त्रय उपस्तम्भा इत्याहारः स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति ।
‘आहार, निद्रा व ब्रह्मचर्य शरीर के तीन उपस्तंभ हैं अर्थात् इनके आधार पर शरीर स्थित है ।’ (चरक संहिता, सूत्रस्थानम्- 11.35)
इनके युक्तिपूर्वक सेवन से शरीर स्थिर होकर बल-वर्ण से सम्पन्न व पुष्ट होता है ।
‘निद्रा’ की महत्ता का वर्णन करते हुए चरकाचार्य जी कहते हैं-
जब कार्य करते-करते मन थक जाता है एवं इन्द्रियाँ भी थकने के कारण अपने-अपने विषयों से हट जाती हैं, तब मन और इन्द्रियों के विश्रामार्थ मनुष्य सो जाता है । निद्रा से शरीर को सर्वाधिक विश्राम मिलता है । विश्राम से पुनः बल की प्राप्ति होती है । शरीर को टिकाये रखने के लिए जो स्थान आहार का है, वही निद्रा का भी है ।
निद्रा के लाभः
सुखपूर्वक निद्रा से शरीर की पुष्टि व आरोग्य, बल एवं शुक्र धातु की वृद्धि होती है । साथ ही ज्ञानेन्द्रियाँ सुचारू रूप से कार्य करती है तथा व्यक्ति को पूर्ण आयु-लाभ प्राप्त होता है ।
निद्रा उचित समय पर उचित मात्रा में लेनी चाहिए । असमय तथा अधिक मात्रा में शयन करने से अथवा निद्रा का बिल्कुल त्याग कर देने से आरोग्य व आयुष्य का ह्रास होता है । दिन में शयन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकर है परंतु जो व्यक्ति अधिक अध्ययन, अत्यधिक श्रम करते हैं धातु-क्षय से क्षीण हो गये हैं, रात्रि-जागरण अथवा मुसाफिरी से थके हुए हैं वे तथा बालक, वृद्ध, कृश, दुर्बल व्यक्ति दिन में शयन कर सकते हैं ।
ग्रीष्म ऋतु में रात छोटी होने के कारण व शरीर में वायु का संचय होने के कारण दिन में थोड़ी देर शयन करना हितावह है ।
घी व दूध का भरपूर सेवन करने वाले, स्थूल, कफ प्रकृतिवाले व कफजन्य व्याधियों से पीड़ित व्यक्तियों को सभी ऋतुओं में दिन की निद्रा अत्यंत हानिकारक है ।
दिन में सोने से होने वाली हानियाँ-
दिन में सोने से जठराग्नि मंद हो जाती है । अन्न का ठीक से पाचन न होकर अपाचित रस (आम) बन जाता है, जिससे शरीर में भारीपन, शरीर टूटना, जी मिचलाना, सिरदर्द, हृदय में भारीपन, त्वचारोग आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं । तमोगुण बढ़ने से स्मरणशक्ति व बुद्धि का नाश होता है ।
अतिनिद्रा दूर करने के उपाय
उपवास, प्राणायाम व व्यायाम करने तथा तामसी आहार (लहसुन, प्याज, मूली, उड़द, बासी व तले हुए पदार्थ आदि) का त्याग करने से अतिनिद्रा का नाश होता है ।
अनिद्रा
कारणः वात व पित्त का प्रकोप, धातुक्षय, मानसिक क्षोभ, चिंता व शोक के कारण, सम्यक् नींद नहीं आती ।
लक्षणः शरीर मसल दिया हो ऐसी पीड़ा, शरीर व सिर में भारीपन, चक्कर, जँभाइयाँ अनुत्साह व अजीर्ण ये वायुसंबंधी लक्षण अनिद्रा से उत्पन्न होते हैं ।
अनिद्रा दूर करने के उपायः
सिर पर तेल की मालिश, पैर के तलुओं में घी की मालिश, कान में नियमित तेल डालना, संवाहन (अंग दबवाना), घी, दूध (विशेषतः भैंस का), दही व भात का सेवन, सुखकर शय्या व मनोनुकूल वातावरण से अनिद्रा दूर होकर शीघ्र निद्रा आ जाती है ।
सहचर सिद्ध तैल (जो आयुर्वेदिक औषधियों की दुकान पर प्राप्त हो सकेगा) से सिर की मालिश करने से शांत व प्रगाढ़ नींद आती है ।
कुछ खास बातें
कफ व तमोगुण की वृद्धि से नींद अधिक आती है तथा वायु व सत्त्वगुण की वृद्धि से नींद कम होती है ।
रात्रि जागरण से वात की वृद्धि होकर शरीर रुक्ष होता है । दिन में सोने से कफ की वृद्धि होकर शरीर में स्निग्धता बढ जाती है परंतु बैठे-बैठे थोड़ी सी झपकी लेना रूक्षता व स्निग्धता दोनों को नहीं बढ़ाता व शरीर को विश्राम भी देता है ।
सोते समय पूर्व अथवा दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए ।
हाथ पैरों को सिकोड़कर, पैरों के पंजों की आँटी (क्रास) करके, सिर के पीछे तथा ऊपर हाथ रखकर व पेट नहीं सोना चाहिए ।
सूर्यास्त के दो ढाई-घंटे पूर्व उठ जाना उत्तम है ।
सोने से पहले शास्त्राध्ययन करके प्रणव (ॐ) का दीर्घ उच्चारण करते हुए सोने से नींद भी उपासना हो जाती है ।
निद्रा लाने का मंत्रः
शुद्धे शुद्धे महायोगिनी महानिद्रे स्वाहा ।
इस मंत्र का जप करते हुए सोने से प्रगाढ़ व शांत निद्रा आती है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जनवरी 2009, पृष्ठ संख्या 27,28 अंक 193
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