भक्त मोहन

भक्त मोहन


(अमदावाद में मार्च 2001 में आयोजित विद्यार्थी शिविर में देश के नन्हें-नन्हें भावी कर्णधारों को प्रेरक प्रसंग के माध्यम से भक्तिकी महिमा समझाते हुए पूज्य श्री ने कहाः)

मोहन की माँ ने उसे पढ़ने के लिए गुरुकुल में भेजा। मोहन के पिता का बचपन में ही स्वर्गवास हो गया था। गरीब ब्राह्मणी ने अपने इकलौते बेटे को गाँव से  5 मील दूर गुरुकुल में प्रवेश करवाया। गुरुकुल जाते समय बीच में जंगल का रास्ता पड़ता था।

एक दिन घर लौटने में मोहन को देर हो गयी। भयानक जानवरों की आवाजें आने लगीं। कहीं चीता, कहीं शेर तो कहीं सियार…. मोहन थर-थर काँपने लगा। मोहन जैसे-तैसे करके जंगल से बाहर निकला। उसकी माँ राह देख रही थी। माँ ने कहाः

”बेटा ! क्यों डरता है?”

मोहनः ”माँ ! अँधेरा हो गया था। हिंसक प्राणियों की भयानक आवाजें आ रही थीं। माँ ! इसलिए बड़ा डर लगता था। भगवान का नाम लेता-लेता मैं किसी तरह भाग आया।”

माँ- ”तू अपने भाई को बुला लेता।”

मोहनः ”माँ ! मेरा कोई भाई भी है क्या ?”

माँ- ”हाँ, हाँ,बेटा ! तेरा बड़ा भाई है।”

मोहनः ”कहाँ है?”

माँ- ”जहाँ से बुलाओ, आ जाता है।”

मोहनः ”भाई का नाम क्या है ? माँ !”

माँ- ”बेटा! तेरे भाई का नाम है गोपाल। कोई उसको गोपाल बुलाता है,कोई गोविन्द,कोई कृष्ण बोलता है,कोई केशव। वही तेरा बड़ा भाई है, बेटा ! जब भी डर लगे तब तू ‘गोपाल भैया…. गोपाल भैया’ करके उसको पुकारना तो वह आ जायेगा।”

दूसरे दिन गुरुकुल से लौटते वक्त जंगल में मोहन को डर लगा। उसने पुकाराः

”गोपाल भैया ! गोपाल भैया ! आ जाओ न, मुझे बड़ा डर लग रहा है… गोपाल भैया।”

इतने में मोहन को बड़ा ही मधुर स्वर सुनायी दियाः ”भैया ! तू डर मत। मैं यह आया।”

गोपाल भैया का हाथ पकड़कर मोहन निडर होकर चलने लगा। जंगल की सीमा तक मोहन को लौटाकर गोपाल लौटने लगा।

मोहनः ”गोपाल भैया ! घर चलो।”

गोपालः ”नहीं भैया ! मुझे और भी काम हैं।”

घर जाकर मोहन ने माँ को सारी बात बतायीः ”माँ ! माँ ! आज भी देर हो गयी। जंगल में डर लगने लगा तो मैंने गोपाल भैया को पुकारा। वे मुझे गाँव की सीमा तक छोड़ गये।”

माँ समझ गयी  कि जो दयामय द्रौपदी और निर्दोष गजेन्द्र की पुकार  पर दौड़ पड़े थे, मेरे भोले, निर्दोष और दृढ़ श्रद्धावाले बालक की पुकार पर भी वे ही आये थे।

अब मोहन वन में पहुँचते ही गोपाल भैया को पुकारता और वे झट आ जाते।

एक दिन गुरुकुल में गुरुजी के यहाँ सारे बच्चे और कुछ शिक्षक उपस्थित हुए। गुरुजी के यहाँ दूसरे दिन श्राद्ध था। कौन बच्चा इस निमित्त क्या लायेगा, इस पर बातचीत हो रही थी। किसी ने कहाः ”मैं दूध लाऊँगा।”

किसी ने कहाः ”मैं शक्कर लाऊँगा.”

किसी ने कहाः ”चावल लाऊँगा।”

किसी ने कहाः ”चारोली और इलायची लाऊँगा।”

मोहन गरीब था फिर भी उसने कहाः ”गुरु जी ! गुरु जी ! मैं दूध लाऊँगा। अपनी माँ से जाकर कहूँगा तो मेरी माँ दूध का खूब बड़ा लोटा भर देगी, मैं ले आऊँगा।

गुरु जी को पता था कि ”यह गरीब है क्या लायेगा ?”

मोहन ने घर जाकर गुरु के यहाँ श्राद्ध की बात कही और कहाः ”माँ ! मुझे भी एक लोटा दूध ले जाना है।”

गरीब माँ कहाँ से दूध लाती ? माँ ने कहाः ”बेटा जब गुरुकुल जायेगा न तो गोपाल भैया को पुकारना। तू गोपाल भैया से दूध माँग लेना, वे ले आयेंगे।”

दूसरे दिन मोहन ने जंगल में जाते ही गोपाल भैया को पुकारा और कहाः आज मेरे गुरु जी के पिता का श्राद्ध है। मुझे एक लोटा दूध लेकर जाना है। माँ ने कहा है कि गोपाल भैया से माँग लेना।

गोपाल ने मोहन के हाथ में देते हुए कहाः अपने गुरु जी को दे देना।

मोहन लोटा लेकर गुरुकुल पहुँचा। कोई ढेर सारे चावल लाया, तो कोई शक्कर और यह तो केवल एक लोटा दूध लाया !

मोहनः गुरु जी, गुरु जी ! गोपाल भैया ने दूध भेजा है।

गुरु जी व्यस्त थे, सामने तक न देखा। उन्हें पता न था कि गरीब मोहन क्या लाया होगा।

मोहन ने फिर से कहाः गुरु जी, गुरु जी ! मैं दूध लाया हूँ,गोपाल भैया ने दिया है।

गुरु जीः बैठ, अभी।

थोड़ी देर बाद मोहन फिर बोलाः गुरु जी, गुरु जी मैं दूध लाया हूँ, गोपाल भैया ने दिया।

गुरु जी ने कहाः सेवक ! ले जा। जरा-सा दूध लाया है और सिर खपा दिया। जा, इसका लोटा खाली कर दे।

सेवक लोटा ले गया। खाली बर्तन में दूध डाला बर्तन भर गया। दूसरे बर्तन में डाला, दूसरा बर्तन भी भर गया। जितने बर्तनों में दूध डालता बर्तन भर जाते,पर लोटा खाली न होता होता  सेवक चौंका। उसने गुरु जी को जाकर बताया।

गुरु जीः कहाँ से लाया है यह अक्षय पात्र?

मोहनः एक मेरा गोपाल भैया है, उनसे माँगकर लाया हूँ।

गुरुजीः तेरी आवाज सुनकर गोपाल भैया कैसे आ गये?

मोहनः मेरी माँ ने बताया था कि कोई यदि प्रेम से और विश्वास से उसको पुकारे, ध्यान करे तो वह प्रकट हो जाता है। एक दिन घर जाने में देर हो गयी थी। जंगल में शेर चीतों की आवाज सुनकर मैं घबरा गया और उसको पुकारा तो वह आ गया। आज मैंने गोपाल भैया से कहा कि दूध चाहिए। तो वह दूध ले आया।

गुरु जी ने मोहन को प्रणाम किया और कहाः मोहन, मुझे भी ले चल, अपने गोपाल भैया के दर्शन करा।

मोहनः चलिये, गुरु जी। जब मैं घर जाऊँगा तब जंगल के रास्ते में गोपाल भैया को बुलाऊँगा। आप भी देख लेना।

श्राद्ध विधि पूरी होने के बाद गुरु जी मोहन के साथ चले। रास्ते में जंगल आया। मोहन ने आवाज लगायीः गोपाल भैया, गोपाल भैया, आ जाओ न।

मोहन को आवाज सुनायी दीः आज तुम अकेले तो हो नहीं, डर तो लगता नहीं, फिर मुझे क्यों बुलाते हो ?

मोहनः गोपाल भैया, डर तो नहीं लगता लेकिन मेरे गुरु जी तुम्हारे दर्शन करना चाहते हैं।

गुरु जीः मेरे कर्म ऐसे हैं कि मुझे देखकर भगवान नहीं आते। तू दूर जाकर पुकार।

मोहन ने दूर जाकर पुकारा। गोपाल भैया दिखे। मोहन ने कहाः मेरे गुरु जी को भी दर्शन दो न।

गोपालः वे मेरा तेज सहन नहीं कर सकेंगे। तेरी माँ तो बचपन से भक्त थी, तू भी बचपन से भक्ति करता है। तुम्हारे गुरु जी ने इतनी भक्ति नहीं की है। गुरु जी से कहो कि जो प्रकाश पुंज  दिखेगा, वही गोपाल भैया है। जाओ, गुरु जी को मेरे प्रकाश का दर्शन हो जायेगा। उसी से उनका कल्याण हो जायेगा।

मोहन ने आकर कहाः देखो, गुरु जी गोपाल भैया खड़े हैं।

गुरु जीः मेरे को गोपाल भैया नहीं दिखते, केवल प्रकाश दिखता है।

मोहनः हाँ, वही है, वही है गोपाल भैया।

गुरु जी गदगद हो गये। उनका रोम रोम आनंदित हो उठा, अष्टसात्विक भाव प्रकट हो गये। गुरुजीः गोपाल,गोपाल करके पुकार उठे। अब तो गुरुजी मोहन को अपना गुरु मानने लगे क्योंकि उसी ने भगवद् दर्शन का रास्ता बताया।

तुम भी मोहन की नाँईं भगवन्नाम जपते जाओ। गोपाल भैया तुम पर भी प्रसन्न हो जायेंगे… स्वप्न में भी दर्शन दे देंगे। बच्चों पर तो वे जल्दी खुश होते हैं। तुम भी भगवान के साथ सेवक स्वामी, सखा भैया के भाव से कोई भी सम्बंध जोड़कर प्रेम से उन्हें पुकारोगे तो तुम्हारे हृदय में भी आनंद प्रकट हो जायेगा।

स्रोतः ऋषि प्रसाद, नवम्बर 2001, पृष्ठ संख्या 27-29, अंक 107

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