Monthly Archives: November 1999

आज का युग जेट युग है


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से

आज के युग को जेट युग कहते हैं। आज कल जो कुछ होता है सब ʹफास्टʹ (तीव्र गति से) होता है। पहले के जमाने में माताओं-बहनों को रोटी बनानी होती थी तो चूल्हें में गोबर के कण्डे डालतीं, लकड़ियाँ रखतीं, फिर फूँक-फूँककर चूल्हे जलातीं। फूँक-फूँककर थक जातीं, धुएँ के कारण आँखों में आँसू आ जाते, तब कहीं चूल्हा जलता फिर रोटी पकातीं। बड़ी मुश्किल से वे रसोईघर का काम निपटा पाती थीं और आज… उठाया लाइटर, गैस का बटन घुमाया और गैस चालू… 15-20 मिनट में भोजन तैयार।

संदेश भेजने के लिए भी पहले कबूतरों से काम लिया जाता था। कबूतर पालो, उसे काम सिखाओ, फिर जब कभी जरूरत पड़े तो उसके गले में चिट्ठी डालो। वह उड़ता-उड़ता जाये, कब पहुँचे, कब संदेश वापस लाये… कोई पता नहीं। इस प्रकार कई दिन लग जाते थे। या तो कोई विश्वासपात्र व्यक्ति चिट्ठी लेकर घोड़े से जाता और जवाब लेकर वापस आता। उसमें से भी कई दिन निकल जाते थे। अब तो उठाओ फोन, दबाओ बटनः ʹहेलो ! मैं अमुक जगह से बोल रहा हूँ। मुझे अमुक बात करनी है… इतना काम हुआ है, इतना करना है….।ʹ बस, हो गयी बात। संदेश भी पहुँचा, उत्तर भी मिला और योजना भी बन गई।

इसी प्रकार पहले के जमाने में लोगों को कहीं जाना होता था तो ज्यादातर लोग पैदल चलकर जाते थे। कुछ लोग बैलगाड़ी या घोड़े का उपयोग करते थे, फिर भी उसमें आने जाने में काफी समय लगता था। आज कल स्कूटर, टैक्सी, बस, रेल की सुविधा तो है ही, परन्तु जो और जल्दी से कहीं पहुँचना चाहता है वह हवाई जहाज का उपयोग भी कर लेता है। उनमें भी जेट विमान की यात्रा ज्यादा ʹफास्टʹ होती है। इसलिए आज के युग को ʹजेट युगʹ कहते हैं।

आज के इस फास्ट युग में जैसे हम भोजन पकाने, कपड़े धोने, यात्रा करने, संदेश भेजने आदि व्यावहारिक कार्यों में फास्ट हो गये हैं, वैसे ही क्यों न हम प्रभु का आनंद, प्रभु का ज्ञान पाने में भी फास्ट हो जायें ?

पहले का जीवन शांतिप्रद जीवन था, इसलिए सब काम शांति से, आराम से होते थे एवं उनमें समय भी बहुत लगता था। लोग भी दीर्घायु होते थे। लेकिन आज हमारी जिंदगी इतनी लंबी नहीं है कि सब काम शांति और आराम से करते रहें। सतयुग, त्रेता, द्वापर में लोग हजारों वर्षों तक जप-तप-ध्यान आदि करते थे, तब प्रभु को पाते थे। किन्तु आज के मनुष्य की न ही उतनी आयु है, न ही उतनी सात्त्विकता, पवित्रता और क्षमता है कि वर्षों तक माला घुमाता रहे और तप करता रहे। अतः आज की इस ʹफास्ट लाइफʹ में प्रभु की मुलाकात करने में भी फास्ट साधनों की आदत डाल देनी चाहिए। उस प्यारे  प्रभु से हमारा तादात्म्य भी ऐसा फास्ट हो कि,

दिले तस्वीरे है यार ! जबकि गर्दन झुका ली और मुलाकात कर ली….

बस, आप यह कला सीख लो। आप पूजा कक्ष में बैठें, तभी आपको भक्ति, ज्ञान या प्रेम का रस आये ऐसी बात नहीं है। वरन् आप घर में हों या दुकान में, नौकरी कर रहे हों या फुर्सत में, यात्रा में हो या घर के किसी काम में….. हर समय आपका ज्ञान, आनंद एवं माधुर्य बरकरार रह सकता है। युद्ध के मैदान में अर्जुन निर्लेप नारायण तत्त्व का अनुभव कर सकता है तो आप भी चालू व्यवहार में उस परमात्मा का आनंद-माधुर्य क्यों नहीं पा सकते ? गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-

तन सुकाय पिंजर कियो, धरे रैन दिन ध्यान।

तुलसी मिटे न वासना, बिना विचारे ज्ञान।।

शरीर को सुखाकर पिंजर कर देने की भी आवश्यकता नहीं है। व्यवहार काल में जरा-सी सावधानी बरतो और कल्याण की कुछ बातें आत्मसात् करते जाओ तो प्रभु का आनंद पाने में कोई देर नहीं लगेगी।

तीन बातों से जल्दी कल्याण होता हैः

पहली बातः सच्चे हृदय से हरि का स्मरण।

तुलसीदास जी ने कहा हैः

भाँय कुभाँय अनख आलसहूँ।

नाम लेत मंगल दिसि दसहूँ।।

भाव से, कुभाव, क्रोध से, आलस्य से भी यदि हरि का नाम लिया जाता है तो दसों दिशाओं में मंगल होता है। अतः सच्चे हृदय से हरि का स्मरण करने से कितना कल्याण होगा।

जपात सिद्धिः जपात सिद्धिः जपात सिद्धिर्न संशयः।

जब करते रहो…. हरि का स्मरण करते रहो…. इससे आपको सिद्धि मिलेगी। आपका मन सात्त्विक होगा, पवित्र होगा और भगवदरस प्रगट होने लगेगा।

दूसरी बातः प्राणीमात्र का मंगल चाहो। यहाँ हम जो देते हैं, वहीं हमें पाताल मिलता है और कई गुना होकर मिलता है। यदि आप दूसरों को सुख पहुँचाने का भाव रखेंगे तो आपको भी अऩायास ही सुख मिलेगा। अतः प्राणीमात्र को सुख पहुँचाने का भाव रखो।

तीसरी बातः अपने दोष निकालने के लिए तत्पर रहो। जो अपने दोष देख सकता है, वह कभी-न-कभी दोषों को दूर करने के लिए भी प्रयत्नशील होगा ही। ऐसे मनुष्य की उन्नति निश्चित है। जो अपने दोष नहीं देख सकता वह तो मूर्ख है लेकिन जो दूसरों के द्वारा सिखाने पर भी अपने दोषों को कबूल नहीं करता है वह महामूर्ख है और जो परम हितैषी सदगुरु के कहने पर भी अपने में दोष नहीं मानता है वह तो मूर्खों का शिरोमणि है। जो अपने दोष निकालने के लिए तत्पर रहता है वह इसी जन्म में निर्दोष नारायण का प्रसाद पाने में सक्षम हो जाता है।

जो इऩ तीन बातों का आदर करेगा और सत्संग एवं स्वाध्याय में रुचि रखेगा, वह कल्याण के मार्ग पर शीघ्रता से बढ़ेगा।

भगवान श्रीराम भी विद्यार्थी काल में जब धनुर्विद्या आदि सीखते थे तब विद्याध्ययन से समय निकालकर वशिष्ठजी महाराज के चरणों में ब्रह्मज्ञान का सत्संग सुनते थे और चौदह वर्ष का वनवास मिला, तब भी भरद्वाज आदि संत-महात्माओं के सत्संग में बैठकर ब्रह्मविद्या का पान करते थे। भगवान श्रीकृष्ण भी सांदीपनि ऋषि के चरणों में बैठकर सत्संगामृत का पान करते थे। कबीरजी ने भी उस ब्रह्म-परमात्मा के रस का आस्वादन किया और उऩके चरणों में काशीनरेश कृतार्थ हुआ। नानकजी ने भी जीवन भर ब्रह्मविद्या का पान किया और अपने प्यारों को कराया। अब आप भी इस कलियुग में ब्रह्मरस का पान करके पावन होते जाओ।

जानिऊ तबहिं जीव जग जागा।

जब सम बिषय बिलास विरागा।।

ʹजगत में जीव को जागा हुआ तभी जानना चाहिए जब संपूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाये। जैसे, शरीर रोज गंदा हो जाता है तो पानी से स्नान करके उसे स्वच्छ कर लेते हैं, वैसे ही काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, अहंकार आदि से मन मैला हो जाता है तो उसे सत्संग की वर्षा में स्नान कराके पवित्र कर लो। ज्यो-ज्यों पवित्रता बढ़ती जायेगी, त्यों-त्यों भीतर का आत्म-परमात्मरस छलकता जायेगा। जीवन हलका फूल जैसा हो जायेगा। चिंतारहित, अहंकाररहित, तनावरहित जीवन हो जायेगा। जिस वक्त जो काम करना हो, कर लिया आनंद से, उत्साह से। नींद आई तो सो गये और जाग गये तब भी वाह वाह…..। गोता मारकर अमृत पी लिया… देर किस बात की भैया ! यह ʹजेट युगʹ है। प्रभु का आनंद पाने का यह ʹजल्द युगʹ है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 1999, पृष्ठ संख्या 4-6 अंक 83

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ

 

अमृतफल-जामफल-अमरूद


अमरूद या जामफल शीतकाल में पैदा होने वाला, सस्ता और गुणकारी फल है जो सारे भारत में पाया जाता है। संस्कृत में इसे ʹअमृतफलʹ भी कहा गया है।

आयुर्वेद के मतानुसार पका हुआ अमरूद स्वाद में खट-मीठा, कसैला, गुण में ठण्डा, पचने में भारी, कफ तथा वीर्यवर्धक, रुचिकारक, पित्तदोषनाशक, वातदोषनाशक एवं हृदय के लिए हितकर है। अमरूद पागलपन, भ्रम, मूर्च्छा, कृमि तृषा, शोष, श्रम, विषम ज्वर (मलेरिया) तथा जलनाशक है। गर्मी के तमाम रोगों में जामफल खाना हितकारी है। यह शक्तिदायक, सत्त्वगुणी एवं बुद्धिवर्धक है अतः बुद्धिजीवियों के लिए हितकर है। भोजन के 1-2 घण्टों के बाद इसे खाने से कब्ज, अफारा आदि की शिकायतें दूर होती हैं। सुबह खाली पेट नाश्ते में अमरूद खाना भी लाभदायक है।

विशेषः अधिक अमरूद खाने से वायु, दस्त एवं ज्वर की उत्पत्ति होती है, मंदाग्नि एवं सर्दी भी हो जाती है। जिनकी पाचनशक्ति कमजोर हो, उन्हें अमरूद कम खाने चाहिए।

अमरूद खाते समय इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि इसके बीज ठीक से चबाये बिना पेट में न जायें। जामफल को खूब अच्छी तरह चबाकर निगलें या फिर इसके बीज अलग करके केवल गुदा ही खायें। इसका साबुत बीज यदि आंत्रपुच्छ (अपेण्डिक्स) में चला जाय तो फिर बाहर नहीं निकल पाता जिससे प्रायः ʹअपेण्डिसाइटिसʹ होने की संभावना रहती है।

खाने के लिए पके हुए जामफल का ही प्रयोग करें। कच्चे जामफल का उपयोग सब्जी के रूप में किया जा सकता है। दूध एवं जामफल खाने के बीच में 2-3 घण्टों का अंतर अवश्य रखें।

अमरूद के औषधि प्रयोग

सर्दी-जुकामः जुकाम होने पर एक जामफल का गुदा बिना बीज के खाकर एक गिलास पानी पी लें। दिन में ऐसा 2-3 बार करें। पानी पीते समय नाक से साँस न लें और न छोड़ें। नाक बन्द करके पानी पियें और मुँह से ही साँस बाहर फेंके। इससे नाक बहने लगेगा। नाक बहना शुरु होते ही जामफल खाना बन्द कर दें। 1-2 दिन में जुकाम खूब झड़ जाए तब रात को सोते समय 50 ग्राम गुड़ खाकर बिना पानी पिये सिर्फ कुल्ले करके सो जायें। जुकाम ठीक हो जायेगा।

खाँसीः एक पूरा जामफल आग की गरम राख में दबाकर सेंक लें। 2-3 दिन तक प्रतिदिन ऐसा एक जामफल खाने कफ ढीला हो जाता है, निकल जाता है और खाँसी में आराम हो जाता है। चाय की पत्ती की जगह जामफल के पत्ते पानी से धोकर साफ कर लें और फिर पानी में उबालें। जब उबलने लगे तब उसमें दूध व शक्कर डाल दें, फिर उसे छान लें। इसे पीने से खाँसी में आराम होता है। इसके बीजों को ʹबिहीदानाʹ कहते हैं। इन बीजों को सुखाकार पीस लें और थोड़ी मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटें। इससे खाँसी ठीक हो जाएगी। इस दौरान तेल एवं खटाई का सेवन न करें।

सूखी खाँसीः सूखी खाँसी में  पके हुए जामफल को खूब चबा-चबाकर खाने से लाभ होता है।

कब्जः पर्याप्त मात्रा में जामफल खाने से मल सूखा और कठोर नहीं हो पाता और सरलतापूर्वक शौच हो जाने से कब्ज नहीं रहता। जामफल काटने के बाद उस पर सोंठ, काली मिर्च और सेंधा नमक बुरबुरा लें अथवा संतकृपा चूर्ण डाल लें। फिर इसे खाने से स्वाद बढ़ता है और पेट के अफारा, गैस और अपच दूर होते हैं। इसे सुबह निराहार खाना चाहिए या भोजन के साथ खाना चाहिए।

मुख रोगः इसके कोमल हरे पत्ते चबाने से मुँह के छाले नरम पड़ते हैं, मसूढ़े व दाँत मजबूत होते हैं, मुँह की दुर्गन्ध का नाश होता है। पत्ते चबाने के बाद इसका रस थोड़ी देर मुँह में रखकर इधर-उधर घुमाते रहें, फिर थूक दें। पत्तों को उबालकर इस पानी से कुल्ले व गरारे करने पर दाँत का दर्द दूर होता है एवं मसूढ़ों की सूजन व पीड़ा नष्ट होती है।

शिशु रोगः जामफल के पिसे हुए पत्तों की लुगदी बनाकर बच्चों की गुदा के मुख पर रखकर बाँधने से उनका गुदाभ्रंश यानी कांच निकलने का रोग भी ठीक होता है। बच्चों को पतले दस्त बार-बार लगते हों तो इसके कोमल व ताज़े पत्तों एवं जड़ की छाल को उबालकर काढ़ा बना लें और 2-2 चम्मच सुबह-शाम पिलायें। इससे पुराना अतिसार भी ठीक हो जाता है। इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलाने से उल्टी व दस्त होना बन्द हो जाता है।

सूर्यावर्तः सुबह सूर्योदय से सिरदर्द शुरु हो, दोपहर में तीव्र पीड़ा हो एवं सूर्यास्त हो तब तक सिरदर्द मिट जाये-इस रोग को सूर्यावर्त कहते हैं। इस रोग में रोज सुबह पके हुए जामफल खाने एवं कच्चे जामफल को पत्थर पर पानी के साथ घिसकर ललाट पर उसका लेप करने से लाभ होता है।

भाँग का नशाः 2 से 4 पके हुए जामफल खाने से अथवा इसके पत्तों का 40-50 मि.ली. रस पीने से भाँग का नशा उतर जाता है।

दाह-जलनः पके हुए जामफल पर मिश्री भुरभुराकर रोज सुबह एवं दोपहर में खाने से जलन कम होती है। यह प्रयोग वायु अथवा पित्तदोष से उत्पन्न शारीरिक दुर्बलता में भी लाभदायक है।

पागलपन एवं मानसिक उत्तेजनाः मानसिक उत्तेजना, अति क्रोध, पागलपन अथवा अति विषय-वासना से पीड़ित लोगों के लिए प्रतिदिन रात्रि को पानी में भिगोये हुए 3-4 पके जामफल सुबह खाली पेट खाना लाभदायक है। दोपहर के समय भी भोजन के 2 घण्टे बाद जामफल खायें। इससे मस्तिष्क की उत्तेजना का शमन होता है एवं मानसिक शांति मिलती है।

स्वप्नदोषः कब्जियत अथवा शरीर की गर्मी के कारण होने वाले स्वप्नदोष में सुबह-दोपहर जामफल का सेवन लाभप्रद है।

खूनी दस्त (रक्तातिसार)- जामफल का मुरब्बा या पके हुए कच्चे जामफल की सब्जी का सेवन करने से खूनी दस्त में लाभ होता है।

मलेरिया ज्वरः तीसरे अथवा चौथे दिन आने वाले विषम ज्वर (मलेरिया) में प्रतिदिन नियमित रूप से सीमित मात्रा में जामफल का सेवन लाभदायक है।

सीताफल

अगस्त से नवम्बर के आसपास अर्थात् आश्विन से माघ मास के बीच आने वाले सीताफल एक स्वादिष्ट फल है।

आयुर्वेद के मतानुसार सीताफल शीतल, पित्तशामक, कफ एवं वीर्यवर्धक, तृषाशामक, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, मांस एवं रक्तवर्धक, उलटी बंद करने वाला, बलवर्धक, वातदोषशामक एवं हृदय के लिए हितकर है।

आधुनिक विज्ञान के मतानुसार सीताफल में कैल्शियम, लौह तत्त्व, फास्फोरस, विटामिन थायमिन, रिवोफ्लोवीन एवं विटामिन ʹसीʹ वगैरह अच्छे प्रमाण में होते हैं।

जिन लोगों की प्रकृति गर्म अर्थात् पित्तप्रधान है उनके लिए सीताफल अमृत के समान गुणकारी है।

जिन लोगों का हृदय कमजोर हो, हृदय का स्पंदन खूब ज्यादा हो, घबराहट होती हो, उच्च रक्तचाप हो ऐसे रोगियों के लिए भी सीताफल का सेवन लाभप्रद है। ऐसे रोगी सीताफल की ऋतु में उसका नियमित सेवन करें तो उनका हृदय मजबूत एवं क्रियाशील बनता है।

जिन्हें खूब भूख लगती हो, आहार लेने के उपरान्त भी भूख शांत न होती हो – ऐसे ʹभस्मकʹ रोग में भी सीताफल का सेवन लाभदायक है।

विशेषः सीताफल गुण में अत्यधिक ठण्डा होने के कारण ज्यादा खाने से सर्दी होती है। सीताफल ज्यादा खाने से कइयों को ठंड  लगकर बुखार आने लगता है, अतः जिनकी कफ-सर्दी की तासीर हो वे सीताफल का सेवन न करें। जिनकी पाचनशक्ति मंद हो, बैठालु जीवन हो, उन्हें सीताफल का सेवन बहुत सोच-समझकर सावधानी से करना चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले नुकसान होता है।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 1999, पृष्ठ संख्या 29-31 अंक 83

ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ