चैतन्यं शाश्वतं शान्तं व्योमातीतं निरंजनम्।
नादबिन्दुकलातीतं तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹजो चैतन्य, शाश्वत, शांत, आकाश से परे हैं, इन्द्रियों से परे हैं, जो नाद, बिंदु और कला से परे हैं, उन श्रीगुरुदेव को प्रणाम हैं !ʹ
यत्सत्येन जगत्सत्यं यत्प्रकाशेन विभाति यत्।
यदानन्देन नन्दन्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹजिसके अस्तित्त्व से संसार का अस्तित्त्व है, जिसके प्रकाश से जगत प्रकाशित होता है, जिसके आनंद से सब आनंदित होते हैं उन श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
कर्मणा मनसा वाचा सर्वादઽઽराधयेद् गुरुम्।
दीर्घदण्डनमस्कृत्य निर्लज्जो गुरुसन्निधौ।।
ʹगुरुदेव के समक्ष निःसंकोच होकर लंबा दण्डवत प्रणाम करके मन, कर्म तथा वचन से हमेशा गुरुदेव की आराधना करनी चाहिए।ʹ
आनन्दमानन्दकरं प्रसन्नं ज्ञानस्वरूपं निजभावयुक्तम्।
योगीन्द्रमीडयं भवरोगवैद्यं श्रीसदगुरुं नित्यमहं नमामि।।
ʹजो आनन्दस्वरूप हैं, जो आनंदमय करने वाले हैं, जो सदैव प्रसन्न हैं, जो ज्ञानस्वरूप हैं, जो निज भाव से युक्त हैं, जो योगियों के आराध्यदेव हैं, जो संसाररूपी रोग के वैद्य हैं ऐसे श्री सदगुरु को मैं नित्य प्रणाम करता हूँ।ʹ
नित्यशुद्धं निराभासं निराकारं निरंजनम्।
नित्यबोधं चिदानंदं गुरुं ब्रह्म नमाम्यहम्।।
ʹजो नित्यशुद्ध हैं, जो आभासरहित हैं, जो निराकार हैं, जो इन्द्रियों से परे हैं, जो नित्य ज्ञानस्वरूप हैं, जो चिदानंद हैं ऐसे ब्रह्मस्वरूप श्रीगुरुदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।ʹ
नमः शिवाय गुरवे सच्चिदानन्दमूर्तये।
निष्प्रपंचाय शान्ताय निरालम्बाय तेजसे।।
ʹशिवस्वरूप, सच्चिदानंदस्वरूप, प्रपंचों से रहित, शान्त निरालम्ब, तेजयुक्त श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
नमः शान्तात्मने तुभ्यं नमो गुह्यतमाय च।
अचिन्त्यायाप्रमेयाय अनादिनिधनाय च।।
ʹहे रहस्यमय, अचिन्तनिय, अपरिमित और आदि-अंत से रहित, शान्त आत्मस्वरूप ! तुझे प्रणाम है !ʹ
नमस्ते सते ते जगत्कारणाय। नमस्ते चिते सर्वलोकाश्राय।।
नमोઽद्वैततत्त्वाय मुक्तिप्रदाय। नमो ब्रह्मणे व्यापिने शाश्वताय।।
ʹजगत के कारण सत् तुझे प्रणाम है ! सर्व लोकों के आश्रयस्वरूप चित् तुझे प्रणाम है ! मुक्ति प्रदान करने वाले अद्वैत तत्त्व तुझे प्रणाम है ! शाश्वत, सर्वत्र व्याप्त ब्रह्म तुझे प्रणाम है !ʹ
सत्यानन्दस्वरूपाय बोधैकसुखकारिणे।
नमो वेदान्तवेद्याय गुरवे बुद्धिसाक्षिणे।।
ʹजो सत्य और आनंदस्वरूप हैं, चेतनानंद के साधनस्वरूप हैं, बुद्धि के साक्षी हैं, वेदांत के द्वारा ज्ञेय हैं ऐसे श्रीगुरुदेव को नमस्कार है !ʹ
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरून्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹअज्ञानरूपी अंधकार से अंधे बने हुए की आँखों को ज्ञानरूपी अंजन-शलाका से खोलने वाले उऩ श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹजो चर और अचर सृष्टि में अखण्ड-मण्डलाकार रूप में व्याप्त हैं, जिन्होंने ʹतत्पदʹ का दर्शन कराया है, उन श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किंचित्सचराचरम्।
त्वंपदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹजो चर और अचल सृष्टि में स्थावर एवं जंगम सब जीवों में व्याप्त हैं, जिन्होंने ʹत्वंपदʹ का दर्शन कराया है, उऩ श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
चिन्मयं व्यापितं सर्व त्रैलोक्यं सचराचरम्।
असित्वं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।
ʹजो चिन्मयस्वरूप, तीनों लोकों के चल एवं अचल सब जीवों में व्याप्त है, जिन्होंने ʹअसिपदʹ का दर्शन कराया है, उन श्रीगुरुदेव को प्रणाम है !ʹ
(स्कन्दपुराण)
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 1999, पृष्ठ संख्या 13,14 अंक 79
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