाओ। 20 से 90 दिनों तक आवश्यकतानुसार इसका सेवन करा सकते हैं। यदि बच्चे छः वर्ष से कम आयु के हों तो तिल की मात्रा 2 ग्राम रखो।

स्वामी श्रीलीलाशाहजी उपचार केन्द्र

जहाँगीरपुरा, सूरत

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 1999, पृष्ठ संख्या 29,30 अंक 78

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *