मुझे आपकी चीज नहीं चाहिए, आपकी वस्तु नहीं चाहिए, आपका प्रणाम तक नहीं चाहिए, आपका फूलहार भी आपको पहनाता हूँ तो मुझे आनंद आता है । मुझे आपसे क्या लेना है ? मुझे तो आपका विकास चाहिए बस । इस विनाश के युग में विकास चाहिए । इस युग में धन बढ़ गया, बम बढ़ गये, ऐश-आराम बढ़ गये, फास्टफूड बढ़ गया, बेशर्माई कि फिल्में बढ़ गयीं, डिस्कों डांस बढ़ गया…. इसलिए हमें आपका विकास चाहिए ।
अमूल्य मानव-जन्म का एक-एक पल बीता जा रहा है । जितनी आयु लेकर आये हैं उसमें से एक-एक साँस कम होती जा रही है । न जाने कब, कहाँ, कैसे साँसों की संख्या पूरी हो जाय और अनाथ होकर, निराश होकर हारे हुए जुआरी की तरह संसार से विदा होना पड़े !
आपकी आँखें देखना बंद कर दें उससे पहले जिससे देखा जाता है, कान सुनना बंद कर दें उससे पहले जिससे सुना जाता है, दिल की धड़कने बंद हो जायें उससे पहले जिसकी सत्ता से दिल धड़कता है उस दिलबर दाता का ज्ञान-ध्यान और शांति का प्रसाद आप लोगों तक पहुँचा सकूँ, भगवान व्यास जी की प्रसादी से, अपने गुरुदेव की प्रसादी से, गीता के, उपनिषदों के ज्ञान से आपका जीवन महका सकूँ जिससे जीते-जी आप मौत के सिर पर पैर रखकर परम शांति और आनंद पा सकें और आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार कर सकें । आपका तन तंदुरुस्त रहे, मन प्रसन्न रहे, बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश हो, उसकी प्रेरणा हो, बस यही चाहता हूँ ।
स्रोतः ऋषि प्रसाद, जून 2009, पृष्ठ संख्या 20 अंक 198
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