फरीद बड़े फक्कड़ संत थे। एक बार एक व्यक्ति ने उनके पास जाकर कहाः “महाराज ! ईसा मसीह को क्रॉस पर चढ़ना पड़ा और उनके हाथ पैरों में खीलें ठोक दी गयीं… मंसूर को भी शूली पर चढ़ना पड़ा… सुकरात को जहर दे दिया गया लेकिन ʹहम मर रहे हैंʹ ऐसा महसूस उनको क्यों नहीं हुआ ? ʹहम मौत को देख रहे हैं… हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकता….ʹ ऐसा वो क्यों बोलते थे ? हमें तो एक छोटी सी सुई चुभती है तब भी पीड़ा होती है किन्तु उन्हें शूली पर चढ़ने पर भई दुःख क्यों नहीं हुआ ?”
फरीद ने अपने सामने पड़े हुए नारियल के ढेर में से एक नारियल उसे देते हुए कहाः “जा इसको तोड़कर आ, लेकिन ध्यान रखना कि गिरी साबूत रहे।”
वह व्यक्ति गया और नारियल तोड़ने की युक्ति का विचार करने लगा। नारियल हरा था अतः बिना गिरी टूटे नारियल कैसे टूट सकता था ? काफी देर सोच-विचार कर वह पुनः बाबा फरीद के पास आया और बोलाः “महाराज ! यह काम मुझसे नहीं हो पायेगा। जैसे नारियल का टूटना होगा, वैसे ही भीतर की गिरी भी टूट जायेगी।”
फरीद ने सूखा नारियल देते हुए कहाः “इसको तोड़कर आ लेकिन इसकी भी गिरी साबूत ही रहे।”
उस व्यक्ति ने नारियल हिलाकर देखा। नारियल सूखा था। अंदर की गिरी के हिलने की आवाज आ रही थी। वह बोलाः “महाराज ! इसकी गिरी तो बिना तोड़े भी साबूत ही है। हिलने मात्र से ही पता चल जाता है।”
फरीदः “उस हरे नारियल को तोड़ने से उसकी गिरी भी टूट जाती क्योंकि वह गिरी अपने बाह्य स्थूल भाग से चिपकी थी। यह सूखा हुआ नारियल है। धीरे-धीरे अपने बाह्य भाग से, छिलके से, गिरी की पकड़ हट गयी है। इसी प्रकार मंसूर, सुकरात आदि सूखे नारियल थे और तुम हरे नारियल हो। वे लोग केवल गिरी ही बचे थे, केवल ब्रह्मानंदस्वरूप ही बचे थे। उनका स्थूल और सूक्ष्म शरीर देखने मात्र का था जबकि तुम्हारी गिरी अभी चिपकी हुई है।
जप, ध्यान, प्राणायाम आदि का फल यही है कि गिरी अलग हो जाये। कीमत तो गिरी की ही होती है, बाकी तो बाहर का आवरण दिखावा मात्र होता है। कीमत तुम्हारे बाह्य सौन्दर्य की नहीं, वरन् भीतर स्थित अंतर्यामी परमात्मा की ही है।
ऐसे सूखे नारियल की तरह ब्रह्म में प्रतिष्ठित फकीर यदि तुम्हारी ओर केवल निहार भी लें और तुम उऩ्हें झेल पाओ तो उसके आगे करोड़ों की संपत्ति का मूल्य भी कौड़ी के समान है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, सितम्बर 1999, पृष्ठ संख्या 22,23 अंक 81
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