भारतीय संस्कृति में वटवृक्ष, पीपल को पूजनीय माना जाता है और बड़ी श्रद्धा से पूजा की जाती है। प्राचीन काल में लोग शांति के लिए जिस प्रकार इन्द्र, वरुण आदि देवताओं की प्रार्थना करते थे, उसी प्रकार वृक्षों की भी प्रार्थना करते थे।
वनिनो भवन्तु शं नौ। (ऋग्वेदः 7.35.5)
अर्थात् ‘वृक्ष हमारे लिए शांतिकारक हों।’ यज्ञ का जीवन वृक्षों की लकड़ी को ही माना गया है। यज्ञों में समिधा के निमित्त बरगद, गूलर, पीपल और पाकड़ (प्लक्ष) इन्हीं वृक्षों की लकड़ियों को विहित माना गया है और कहा गया है कि ये चारों वृक्ष सूर्य-रश्मियों के घर हैं।
‘एते वै गन्धर्वाप्सरसां गृहाः।’ (शत. ब्राह्मण)
औषधि प्रयोग
भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने ‘अश्वत्थः सर्ववृक्षाणाम्’ कहकर पीपल को अपना स्वरूप बताया है।
रतौंधीः पीपल की लकड़ी के टुकड़े को लेकर गोमूत्र से शिला पर घिसना चाहिए। इसका अंजन आँखों में लगाने से रतौंधी में लाभ होता है।
मलेरिया ज्वरः पीपल टहनी का दातुन कुछ दिनों तक करने से तथा उसको चूसने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।
कान का दर्द या बहरापनः पीपल की ताजी हरी पत्तियों को निचोड़कर उसका रस कान में डालने से कान का दर्द दूर होता है। कुछ समय तक इसके नियमित सेवन से कान का बहरापन भी मिटता है।
खाँसी और दमाः पीपल के सूखे पत्तों को खूब कूटना चाहिए। जब चूर्ण बन जाये, तो उसे कपड़े से छान लेना चाहिए। लगभग आधा तोला (6 ग्राम) चूर्ण में मधु मिलाकर रोज सुबह एक माह तक चाटने से दमा व खाँसी में स्पष्ट लाभ होता है।
धातु दौर्बल्य और वन्ध्यत्वः पीपल वृक्ष के फल में अदभुत गुण हैं। फलों को सुखा, कूट और कपड़ छानकर रखना चाहिए। रोज एक गिलास दूध में 3 ग्राम चूर्ण मिलाकर पीने से धातु-दौर्बल्य दूर होता है। स्त्रियों के प्रदर और मासिक धर्म की समस्याओं में तथा प्रसव के बाद दूध के साथ नियमित रूप से लेने से बहुत लाभ होता है। पुराना प्रदर जड़ से मिट जाता है और मासिक धर्म का खुलकर न आना तथा अनियमितता भी दूर हो जाती है।
सर्दी और सिरदर्दः सिर्फ पीपल की 2-4 कोमल पत्तियों को चूसने से सर्दी से होने वाला सिरदर्द कुछ ही मिनटों में छूमंतर हो जाता है।
मेधाशक्तिवर्धक व पित्तशामकः पीपल के पेड़ की लकड़ी का मेधाशक्तिवर्धक प्रभाव शास्त्रों में वर्णित है। पीपल की पुरानी, सूखी लकड़ी से बने गिलास में रखे पानी को पीने से अथवा पीपल की लकड़ी का चूर्ण पानी में भिगोकर छना हुआ पानी पीने से व्यक्ति मेधावी होता है। पित्त-सम्बंधी, शारीरिक गर्मी-सम्बन्धी तमाम रोगों पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। शरबत, ठण्डाई आदि बनाते समय इस चूर्ण को कुछ समय तक पानी में भिगो दें या चूर्ण को पानी में उबालकर छान लें तथा ठण्डा कर शरबत, ठण्डाई आदि में मिलाकर पियें। पीपल के हरे पेड़ काटना अशुभ व हानिकारक है।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, दिसम्बर 2002, पृष्ठ संख्या 29 अंक 120
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