भक्ति की शक्ति

भक्ति की शक्ति


संत श्री आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से

एक योगी ने योगबल से संकल्प करके अपना सूक्ष्म शरीर निकाला और भगवान विष्णु के लोक में गया। वहाँ जाकर उसने भगवान से कहाः

“मुझे आपकी प्रेमाभक्ति दे दो।”

भगवानः “योगी ! तुझे चाहिए तो राज्य दे दूँ। अरे, तुझे चक्रवर्ती सम्राट बना दूँ।”

योगीः “नहीं, प्रभु ! मुझे तो केवल आपकी प्रेमाभक्ति चाहिए।”

भगवानः “योगी ! अष्टसिद्धि ले लो।”

योगीः “नहीं, भगवान !”

भगवानः “…..तो नवनिधियाँ ले लो।”

योगीः “भगवान ! आप इतना सारा देने को तैयार हैं लेकिन अपनी प्रेमाभक्ति नहीं देते ? क्या बात है ?”

भगवानः “अगर प्रेमाभक्ति दू दूँ तो भक्त के पीछे-पीछे घूमना पड़ता है और अन्य सब चीजें दे देता हूँ तो भक्त उन्हीं में रममाण करता है। मुझे उसके पीछे नहीं जाना पड़ता।”

कितनी महिमा है प्रेमाभक्ति की !

कहा गया हैः

ये मुहब्बत की बातें हैं ओधव !

बंदगी अपने बस की नहीं है।।

यहाँ सिर देकर होते हैं सिजदे।

आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।।

भगवान की प्रेमाभक्ति में नित्य नवीन रस आता है। यह बहुत ऊँची चीज है। धन मिल जाना, राज्य मिल जाना, सत्ता मिल जाना, कुँआरे की शादी हो जाना, निःसंतान को संतान मिल जाना, ये सब तुच्छ चीजें हैं। भगवान की भक्ति मिल जाये और गुरुकृपा का पात्र बनने का अवसल मिल जाये फिर कुछ बाकी नहीं बचता है।

दुनिया की सब चीजें मिल जायें तो भी क्या ? मरने के बाद तो सब यहीं पड़ा रह जायेगा। फिर जन्म-मरण के चक्र में पड़ेंगे और चंद्रमा की किरणों के द्वारा, वर्षा की बूँदों के द्वारा अन्न में, फल में जायेंगे। उसे मनुष्य खायेंगे और नर के द्वारा नारी के गर्भ में जायेंगे। वह नारी भी दो पैरवाली होगी तो मनुष्य, चार पैरवाली होगी तो गधा, घोड़ा, बैल आदि बनेंगे।

किसी माता के गर्भ में उलटे होकर लटकना पड़े उससे पहले भगवान की भक्ति करके उसकी को पा लो भैया ! न जाने यह मनुष्य जन्म फिर मिले या न मिले…. ऐसी बुद्धि मिले या न मिले.. ऐसी श्रद्धा हो या नहो… किसने देखा है ?

स्वामी निर्मल जी ने कहा हैः

“न जाने कौन-कौन से जन्म पा चुकने के बाद यह मानव शरीर  मिला है। गुरुदेव भी कामिल हैं। तुम पर पूर्ण गुरुकृपा भी है। वातावरण भी आध्यात्मिक है। फिर भी तुम लोग उससे लाभ नहीं उठा पाते… अपने स्वरूप की पहचान के लिए आगे नहीं बढ़ते… हमें दुःख होता है। क्या तुम्हें विश्वास है कि दोबारा जन्म इसी तरह का ही मिलेगा, ऐसा ही वातावरण, ऐसे ही गुरुदेव तथा ऐसी ही भावनाएँ और ऐसी ही श्रद्धा फिर होगी ? पगले ! क्यों सो रहे हो ? अब भी जाग जाओ। इससे दुनिया का कुछ नहीं बिगड़ेगा।

तू शाही है परवाज है काम तेरा।

तेरे लिए आसमां और भी हैं।।

इसी रूजो-राब में उलझकर न रहना।

तेरे तो कोनो-मकां, और भी हैं।।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, जुलाई 2000, पृष्ठ संख्या 17, अंक 91

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