तुम ईश्वर के रास्ते चलते हो और अनुकूलता आने लग जाय तो यह तो थोड़ी-बहुत सफलता हुई लेकिन अगर प्रतिकूलता आती है तो समझो कि ईश्वर के रास्ते तुम्हारी यात्रा तेजी से होने वाली है ।
जिसको वो इश्क करता है, उसी को आजमाता है ।
खजाने रहमत के, इसी बहाने लुटाता है ।।
जिस साधक, भक्त को सताने वाला, तंग करने वाला कोई कुटुम्बी मिल जाता है, समझो उसका बड़ा भाग्य है । मीरा को सताने वाले, तंग करने वाले नहीं मिलते तो शायद मीरा की इतनी दृढ़ता नहीं होती । प्रह्लाद को सताने वाला, तंग करने वाला हिण्यकशिपु न होता तो शायद प्रह्लाद की इतनी दृढ़ भक्ति न भी होती । एकनाथ जी को सताने वाले लोग न मिलते तो शायद एकनाथ जी को भी इतना धैर्य और इतनी प्रशांति में स्थिति न भी होती । अगर विघ्न-बाधा आती है तो समझ लो कि भगवान हमें अपने प्रशांत स्वभाव में तेजी से लाना चाहते हैं और सुख-सुविधा आ जाती है तो समझ लो भगवान हमारी कमजोरी समझते हैं कि हम सुख के भगत हैं, इसलिए खिलौने दे दिये । इन खिलौनों का उपयोग करना । ये खिलौने हैं, इनमें जीवन नहीं गँवाना है । उन सुखद अवस्थाओं को भगवान का प्रसाद समझकर जैसे भगवान के आगे थाली धऱते हैं, भोग लगाते हैं तो फिर वह अकेले नहीं खाया जाता बाँट के खाया जाता है, ऐसे ही योग्यता और सहूलियतें आ जायें तो भगवत्कार्य में उनका सदुपयोग करे और विघ्न-बाधा आ जाय तो छलाँग मार के अपने को प्रशांति में पहुँचा दे तो वह साधक जल्दी सफल हो जाता है ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, मई 2009, पृष्ठ संख्या 6 अंक 197
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