पूज्य बापू जी के सत्संग-प्रवचन से
मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयोः ।
‘मन ही मनुष्य के बंधन और मोक्ष का कारण है ।’ (मैत्रायण्युपनिषद् 4.4)
श्रीकृष्ण कहते हैं- ‘जिसका मन वश में नहीं है उसके लिए योग करना अत्यंत कठिन है, यह मेरा मत है ।’ (गीताः 6.36)
मन को वश करने के, स्थिर करने के उपाय हैं, जैसे-
1 प्रेमपूर्वक भगवन्नाम का कीर्तन करनाः हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।’ – वाणी से यह बोलते गये और मन में ‘ॐॐ’ बोलते गये । ऐसा करने से मन एकाग्र होगा, रस आने लगेगा और वासनाएँ भी मिटने लगेंगी ।
मन-ही-मन भगवान के नाम का कीर्तन करो, वाणी से नहीं, कंठ से भी नहीं, केवल मन में कीर्तन करो तो भी मन एकाग्र होने लगेगा ।
2 श्वासोच्छवास की गिनती द्वारा जपः जीभ तालू में लगाकर श्वासोच्छवास की गिनती करें । होंठ बंद हो, जीभ ऊपर नहीं नीचे नहीं बीच में ही रहे और श्वास अंदर जाये तो ‘ॐ’ बाहर आय तो एक, श्वास अंदर जाय तो ‘शांति’ बाहर आये तो दो… – इस प्रकार गिनती करने से थोड़े ही समय में मन लगेगा और भगवद् रस आने लगेगा, मन का छल, छिद्र, कपट, अशांति और फरियाद कम होने लगेगी । वासना क्षीण होने लगेगी । पूर्ण गुरु की कृपा हजम हो जाय, पूर्ण गुरु का ज्ञान अगर पा लें, पचा लें तो फिर तो ‘सदा दीवाली संत की, आठों पहर आनंद । अकलमता कोई ऊपजा, गिने इन्द्र को रंक ।।’
ऐसी आपकी ऊँची अवस्था हो जायेगी ।
3 चित्त को सम रखनाः शरीर मर जायेगा, यहीं पड़ा रह जायेगा, सुविधा-असुविधा सब सपना हो जायेगा । बचपन के मिले हुए सब सुख और दुःख सपना हो गये, जवानी की सुविधा-असुविधा सपना हो गयी और कल की सुविधा-असुविधा भी सपना हो गयी । तो सुविधा में आकर्षित न होना और असुविधा में विह्वल न होना, समचित होना – इससे भी मन शांत और सबल होगा । यह ईश्वरीय तत्त्व को जागृत करने की विधि है ।
आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।
सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ।।
‘हे अर्जुन ! जो योगी अपनी भाँति सम्पूर्ण भूतों में सम देखता है और सुख अथवा दुःख को भी सबमें सम देखता है, वह योगी परम श्रेष्ठ माना गया है ।’ (भगवद्गीताः 6.32)
4 प्राणायाम करनाः खुली हवा में, शुद्ध हवा में दस प्राणायाम रोज करें । इससे मन के दोष, शरीर के रोग मिटने लगते हैं । प्राणायाम में मन की मलिनता दूर करने की आंशिक योग्यताएँ हैं । भगवान श्रीकृष्ण सुबह ध्यानस्थ होते थे, संध्या-प्राणायाम औदि करते थे । भगवान श्री राम भी ध्यान और प्राणायाम आदि करते थे । इऩ्द्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्राण है । प्राण तालबद्ध होने से मन की दुष्टता और चंचलता नियंत्रित होती है ।
दस-ग्यारह प्राणायाम करके फिर दोनों नथुनों से श्वास खींचे और योनि को सिकोड़ कर रखें, शौच जाने की जगह (गुदा) का संकोचन करें, इसे ‘मूलबंध’ बोलते हैं । वासनाओं का पुंज मूलाधार चक्र में छुपा रहता है । योनि संकोचन करें और श्वास को रोक दें, फिर भगवन्नाम जप करें, इससे वासनाएँ दग्ध होती जायेंगी ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, अप्रैल 2009, पृष्ठ संख्या 9 अंक 196
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